भारतीय कॉमिक्स का सुनहरा दौर सिर्फ़ रोमांचक कहानियों के लिए ही नहीं, बल्कि ऐसे नायकों के लिए भी याद किया जाता है जो विदेशी सुपरहीरोज़ से अलग थे। ये नायक भारतीय पौराणिक कथाओं, हमारी संस्कृति और नैतिक मूल्यों पर टिके हुए थे। ऐसे ही नायकों में से एक है जटायु। यह कॉमिक्स हमें उस ज़माने में वापस ले जाती है जब किसी नायक की सबसे बड़ी ताकत उसका साहस, सच्चाई और दूसरों के लिए जान तक कुर्बान कर देने की भावना होती थी।
‘जटायु’ सिर्फ़ एक कॉमिक्स नहीं है, बल्कि एक ऐसी यात्रा है जो हमें देवताओं और राक्षसों की दुनिया में ले जाती है। इसमें दिखाया गया संघर्ष, दैत्यों की निर्दयता और आधे इंसान–आधे पक्षी नायक जटायु की हिम्मत और जज़्बा, कहानी को गहराई देते हैं। लेखक पपिन्द्र जुनेजा और चित्रकार A.M.G. की जोड़ी ने एक ऐसी कहानी रची है जो एक तरफ़ सादी है, तो दूसरी तरफ़ तेज़ और दमदार। यह समीक्षा इस कॉमिक्स के किरदारों, कहानी, कला और भारतीय कॉमिक्स पर इसके असर को करीब से देखती है।
जटायु का किरदार: हिम्मत और शक्ति का मेल
जटायु का किरदार शुरुआत से ही बहुत प्रभावशाली लगता है। कॉमिक्स के पहले ही कुछ पन्नों में उसका साफ़-सुथरा और मज़बूत व्यक्तित्व नज़र आने लगता है। बचपन से ही उसने ठान लिया था कि अगर कोई मुश्किल में होगा, तो वो बिना सोचे-समझे उसकी मदद करेगा — चाहे उसे अपनी जान ही क्यों न देनी पड़े। यही जज़्बा उसके पूरे चरित्र की नींव है।
उसके इस नेक इरादे को पहचानकर उसे दो ख़ास शक्तियाँ मिलीं। पहली शक्ति है दिव्य दृष्टि (Divine Sight), जो उसे मृचंग ने दी। इस शक्ति से वो दूर-दूर तक मुसीबत में फँसे लोगों को देख सकता है और उनके दर्द को महसूस कर सकता है। यह सिर्फ़ देखने की शक्ति नहीं, बल्कि महसूस करने की ताकत है — जो उसे और ज़्यादा दयालु और समझदार बनाती है। अब वो सिर्फ़ अपने आस-पास नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में फैले दुःख को देख सकता है।

दूसरी शक्ति है समय शक्ति और वैबिक शक्तियाँ (Time/Divine Power), जो देवराज इंद्र ने दीं। इस शक्ति से वो पलक झपकते ही किसी भी संकट की जगह पहुँच सकता है और देवताओं की दिव्य शक्तियों को बुला सकता है। यह शक्ति हमेशा उसके पास नहीं रहती — जब ज़रूरत होती है तभी आती है और काम पूरा होते ही वापस चली जाती है। इस विचार में एक गहरा संदेश छिपा है — शक्ति का इस्तेमाल तभी करना चाहिए जब उसकी सच्ची ज़रूरत हो, वरना वो घमंड में बदल सकती है।
जटायु का रूप भी उतना ही अनोखा है — आधा इंसान और आधा गरुड़। यह मिश्रण उसे आसमान में तेज़ी से उड़ने और धरती पर इंसानों की रक्षा करने की दोहरी ताकत देता है। उसका यह पक्ष भारतीय पौराणिक पक्षी गरुड़ से जुड़ा है, जो न्याय और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है। जटायु का हर काम उसके बचपन के वादे से जुड़ा है — वो किसी लालच या कर्तव्य की वजह से नहीं, बल्कि प्यार और बलिदान की भावना से काम करता है। यही बात उसे बाकी सुपरहीरोज़ से अलग बनाती है।
कथानक का विश्लेषण: बकासुर का खतरनाक संकट
इस कॉमिक्स की कहानी क्लासिक “अच्छाई बनाम बुराई” पर आधारित है, जहाँ एक दमदार खलनायक ज़रूरी होता है — और यहाँ वो है बकासुर, एक शक्तिशाली दैत्य। कहानी की शुरुआत से ही माहौल में तनाव भर जाता है। बकासुर खुद अपनी मर्ज़ी से बुरा नहीं बनता, बल्कि अपने कुलदेवता के आदेश पर ऐसा कर रहा होता है। उसे अपने बेटे की जान बचाने के लिए पृथ्वीलोक जाकर देवनगर के राजा देवधर की बेटी की बलि देनी है। यह मोड़ कहानी को थोड़ा भावनात्मक और सोचने पर मजबूर करने वाला बना देता है — क्योंकि यहाँ खलनायक भी अपने बच्चे के लिए लड़ रहा है, चाहे उसका तरीका कितना ही क्रूर क्यों न हो।
इस बलिदान के लिए राजा देवधर और उनकी बेटी को चुना जाता है। साथ ही मुक्तिराज नाम का एक मासूम बच्चा, जो सालों से जंगलों में भटक रहा है, कहानी में एक भावनात्मक गहराई जोड़ता है।
जैसे ही बकासुर पृथ्वीलोक के देवनगर पहुँचता है, कहानी अचानक तेज़ और रोमांचक हो जाती है। पृष्ठ 10 पर जब बकासुर आता है, तो लोग घबरा जाते हैं — “भागो… बचाओ!” जैसी चीखें गूँजने लगती हैं। पूरा शहर सन्नाटे में बदल जाता है। चित्रकार ने उस डर और राजा देवधर की बेबसी को बहुत अच्छे से दिखाया है। राजा का यह कहना — “हा! पता नहीं मुझसे चाहता क्या है?” और फिर बकासुर का डरावना ठहाका — “हा… हा… हा…! राजन, अगर अपनी भलाई चाहते हो तो सामने आओ। मुझे सिर्फ़ तुम्हारी बेटी चाहिए।” — पाठक के मन में बेचैनी और जिज्ञासा दोनों बढ़ा देता है।

कहानी का असली मोड़ तब आता है जब राजा अपने कमरे में अपनी बेटी की चीख सुनते हैं (“य… यह तो… चीख है!”) और कहते हैं “चलकर देखते हैं।” यही वो पल है जब कहानी असली टकराव की ओर बढ़ती है। अब देवनगर को बचाने की आख़िरी उम्मीद सिर्फ़ जटायु है। यह कहानी सीधी, सरल और तेज़ है — और यही वजह है कि बच्चे और किशोर इसे बिना रुके पढ़ते चले जाते हैं।
चित्रांकन शैली और कलाकृति का असर
A.M.G. का चित्रांकन भारतीय कॉमिक्स की क्लासिक शैली का शानदार उदाहरण है। उनकी कला सिर्फ़ कहानी को दिखाती नहीं, बल्कि उसे ज़िंदा कर देती है। एक्शन सीन में भरपूर एनर्जी और मूवमेंट दिखती है। बकासुर को इतना बड़ा और डरावना दिखाया गया है कि उसके आते ही डर अपने आप महसूस होता है। जब वो “हा… हा… हा…!” हँसता है, तो उसके चेहरे की क्रूरता सच में डर पैदा करती है।
कलाकार ने भावनाएँ दिखाने में भी गज़ब का काम किया है। आम लोगों के चेहरों पर डर, राजा की उलझन — सब कुछ साफ़ झलकता है। जब लोग भागते हुए “भागो… बचाओ! दैत्य आ गया!” चिल्लाते हैं, तो उनकी आँखों और हरकतों से उनका डर महसूस होता है।
पैनलिंग का इस्तेमाल बहुत सोच-समझकर किया गया है। बड़े पैनल वहाँ हैं जहाँ एक्शन या ज़रूरी डायलॉग्स हैं, जबकि छोटे पैनल कहानी की गति और समय के बदलाव को दिखाते हैं — जैसे बकासुर का पृथ्वीलोक में उतरना और फिर राजमहल की ओर बढ़ना। देवनगर की गलियाँ और राजमहल सादे और असली लगते हैं, जिससे ध्यान किरदारों की भावनाओं पर रहता है। पृष्ठ 10 पर राजमहल की खाली गलियाँ सच में “मौत का सन्नाटा” महसूस कराती हैं — जो बताता है कि अब जटायु का आना कितना ज़रूरी हो गया है।
भाषा, संवाद और नैतिक संदेश
पपिन्द्र जुनेजा की लेखन शैली इस कॉमिक्स की असली ताकत है। 80 और 90 के दशक की भारतीय कॉमिक्स की तरह यहाँ भी हिंदी सीधी, साफ़ और असरदार है। संवादों में ड्रामा और जोश है — जैसे “तो सुन बकासुर! अगर तू अपने पुत्र के प्राण बचाना चाहता है…” या फिर बकासुर का जवाब — “राजन अपनी भलाई चाहते ही तो सामने आओ!” — ये लाइनें सीधे दिल में उतर जाती हैं।
भाषा आसान है लेकिन गरिमा बनाए रखती है। “कुलदेवता, पृथ्वीलोक, वैबिक शक्तियाँ, दृढ़ प्रण” जैसे शब्द कहानी को पौराणिक और गंभीर स्वाद देते हैं।

सबसे अहम बात — इस कॉमिक्स का नैतिक संदेश बहुत साफ़ है: निःस्वार्थ सेवा ही सबसे बड़ी ताकत है। जटायु को उसकी शक्तियाँ उसके बचपन के अच्छे कर्म और दूसरों की मदद करने की कसम की वजह से मिली थीं। कहानी बच्चों को ये सिखाती है कि बड़ी शक्तियाँ सिर्फ़ उन्हीं को मिलती हैं जो ज़िम्मेदार और ईमानदार हों। राजा की लाचारी और मुक्तिराज की मासूमियत नायक के लिए वो माहौल तैयार करते हैं जहाँ उसे अन्याय के ख़िलाफ़ खड़ा होना ही पड़ता है — और वहीं से असली नायक जन्म लेता है।
भारतीय कॉमिक्स दुनिया में जटायु का स्थान
जटायु की अहमियत सिर्फ़ उसकी कहानी तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे भारतीय कॉमिक्स इतिहास में उसका एक खास मुकाम है। यह कॉमिक्स उस दौर की ज़रूरत को पूरा करती थी, जब पाठक ऐसे नायकों को देखना चाहते थे जो भारतीय धरती से जुड़े हों — जिनमें ताकत भी हो, संस्कृति की झलक भी और नैतिकता का आधार भी।
जटायु, नागराज, सुपर कमांडो ध्रुव, और डोगा जैसे मशहूर नायकों की कतार में शामिल होकर भारतीय सुपरहीरो की पहचान को और मज़बूत बनाता है।
‘जटायु’ ये भी दिखाता है कि हमारे लेखक और कलाकार किस तरह से पश्चिमी कॉमिक्स के “सुपरहीरो कॉन्सेप्ट” को भारतीय मिथकों से जोड़ने में सफल रहे — जैसे गरुड़, इंद्र और दिव्य शक्तियों की झलक।
जटायु का किरदार सिर्फ़ एक नायक नहीं है, बल्कि एक प्रेरणा भी है — जो हमें बताता है कि सच्चा हीरो वही है जो दूसरों के लिए, बिना किसी स्वार्थ के, डटकर खड़ा हो जाए। उसका दृढ़ संकल्प और निःस्वार्थ सोच आज के समय में भी उतनी ही मायने रखती है जितनी तब रखती थी।
निष्कर्ष और अंतिम विचार
‘जटायु’ कॉमिक्स संख्या 881 अपनी मजबूत कहानी, तेज़ रफ्तार घटनाक्रम और क्लासिक भारतीय चित्रकला की वजह से एक यादगार पढ़ने का अनुभव देती है। इसमें दिखाया गया संघर्ष — जहाँ एक तरफ़ दैत्य बकासुर का क्रूर इरादा है, वहीं दूसरी तरफ़ जटायु की इंसानियत और नैतिकता — अच्छाई की जीत का खूबसूरत उदाहरण बन जाता है।
यह कॉमिक्स उन सभी लोगों के लिए खास है जो भारतीय कॉमिक्स के स्वर्णिम युग की सादगी, शक्ति और भावनात्मक गहराई को फिर से महसूस करना चाहते हैं। लेखक पपिन्द्र जुनेजा ने कहानी को सीधा लेकिन प्रभावशाली रखा है, और कलाकार A.M.G. ने अपने चित्रों से इसे ज़िंदा कर दिया है।
‘जटायु’ आज भी उतनी ही प्रासंगिक लगती है जितनी अपने समय में थी। यह सिर्फ़ एक कॉमिक्स नहीं, बल्कि भारतीय सुपरहीरो की विरासत का एक मजबूत और गर्वभरा हिस्सा है। हर पन्ना उस सुनहरे दौर की याद दिलाता है, जब नायक सिर्फ़ ताकतवर नहीं, बल्कि दिल से भी सच्चे हुआ करते थे।
