राज कॉमिक्स, डायमंड कॉमिक्स और मनोज कॉमिक्स जैसे बड़े नामों के बीच, तुलसी कॉमिक्स ने भी अपनी अलग पहचान बनाई थी। इसी प्रकाशन से एक ऐसा हीरो सामने आया जिसकी कहानी और सोच आज भी कॉमिक्स फैंस के बीच चर्चा का टॉपिक है – “बाज़“। लेखक परशुराम शर्मा की कलम और चित्रकार विकास पंकज की कूची से निकली यह कॉमिक्स अपने दौर में एक जबरदस्त एक्शन और मजेदार एंटरटेनमेंट से भरी प्रस्तुति थी।
“बाज़” की कहानी सिर्फ एक सुपरहीरो की दास्तां नहीं है, बल्कि यह उस अपराधी की जर्नी है जो हालात और किस्मत के चक्कर में फंसकर आखिरकार हीरो बन जाता है। इसमें पहचान, नियति और परिस्थितियों के टकराव को बड़ी दिलचस्पी से दिखाया गया है।
यह समीक्षा तुलसी कॉमिक्स डाइजेस्ट के अंक संख्या 455 – “बाज़“ पर आधारित है। यह हमें उस दौर की याद दिलाती है जब कॉमिक्स के पन्नों पर कल्पना खुलकर उड़ान भरती थी और पाठक हर पन्ना पलटते ही एक नई दुनिया में खो जाता था। तो चलिए, इस समीक्षा के जरिए “बाज़” की दुनिया में गहराई से झांकते हैं और देखते हैं कि क्या यह कॉमिक्स आज भी उतनी ही रोमांचक और मजेदार लगती है।
एक अपराधी, एक राजकुमार और अनचाही किस्मत
कहानी की शुरुआत सीधी लेकिन बेहद रोमांचक है। सीमावर्ती शहर तारापुर की जेल से देव नाम का एक खतरनाक और बदनाम अपराधी भाग निकलता है। पुलिस उसके पीछे लगी है और वह किसी भी तरह बॉर्डर पार करना चाहता है। बारिश से भीगी, तूफानी रात में वह हाईवे पर गाड़ी रोकने के लिए पत्थरों से रास्ता ब्लॉक कर देता है। उसका मकसद साफ है – गाड़ी छीनकर वहां से भाग जाना। लेकिन यहीं से कहानी ऐसा मोड़ लेती है जिसकी देव ने कभी उम्मीद भी नहीं की थी।

जैसे ही गाड़ी रुकती है, उसमें से अजीब वेशभूषा वाले सैनिक निकलते हैं, जो मानो किसी और ही दुनिया से आए हों। देव पूरी ताकत से उन पर टूट पड़ता है। लेकिन वे न सिर्फ उससे ज्यादा ताकतवर निकलते हैं, बल्कि उसे चौंकाते हुए उसे “राजकुमार” कहकर बुलाते हैं। देव बार-बार समझाता है कि वह तो बस एक अपराधी है, लेकिन उसकी कोई नहीं सुनता। उल्टा वे उसे पकड़कर जबरदस्ती एक थैले में बंद कर लेते हैं।
जब देव की आंखें दोबारा खुलती हैं, तो खुद को एक शाही और भव्य कक्ष में पाता है। परियों जैसी दिखने वाली दासियां उसकी सेवा कर रही होती हैं। उसे बताया जाता है कि वह अपने महल में है। देव के लिए यह सब किसी पहेली से कम नहीं। वह वहां से भागने की कोशिश करता है, लेकिन हर ओर कड़ा पहरा है। जल्द ही उसे इस रहस्यमयी जगह के शासक, “गुरुदेव” के सामने लाया जाता है। गुरुदेव बेहद प्रभावशाली और रहस्यमयी व्यक्तित्व वाला इंसान है। वह देव को बताता है कि असल में वह देवलोक का खोया हुआ राजकुमार है, और सालों की साधना के बाद वे उसे ढूंढ पाए हैं।
देव को यह सब किसी नाटक जैसा लगता है। वह बार-बार अपनी असली पहचान बताता है, लेकिन कोई उसकी बात पर भरोसा नहीं करता। गुरुदेव उसे यह भी विश्वास दिलाता है कि उसके माता-पिता यानी महाराज और महारानी, एक दुष्ट दुश्मन “योद्धा” की कैद में हैं। उन्हें छुड़ाने की जिम्मेदारी अब उसी पर है।
देव अब भी कुछ समझ नहीं पाता, लेकिन गुरुदेव उसे राजकुमार मानने पर अड़ा रहता है। आने वाली जंग के लिए तैयार करने के मकसद से वह देव को कई कठिन परीक्षाओं से गुजरने पर मजबूर करता है। इन परीक्षाओं में देव को अपनी ताकत, अक्ल और हिम्मत – तीनों का इम्तिहान देना पड़ता है।
कहानी का सबसे बड़ा मोड़ तब आता है जब गुरुदेव देव को देवलोक की शाही पोशाक पहनने को कहते हैं। यह पोशाक हूबहू डीसी कॉमिक्स के मशहूर हीरो “बैटमैन” जैसी लगती है – काला मास्क, नुकीले कानों वाला काउल और चमगादड़ जैसे लंबे पंखों वाला केप। जैसे ही देव यह पोशाक पहनता है, वह एक अपराधी से बदलकर नायक “बाज़” में बदल जाता है।
शुरुआत में देव यह सब सिर्फ अपनी जान बचाने और मौका मिलते ही भाग जाने के लिए करता है। लेकिन धीरे-धीरे वह इस रोल में ढलने लगता है। वह गुरुदेव की हर परीक्षा पास कर लेता है, अपनी खास क्षमताओं से सबको हैरान कर देता है और अनजाने में ही उस प्रजा का भरोसा जीत लेता है जिसे वह असल में जानता तक नहीं।
लेकिन कहानी यहीं पर और टेढ़ी हो जाती है। गुरुदेव को देव पर शक होने लगता है। उन्हें लगने लगता है कि यह असली राजकुमार नहीं बल्कि कोई और ही है। जब गुरुदेव यह बात महाराज को बताते हैं, तो वे गुस्से में देव को जिंदा या मुर्दा पकड़ने का आदेश दे देते हैं।

अब देव के सामने सबसे कठिन चुनौती खड़ी है। उसे न सिर्फ अपनी जान बचानी है, बल्कि इस जगह से निकलने का रास्ता भी ढूंढना है। और यहीं से उसका असली ट्रांसफॉर्मेशन होता है – एक अपराधी, जिसे मजबूरी में हीरो का मुखौटा पहनाया गया था, अब अपनी मर्जी से इंसानियत का रक्षक “बाज़” बनने का फैसला करता है।
कॉमिक्स का अंत एक दमदार और रोमांचक लड़ाई के साथ होता है, और साथ ही अगली कड़ी “बाज़ का आतंक” की झलक भी मिलती है, जो पाठकों को और ज्यादा एक्शन और थ्रिल का वादा करती है।
चरित्र–चित्रण: नायक, खलनायक और बीच के किरदार
देव / बाज़: इस कॉमिक्स का नायक बाकी सुपरहीरोज़ से थोड़ा अलग है, और यही उसकी सबसे खास बात है। देव की शुरुआत हम एक सख्त, स्वार्थी और हिंसक अपराधी के रूप में देखते हैं। वह सिर्फ खुद की परवाह करता है। लेकिन हालात उसे जबरदस्ती हीरो की भूमिका में धकेल देते हैं। धीरे-धीरे उसके अंदर का नया चेहरा सामने आने लगता है। यह बदलाव अचानक नहीं होता – वह अक्सर कन्फ्यूज रहता है, गुस्सा करता है और हर वक्त भागने का प्लान बनाता है। लेकिन उसकी आपराधिक पृष्ठभूमि से मिले लड़ने के हुनर और अंदर छिपे साहस की वजह से वह धीरे-धीरे एक असरदार नायक बन जाता है। यह असल में एंटी-हीरो का हीरो बनने की क्लासिक मिसाल है, जिसे भारतीय कॉमिक्स ने बहुत खूबसूरती से दिखाया है।
गुरुदेव: गुरुदेव खुद को एक आदर्श गुरु और सलाहकार के रूप में पेश करता है। लंबी दाढ़ी, माथे पर तिलक और रहस्यमयी आभा उसे काफी प्रभावशाली बनाती है। लेकिन असल में वह एक शातिर दिमाग वाला इंसान है। उसने देव को जाल में फंसाकर, अपनी चालों से उसे इस्तेमाल करने की पूरी प्लानिंग कर रखी है। उसका किरदार हमें यह सिखाता है कि सामने जो दिखता है, वो हमेशा सच नहीं होता।
वामन और अन्य सैनिक: गुरुदेव के अनुयायियों में सुरक्षा अधिकारी वामन और बाकी सैनिक शामिल हैं। ये सभी सीधेसादे, वफादार और अपने “राजकुमार” के लिए जान तक देने को तैयार रहते हैं। वे आँख मूंदकर गुरुदेव के आदेश मानते हैं और यकीन करते हैं कि वही सही कर रहे हैं। इन किरदारों की वजह से कहानी में एक्शन तो आता ही है, साथ ही हल्का-फुल्का हास्य भी घुल जाता है। उनकी अपार ताकत और देव को राजकुमार मानने की ज़िद ही कहानी को आगे बढ़ाने में बड़ा रोल निभाती है।
कला और चित्रांकन: विकास पंकज का नजरिया
विकास पंकज का चित्रांकन 90 के दशक की भारतीय कॉमिक्स की शैली का बेहतरीन उदाहरण है। उनकी कला में एक तरह का कच्चापन और गतिशीलता है, जो एक्शन सीन को पूरी तरह जीवंत बना देता है।
चरित्र डिज़ाइन: बाज़ का लुक साफ तौर पर बैटमैन से प्रेरित है (या कहें कि नकल)। उस समय विदेशी नायकों से आइडिया लेना आम था, और तुलसी कॉमिक्स ने भी यही अपनाया। इससे एक तरफ मौलिकता थोड़ी कम लगती है, लेकिन दूसरी तरफ यह उस दौर का एक अलग आकर्षण भी है और आज के पाठकों को भी दिलचस्प लगता है।
गुरुदेव और उसके सैनिकों का डिज़ाइन भारतीय पौराणिक कथाओं और फंतासी कहानियों की याद दिलाता है, जिससे कहानी में एक देसी टच मिलता है।
एक्शन सीक्वेंस: कॉमिक्स के लड़ाई के दृश्य बहुत ही एनर्जेटिक हैं। पैनल्स में गति और प्रभाव साफ दिखाई देता है। “ठाक!”, “धड़ाम!”, “शपाक!” जैसी ध्वनि प्रभाव (कैलीग्राफी: आराधना वर्मा, प्रमिला जैन) इन दृश्यों में जान डालते हैं और पढ़ने का मजा दोगुना कर देते हैं।
रंगों का प्रयोग: कॉमिक्स में इस्तेमाल किए गए रंग बहुत चटक और जीवंत हैं। यह उस समय की प्रिंटिंग तकनीक का एक खास हिस्सा था। रंग कहानी के नाटकीय माहौल को और बढ़ाते हैं और इसे एक विंटेज लुक देते हैं, जो पुराने कॉमिक्स प्रेमियों को बेहद पसंद आता है।
विषय और मूल-भाव
“बाज़” सिर्फ एक एक्शन कॉमिक्स नहीं है, बल्कि यह कई दिलचस्प विषयों को छूती है; कहानी पहचान के संकट के इर्द-गिर्द घूमती है, जहाँ एक अपराधी को राजकुमार समझ लिया जाता है, जिससे यह सवाल उठता है कि असली पहचान हमारे भीतर है या दुनिया की धारणा में, वहीं नियति बनाम कर्म का द्वंद्व भी सामने आता है, जो दिखाता है कि हालात हमारी भूमिका तय कर सकते हैं लेकिन अंततः हमारे चुनाव और कर्म ही हमें नायक या खलनायक बनाते हैं; इसके साथ ही देव का अपराधी से रक्षक बनने का सफर छुटकारे (Redemption) की ताकतवर कहानी पेश करता है और यह बताता है कि किसी में भी अच्छाई की चिंगारी जगाई जा सकती है; साथ ही बाज़ का किरदार पश्चिमी सुपरहीरो आइडिया को भारतीय कथा शैली में सफलतापूर्वक ढालता है, जिससे यह कॉमिक्स एक यादगार और अनोखी कृति बनती है।
निष्कर्ष: क्या आज भी उड़ान भर सकता है “बाज़”?
तो सवाल यह है कि क्या “बाज़” आज भी पाठकों का मनोरंजन कर सकता है? जवाब है – हाँ, बिल्कुल।
यह कॉमिक्स अपने समय का एक आईना है। इसकी कहानी तेज़-तर्रार है, रहस्य और रोमांच का सही मिश्रण है, और एक अपराधी के नायक बनने की इसकी मूल सोच आज भी उतनी ही दिलचस्प है। हाँ, बैटमैन से इसकी कुछ समानता मौलिकता पर सवाल खड़ा करती है, लेकिन कहानी का देसी अंदाज़ और दमदार एक्शन इस कमी को पूरी तरह संतुलित कर देते हैं।
“बाज़” उन लोगों के लिए ज़रूरी है जो भारतीय कॉमिक्स के इतिहास को जानना चाहते हैं। यह युवा पाठकों के लिए एक मज़ेदार और एक्शन से भरी कहानी है, और पुराने पाठकों के लिए यह पुराने दिनों की मीठी यादों का झोंका है। परशुराम शर्मा और विकास पंकज ने मिलकर एक ऐसा नायक बनाया जो शायद पूरी तरह मौलिक न हो, लेकिन जिसकी कहानी में दम और आकर्षण है।
अंत में, “बाज़” तुलसी कॉमिक्स की एक ऐसी कृति है जिसे भुलाया नहीं जाना चाहिए। यह दिखाता है कि भारतीय कॉमिक्स उद्योग में हमेशा नई और अनोखी कहानियों के लिए जगह रही है। अगर आपको एक्शन, फंतासी और मजबूत कहानी वाली कॉमिक्स पसंद हैं, तो “बाज़” की उड़ान आपको बिल्कुल निराश नहीं करेगी।