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Phantom of Thodanga – The Supernatural Saga of Pret Uncle | Raj Comics Review

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Comics Review: जब आत्मा भिड़ी तंत्र और विज्ञान से – प्रेत अंकल की रहस्यमयी जंग “थोडांगा का प्रेत” में!

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Comics Review: जब आत्मा भिड़ी तंत्र और विज्ञान से – प्रेत अंकल की रहस्यमयी जंग “थोडांगा का प्रेत” में!

राज कॉमिक्स की दुनिया का एक डरावना रत्न — “थोडांगा का प्रेत” जहाँ रहस्य, जादू, और विज्ञान की टक्कर में प्रेत अंकल का आत्मबल जीत की कहानी लिखता है।
ComicsBioBy ComicsBio4 November 2025010 Mins Read
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Phantom of Thodanga – Pret Uncle Comics Review | Raj Comics Nostalgia & Supernatural Adventure
Pret Uncle faces his deadliest enemy yet — Thodanga, born from the dark alliance of Tantra and Science!
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यह वो दौर था जब मनोरंजन के साधन बहुत कम थे, और हमारे सबसे अच्छे साथी हुआ करते थे — राज कॉमिक्स, डायमंड कॉमिक्स और मनोज कॉमिक्स जैसे प्रकाशन। इन्हीं कॉमिक्स की दुनिया से एक ऐसा नायक सामने आया जो बाकी सब से अलग था — न तो उसके पास कोई सुपरपावर थी, न कोई हाई-टेक हथियार। वह था एक आत्मा, एक प्रेत, जो हर तरह के अन्याय के खिलाफ लड़ता था। उसका नाम था — प्रेत अंकल।

आज मेरे हाथ में है प्रेत अंकल का सुपर विशेषांक “थोडांगा का प्रेत”, जिसकी कीमत उस समय सिर्फ 20 रुपये थी। लेकिन यकीन मानिए, यह कॉमिक्स अपने अंदर सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि उस ज़माने की रचनात्मक सोच, शानदार आर्टवर्क और रोमांचक कहानी कहने के अंदाज़ का ज़बरदस्त नमूना है। हनीफ अजहर की दिलचस्प कहानी और विनोद कुमार के लाजवाब चित्र इसे एक अलग ही ऊँचाई पर ले जाते हैं। यह कॉमिक्स हमें ऐसी दुनिया में ले जाती है जहाँ तंत्र-मंत्र, विज्ञान, लालच और वीरता सब कुछ एक साथ घुल-मिल जाते हैं। तो चलिए, इस रहस्यमयी और रोमांचक सफर पर निकलते हैं और “थोडांगा का प्रेत” की दुनिया में झाँकते हैं।

कथानक: एक उलझी हुई लेकिन मज़ेदार कहानी

“थोडांगा का प्रेत” की कहानी किसी सीधी रेखा पर नहीं चलती। यह कई छोटी-बड़ी घटनाओं को बुनते हुए एक बड़ी और डरावनी तस्वीर बनाती है।

कहानी की शुरुआत होती है एक रहस्यमयी तांत्रिक “एलीफेंटा” और सींगों वाले दानव “थोडांगा” के बीच बातचीत से। एलीफेंटा अपनी तांत्रिक शक्तियों से थोडांगा को एक जादुई कैद से आंशिक रूप से मुक्त करता है। थोडांगा, जो हिल भी नहीं सकता था, अब कुछ हद तक आज़ाद हो जाता है और एलीफेंटा का शुक्रिया अदा करता है। इन दोनों की बातचीत से साफ़ झलकता है कि वे किसी बड़े और ख़तरनाक मकसद के लिए एकजुट हुए हैं। यह शुरुआती दृश्य ही पाठक के मन में रहस्य और रोमांच की लहरें पैदा कर देता है — आखिर ये दोनों कौन हैं, और उनका असली उद्देश्य क्या है?

इसके बाद कहानी का रुख अफ्रीका के एक शानदार क्लब “ब्लू हेवन” की ओर मुड़ता है। यहाँ पाँच नामी अपराधी — लोची, डॉन, बोस्की, कैट और भैंसी, एक बूढ़े आदमी की बातों में बड़े ध्यान से खोए हुए हैं। वह बूढ़ा उन्हें ‘थोडांगा के खजाने’ के बारे में बताता है — ऐसा खजाना जो कुबेर के खजाने से भी ज़्यादा कीमती है! अपनी बात को सच साबित करने के लिए वह एक हीरा दिखाता है, जिसकी चमक देखकर पाँचों के लालच का पारा चढ़ जाता है। वे बूढ़े को पाँच लाख रुपये देने का नाटक करते हैं, लेकिन जैसे ही मौका मिलता है, उसे एक सुनसान गली में मार डालते हैं। उन्हें लगता है कि अब उनके सामने दौलत की दुनिया खुल गई है, लेकिन असल में उन्होंने अपने लिए मौत का जाल बिछा लिया है — जिसका अंदाज़ा उन्हें नहीं है।

अब कहानी पहुँचती है भारत के राजनगर में। यहाँ राजनगर इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर एक अजीब घटना होती है — एक विमान हवा में ही अचानक रुक जाता है! तभी वहाँ प्रकट होती है एक कंकाल जैसी आकृति, जो खुद को “प्रेत लुटेरा” कहती है। वह सबके सामने बीस लाख रुपये की फिरौती की मांग रखती है। सरकार और आम जनता दोनों के लिए यह एक भयानक चुनौती बन जाती है, क्योंकि यह कोई साधारण अपराधी नहीं — बल्कि एक अलौकिक शक्ति है, जिस पर गोलियाँ भी असर नहीं करतीं।
यहीं से कहानी असली रफ़्तार पकड़ती है और हमें दिखाती है कि इसके पीछे एक विशाल और खतरनाक षड्यंत्र छिपा है, जो आगे चलकर पूरे राजनगर को हिला देने वाला है।

“प्रेत लुटेरों” के आतंक से निपटने के लिए आखिरकार मंच पर आता है हमारा नायक — प्रेत अंकल। एक ऐसी आत्मा जो इंसानों की दुनिया में न्याय के लिए भटकती है। बाकी सुपरहीरोज़ की तरह उसके पास कोई गैजेट या मशीन नहीं, बल्कि उसकी ताकत है उसका आत्मिक बल — जिससे वह इन बुरी आत्माओं से टक्कर ले सकता है।

कहानी में प्रेत अंकल का सामना सिर्फ इन “प्रेत लुटेरों” से ही नहीं होता, बल्कि उनके पीछे छिपे असली राक्षसी खेल से भी होता है। इस दौरान वह कई भयानक जीवों से भिड़ता है — जैसे एक विशाल मकड़ी-नुमा दैत्य, जिसकी झलक ही किसी के भी रोंगटे खड़े कर दे!

इसी बीच, अफ्रीका में वो पाँच अपराधी — लोची, डॉन, बोस्की, कैट और भैंसी — नक्शे का पीछा करते हुए थोडांगा की गुफा तक पहुँच जाते हैं। उन्हें लगता है कि अब खजाना बस कुछ कदम दूर है। लेकिन जैसे ही वे गुफा में प्रवेश करते हैं, उनकी आँखों के सामने आता है थोडांगा, जो खजाने की रखवाली नहीं, बल्कि मौत का संदेश लेकर खड़ा है।
थोडांगा उन्हें बताता है कि वो बूढ़ा आदमी और खजाने की कहानी सब झूठ थी — सब कुछ उसके स्वामी एलीफेंटा की चाल थी, ताकि उसे (थोडांगा को) इंसानी बलि मिल सके और उसकी सोई हुई शक्तियाँ वापस लौट आएँ। लालच के पीछे भागते इन अपराधियों को अब समझ आता है कि वे असल में किसी खेल के मोहरे थे।

कहानी के क्लाइमेक्स में सारे धागे एक साथ जुड़ जाते हैं। अब सच सामने आता है — “प्रेत लुटेरों” और बाकी राक्षसों का निर्माता कोई और नहीं बल्कि कुख्यात वैज्ञानिक “डॉक्टर डेविल” है। वह तांत्रिक एलीफेंटा के साथ मिलकर दुनिया पर राज करने का प्लान बना रहा है।
जहाँ डॉक्टर डेविल विज्ञान का सहारा लेकर आत्माओं को काबू में करता है, वहीं एलीफेंटा तंत्र-मंत्र की काली शक्तियों का इस्तेमाल करता है। दोनों मिलकर थोडांगा को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाते हैं — जो दुनिया में तबाही मचाने के लिए भेजा जाता है।

कहानी की आखिरी जंग होती है राजनगर की सड़कों पर — जहाँ आमने-सामने होते हैं प्रेत अंकल, थोडांगा, और डॉक्टर डेविल।
यह टकराव अच्छाई और बुराई की क्लासिक जंग है — एक तरफ है आत्मा की शुद्ध शक्ति, और दूसरी तरफ विज्ञान और तंत्र का घिनौना मेल। लड़ाई सिर्फ ताकत की नहीं, आस्था और इंसानियत की जीत की है।

नायक, खलनायक और उनके मोहरे

प्रेत अंकल — इस कहानी के नायक प्रेत अंकल एक अनोखे सुपरहीरो हैं। वे एक वृद्ध व्यक्ति की आत्मा हैं, जो अपना पहचान चिह्न बन चुके लंबे ट्रेंच कोट में नज़र आते हैं। उनकी शक्तियाँ आत्मिक हैं — वे दीवारों के आर-पार जा सकते हैं, ऊर्जा किरणें फेंक सकते हैं, और अन्य आत्माओं से संवाद कर सकते हैं।
उनका व्यक्तित्व शांत, गंभीर और न्यायप्रिय है। वे बदले की भावना से नहीं, बल्कि निर्दोषों की रक्षा के लिए लड़ते हैं। “थोडांगा का प्रेत” में उनकी वीरता, बुद्धिमत्ता और आत्मबल तीनों की परीक्षा होती है — और वे हर मोर्चे पर खरे उतरते हैं।

थोडांगा — शीर्षक का यह पात्र कहानी का सबसे यादगार हिस्सा है। वह सिर्फ एक क्रूर दैत्य नहीं, बल्कि एक tragic villain भी है। कभी वह एक शक्तिशाली योद्धा था, जिसे किसी श्राप या जादू से दानव बना दिया गया। अब वह एलीफेंटा और डॉक्टर डेविल के हाथों की कठपुतली है। उसका विशाल शरीर, बड़े-बड़े सींग और अद्भुत ताकत उसे डरावना बनाते हैं, लेकिन अंत तक उसके भीतर की बेबस आत्मा झलकती है।
कहानी का अंत उसे सिर्फ एक खलनायक नहीं, बल्कि एक दुखद किरदार के रूप में पेश करता है, जिससे नफरत भी होती है और थोड़ी सहानुभूति भी।

डॉक्टर डेविल और एलीफेंटा — ये दोनों मिलकर कहानी को एक नया मोड़ देते हैं। एक तरफ एलीफेंटा, जो तंत्र-मंत्र और काली शक्तियों का प्रतीक है, वहीं दूसरी तरफ डॉक्टर डेविल, जो आधुनिक विज्ञान के गलत इस्तेमाल का।
डॉक्टर डेविल के “एंटी-घोस्ट पाउडर” जैसे प्रयोग दिखाते हैं कि वह प्रेत अंकल की शक्तियों को समझता है और उनका तोड़ ढूंढने की कोशिश करता है।
यह जोड़ी इस कॉमिक्स को खास बनाती है — क्योंकि यहाँ अंधविश्वास और विज्ञान दोनों मिलकर विनाश का रास्ता बनाते हैं।

पाँच अपराधी — लोची, डॉन, बोस्की, कैट और भैंसी इस कहानी में लालच का चेहरा हैं। वे खजाने की चाह में कुछ भी करने को तैयार हैं। लेकिन अंत में उनकी कहानी बन जाती है एक नैतिक सबक — कि लालच का नतीजा हमेशा विनाश ही होता है।
ये पाँचों किरदार कहानी में सिर्फ साइड कैरेक्टर नहीं, बल्कि कहानी को आगे बढ़ाने की असली चाबी हैं।

कला और चित्रांकन: 90 के दशक का  जादू

इस कॉमिक्स की असली जान है विनोद कुमार का शानदार चित्रांकन। उनकी कला में वो जोश, वो एनर्जी है जो 90 के दशक की कॉमिक्स को खास बनाती थी। हर फ्रेम में एक गति और जान महसूस होती है — खासकर एक्शन सीन में। जब प्रेत अंकल और थोडांगा आमने-सामने आते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे पन्नों से किरदार बाहर निकलकर हमारे सामने लड़ रहे हों।

पात्रों के चेहरों पर भावनाएँ — डर, गुस्सा, हैरानी या दुःख — सब कुछ बहुत खूबसूरती से दिखाया गया है। हर चेहरे में एक कहानी छिपी है। थोडांगा का डिज़ाइन तो खास तौर पर लाजवाब है — उसका विशाल शरीर, मुड़े हुए सींग, और राक्षसी चेहरा देखकर ही उसकी भयावह ताकत का अंदाज़ा हो जाता है। वहीं, “प्रेत लुटेरों” का कंकाल जैसा रूप सच में रोंगटे खड़े कर देता है — न ज़्यादा ग्राफिक, न ज़्यादा कार्टूनिश, बल्कि बिलकुल बैलेंस्ड।

रंग संयोजन की बात करें तो सुनील पाण्डेय और रिची ने कमाल कर दिया है। उस दौर की कॉमिक्स की पहचान थे चमकीले और जीवंत रंग, और यहाँ उनका इस्तेमाल एकदम सटीक बैठता है। एनर्जी बीम्स, जादुई प्रभाव, और अलौकिक दृश्यों में रंगों का जो खेल है, वो पन्ने-पन्ने पर आपको बाँध लेता है। हर सीन में एक खास विज़ुअल इम्पैक्ट है, जो आपको कहानी में पूरी तरह डुबो देता है।
कई फ्रेम तो इतने खूबसूरत हैं कि जैसे किसी पेंटिंग को देख रहे हों — हर पृष्ठ एक मिनी आर्टवर्क की तरह है।

निष्कर्ष: एक अविस्मरणीय अनुभव

“थोडांगा का प्रेत” सिर्फ एक कॉमिक्स नहीं है — ये तो जैसे समय में पीछे ले जाने वाली एक टाइम मशीन है। इसे पढ़ते वक्त ऐसा लगता है जैसे हम फिर से उस दौर में पहुँच गए हैं, जब हर कॉमिक्स सिर्फ कहानी नहीं होती थी, बल्कि एक अनुभव होती थी। यह कॉमिक्स राज कॉमिक्स के उस सुनहरे युग का शानदार उदाहरण है, जब कहानी में गहराई, कला में जुनून, और पात्रों में आत्मा होती थी।

आज के डिजिटल और तेज़-तर्रार ज़माने में भी यह कॉमिक्स उतनी ही असरदार और रोमांचक लगती है। इसकी कहानी बताती है कि नायक बनने के लिए सिर्फ ताकत नहीं, बल्कि साहस, बुद्धि और न्याय की भावना भी जरूरी होती है। यह विज्ञान और तंत्र-मंत्र के घातक मेल को दिखाती है और बताती है कि लालच हमेशा बुरे अंजाम तक ले जाता है।

कुल मिलाकर, “थोडांगा का प्रेत” सिर्फ एक रोमांचक कहानी नहीं, बल्कि एक भावनात्मक और सांस्कृतिक अनुभव है। यह प्रेत अंकल के प्रशंसकों के लिए तो खजाना है ही, साथ ही उन सभी के लिए भी जो भारतीय कॉमिक्स के स्वर्ण युग को महसूस करना चाहते हैं।
यह कहानी आपको शुरुआत से लेकर आख़िरी पेज तक जोड़े रखती है — और ख़त्म होने के बाद भी दिमाग़ में घूमती रहती है।

अगर आपको कभी इस कॉमिक्स को पढ़ने का मौका मिले, तो इसे मिस मत कीजिए। यह उन गिनी-चुनी कहानियों में से है जिन्हें बार-बार पढ़ा जा सकता है, और हर बार एक नई अनुभूति देती है।
सच में, “थोडांगा का प्रेत” भारतीय कॉमिक्स की रचनात्मकता, रहस्य और वीरता का एक शानदार नमूना है — जिसे जितना सराहा जाए, उतना कम है।

और “थोडांगा का प्रेत” अपने डर यह कॉमिक्स समीक्षा 90 के दशक की उस रहस्यमयी दुनिया में झाँकने का मौका देती है जहाँ प्रेत अंकल जैसे नायक आत्मा और विज्ञान दोनों से लड़ते हैं रहस्य और एक्शन से आज भी रोंगटे खड़े कर देता है।
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