तुलसी कॉमिक्स ने ‘अंगारा’ के रूप में ऐसा योद्धा दिया था जो हर मायने में बाकी सुपरहीरोज़ से अलग और अनोखा था। अंगारा कोई आम हीरो नहीं था; वो तो खुद प्रकृति की ताकत का जीवित रूप था। उसे बनाया गया था जानवरों के बेहतरीन गुणों से — शेर का दिल, हाथी की ताकत, गिद्ध की नज़र, लोमड़ी की समझदारी और गैंडे की मज़बूत खाल।
अंगारा की कहानियाँ सिर्फ़ रोमांच और लड़ाई तक सीमित नहीं थीं, बल्कि हर बार इनमें एक गहरा सामाजिक संदेश होता था — जैसे प्रकृति की रक्षा और अंधविश्वास के खिलाफ़ जागरूकता। इन्हीं शानदार कहानियों में से एक बेहद यादगार और असरदार कहानी है “अंगारा और शीबा की जंग” (अंक संख्या 186)। यह कॉमिक्स सिर्फ़ एक कहानी नहीं, बल्कि एक ऐसा अनुभव है जो अपने वक्त से आगे की सोच दिखाता है।
परशुराम शर्मा की कहानी और प्रदीप साठे की ज़िंदादिल आर्टवर्क से सजी यह कॉमिक्स आज भी उतनी ही असरदार लगती है। यह केवल एक्शन और एडवेंचर की कहानी नहीं है, बल्कि पाखंड, हिंसा और अंधविश्वास पर तर्क, दया और इंसानियत की जीत की कहानी है।
आस्था बनाम पाखंड
“अंगारा और शीबा की जंग” की कहानी अमेज़न घाटी के घने और रहस्यमयी जंगलों में सेट है। यहाँ एक स्थानीय रेड इंडियन कबीला रहता है, जो ‘शीबा’ नाम के एक डरावने देवता से सहमा हुआ है। उनका डर इतना गहरा है कि वे हर साल एक रिवाज के तौर पर निर्दोष जानवरों की बलि देकर उसे खुश करने की कोशिश करते हैं।

इसी वक्त हमारा नायक अंगारा कहानी में आता है। वो जंगल का रक्षक है, और जानवरों के साथ ऐसी निर्दयता देखकर उसका दुखी होना लाज़मी है। अंगारा तय करता है कि वो इस क्रूर परंपरा को खत्म करेगा। यहीं से शुरू होती है एक ऐसी जंग जो सिर्फ़ ताकत की नहीं, बल्कि सोच, हिम्मत और समझदारी की भी है।
कहानी का ताना-बाना बहुत सोच-समझकर बुना गया है। ये एक क्लासिक हीरो जर्नी की तरह है, जहाँ नायक को अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए कई मुश्किल रास्ते पार करने पड़ते हैं। लेखक ने इसे एक रहस्यमयी पहेली की तरह लिखा है —
शीबा असल में कौन है?
क्या वो सचमुच कोई देवता है या कोई खतरनाक दैत्य?
या फिर ये सब किसी चाल या साज़िश का हिस्सा है?
इन सवालों के जवाब पाने के लिए अंगारा को कबीले की एक कठिन परीक्षा देनी होती है। उसी परीक्षा को पास करने के बाद उसे ‘महायोद्धा’ का दर्जा मिलता है, जिससे उसे शीबा की रहस्यमयी गुफा में जाने की इजाज़त मिलती है।
यह गुफा खुद एक किरदार जैसी लगती है — अंधेरी, डरावनी और जानलेवा। ये उस डर और पाखंड का प्रतीक है, जिसे कुछ चालाक लोग अपनी सत्ता बचाने के लिए जिंदा रखते हैं। अंगारा का इस गुफा तक का सफर असल में अंधविश्वास के दिल में उतरकर सच्चाई की तलाश का प्रतीक है।

कहानी हमें सिर्फ़ ये नहीं बताती कि आखिर क्या होने वाला है, बल्कि हमें अंगारा के साथ उस रहस्य के अंदर ले जाती है। यही परशुराम शर्मा की लिखावट की खूबी है — वो पाठक को आख़िर तक बांधे रखते हैं।
साथ ही, कहानी में एक समानांतर उप-कथानक भी चलता है जिसमें अंगारा का वैज्ञानिक दोस्त चार्ली शामिल है। चार्ली वाला हिस्सा कहानी को एक और गहराई देता है — ये दिखाता है कि विज्ञान और प्रकृति का आपस में संतुलन बनाए रखना कितना ज़रूरी है।
प्रकृति, विज्ञान और पाखंड के प्रतीक
किसी भी कहानी की असली जान उसके किरदार होते हैं — और इस कॉमिक्स में हर किरदार अपने आप में एक मज़बूत प्रतीक बनकर सामने आता है।
अंगारा: अंगारा सिर्फ़ एक हीरो नहीं है, बल्कि एक सोच है। वो “प्रकृति पुत्र” की अवधारणा को असली रूप देता है। उसकी शक्तियाँ किसी लैब एक्सपेरिमेंट या किसी देवी-देवता की कृपा से नहीं आतीं — वो तो खुद जंगल और उसके जीवों की सामूहिक ताकत का नतीजा है।
वो जानवरों से बात कर सकता है, उनकी भाषा समझ सकता है, और जंगल के सारे जीव उसे अपना रक्षक मानते हैं।
अंगारा हमें ये सिखाता है कि असली ताकत विनाश में नहीं, बल्कि संरक्षण में होती है। वो अपनी बुद्धि और तर्क से काम करता है, और अंधविश्वास के खिलाफ़ खुलकर आवाज़ उठाता है।
वो उस पाखंडी ओझा से सवाल करता है, उसे चुनौती देता है और कोशिश करता है कि कबीले के लोग अपने डर से आज़ाद हो जाएँ।
शीबा (खलनायक की अवधारणा): इस कहानी में ‘शीबा’ एक बहुरूपी और गहराई वाला खलनायक है। पहले स्तर पर, वो एक अदृश्य डर है — ऐसा देवता जिसका नाम सुनकर ही लोग कांप उठते हैं। दूसरे स्तर पर, शीबा उस सत्ता का प्रतीक है, जिसे चालाक पुजारी (ओझा) अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करता है। और तीसरे, सबसे ख़तरनाक स्तर पर, शीबा एक वास्तविक खतरा भी है — जो डर, पाखंड और क्रूरता का मिश्रण है। शीबा का किरदार भारतीय कॉमिक्स के सबसे अलग और डरावने विलेन में गिना जा सकता है। उसे हराना अंगारा के लिए सिर्फ़ ताकत का नहीं, बल्कि हिम्मत और समझदारी का भी इम्तिहान बन जाता है।

चार्ली: चार्ली इस जंगल-आधारित कहानी में आधुनिक विज्ञान और सभ्यता का प्रतीक है। वो अंगारा का साथी और पूरक है।
जहाँ अंगारा प्रकृति की सहज शक्तियों पर निर्भर है, वहीं चार्ली की ताकत विज्ञान और टेक्नोलॉजी से आती है (उसकी शक्ति सूरज की रोशनी पर निर्भर रहती है)। कहानी में उसकी मौजूदगी प्रकृति और तकनीक के मिलन को दर्शाती है। उसकी कमजोरियाँ भी हैं — जैसे अंधेरे में उसकी शक्ति खत्म हो जाती है। इससे ये बात भी साफ़ होती है कि विज्ञान भी प्रकृति के नियमों से ऊपर नहीं जा सकता।
ओझा: ओझा समाज के उन ढोंगी और पाखंडी लोगों का प्रतीक है जो धर्म और आस्था के नाम पर भोले लोगों को डराकर अपना स्वार्थ साधते हैं। वो ‘शीबा’ के नाम पर भय का व्यापार करता है। उसे पता है कि जिस दिन लोगों के मन से डर निकल गया, उसकी हुकूमत खत्म हो जाएगी। इसलिए वो अंगारा को रोकने की हर कोशिश करता है। ओझा का किरदार इस कहानी को वास्तविक धरातल पर लाता है — क्योंकि ऐसे लोग हमें अपने आस-पास की दुनिया में भी देखने को मिल जाते हैं।
एक दृश्यमान महाकाव्य
अगर परशुराम शर्मा की कथा कहानी की आत्मा है, तो प्रदीप साठे की कला उसका शरीर है। नब्बे के दशक की कॉमिक्स कला की अपनी एक विशिष्ट शैली थी, और प्रदीप साठे उस शैली के महारथी थे। उनके चित्र कहानी को जीवंत कर देते हैं; हर पैनल विस्तार और भावनाओं से भरा है। कॉमिक्स के एक्शन दृश्य असाधारण हैं; अंगारा की मांसपेशियों का तनाव, मुक्कों की धमक (‘ठाक’, ‘दुशिम’ जैसी ध्वनियों का प्रयोग) और शीबा के दैत्याकार रूप की भयावहता को साठे ने बखूबी चित्रित किया है। चरित्र डिज़ाइन के मामले में, शीबा का डिज़ाइन विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जो सचमुच किसी दुःस्वप्न जैसा दिखता है और पाठकों पर गहरा प्रभाव छोड़ता है, वहीं अंगारा का चित्रण एक आदर्श महायोद्धा का है—दृढ़, शक्तिशाली, फिर भी उसकी आँखों में करुणा है। उस दौर के सीमित प्रिंटिंग विकल्पों के बावजूद, रंगों का प्रयोग बहुत प्रभावी है; गुफा के अंदर के दृश्यों में गहरे और ठंडे रंगों का प्रयोग रहस्य और भय को बढ़ाता है, जबकि जंगल के दृश्यों में हरे और चमकीले रंगों का प्रयोग जीवन का प्रतीक है। अंत में, कहानी की गति को बनाए रखने में पैनलिंग का बड़ा योगदान है, जहाँ संवाद और एक्शन के बीच एक बेहतरीन संतुलन है, जो पढ़ने के अनुभव को सुगम और रोमांचक बनाता है।
सामाजिक सन्दर्भ और समकालीन प्रासंगिकता
“अंगारा और शीबा की जंग” अपने समय से बहुत आगे की कॉमिक्स थी, क्योंकि यह जिन मुद्दों को उठाती है, वे आज पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं। सबसे पहले, अंधविश्वास बनाम तर्क का मुद्दा; भारत जैसे देश में, जहाँ आज भी आस्था के नाम पर शोषण और पाखंड जारी है, यह कॉमिक्स एक शक्तिशाली आईना दिखाती है और यह हमें सिखाती है कि प्रश्न पूछना, तर्क करना और अज्ञान के अंधकार को चुनौती देना कितना आवश्यक है। दूसरा, पशु अधिकार और संरक्षण का विषय; कहानी का केंद्रीय संघर्ष ‘पशु बलि’ जैसी क्रूर प्रथा के इर्द-गिर्द घूमता है, और आज जब हम जलवायु परिवर्तन और जैव-विविधता के संकट से जूझ रहे हैं, तब प्रकृति और उसके जीवों के प्रति सम्मान का यह संदेश और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, जिसमें अंगारा एक इको-वॉरियर (Eco-Warrior) का सच्चा प्रतीक है। इसके अतिरिक्त, यह कॉमिक्स भय की राजनीति को भी दर्शाती है कि कैसे सत्ताधारी वर्ग ‘डर’ को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करके आम लोगों को नियंत्रित करता है; ओझा, शीबा के डर का उपयोग करके कबीले पर अपना वर्चस्व बनाए रखता है, जो एक सार्वभौमिक विषय है जो हर युग में प्रासंगिक रहता है।
निष्कर्ष
“अंगारा और शीबा की जंग” केवल एक कॉमिक्स नहीं, बल्कि एक संपूर्ण पैकेज है। यह एक ऐसी कृति है जो मनोरंजन के साथ-साथ गंभीर चिंतन भी प्रदान करती है। इसमें रोमांच है, रहस्य है, दोस्ती है, और सबसे बढ़कर, एक धड़कता हुआ सामाजिक सरोकार है। परशुराम शर्मा का लेखन और प्रदीप साठे की कला का यह संयोजन एक ऐसा अनुभव रचता है जो समय की सीमाओं को लांघ जाता है।
यह कॉमिक्स भारतीय कॉमिक्स के इतिहास में एक मील का पत्थर है, जो यह साबित करती है कि पल्प फिक्शन भी उच्च साहित्यिक और वैचारिक मूल्यों को धारण कर सकता है। यह सिर्फ पुरानी यादों (Nostalgia) का हिस्सा नहीं है, बल्कि एक ऐसी कहानी है जिसे हर पीढ़ी को पढ़ना और समझना चाहिए। यह हमें सिखाती है कि असली महायोद्धा वह है जो न केवल शारीरिक बल से, बल्कि अपने विवेक, करुणा और सत्य के प्रति निष्ठा से भी लड़ता है।
