“हंटर्स” सुपर कमांडो ध्रुव की उन कहानियों में से एक है, जो सिर्फ लड़ाई-झगड़े या दुनिया बचाने तक सीमित नहीं है। यह कहानी ध्रुव की निजी ज़िंदगी, उसके परिवार और उसके पुराने घावों को छूती है। अनुपम सिन्हा, जो अपनी गहरी और दिलचस्प storytelling के लिए जाने जाते हैं, इस कॉमिक में ध्रुव को शारीरिक लड़ाई के साथ-साथ अंदरूनी (mental) संघर्ष करते हुए भी दिखाते हैं। यह कॉमिक “बालचरित” सीरीज़ या ध्रुव के अतीत से जुड़े रहस्यों को आज की कहानी से जोड़ने वाली एक अहम कड़ी है। शुरुआत में कहानी एक ऐसे डर से खुलती है जो ध्रुव के लिए बहुत निजी है… और अंत में एक बड़े रहस्य का परदा उठता है।
विस्तृत कथानक
कहानी की शुरुआत एक बहुत ही नाटकीय और डर पैदा करने वाले सीन से होती है। यूक्रेन के ‘किएव’ शहर के एक बेहद सुरक्षित होटल में हाई-टेक चोरी चल रही होती है। ‘हंटर्स’ नाम का एक गिरोह, जिसमें अलग-अलग कौशल वाले प्रोफेशनल क्रिमिनल शामिल हैं, वहाँ से एक लैपटॉप चुरा लेता है। इस सीन से ही साफ हो जाता है कि इस बार ध्रुव का सामना किसी आम गुंडे-मवाली से नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ट्रेनिंग पाए हुए ख़तरनाक अपराधियों से होने वाला है।

इसके बाद कहानी सीधे भारत शिफ्ट होती है—राजनगर। यहाँ श्वेता (ध्रुव की बहन) को पुराने जुपिटर सर्कस की बिल्डिंग (वेयरहाउस) में कुछ गड़बड़ लगती है। वह अपनी दूसरी पहचान ‘चंडिका’ बनकर वहां जांच करने जाती है। वहीं उसकी भिड़ंत ‘उलूक’ (Owl) नाम के विलेन से हो जाती है, जो हंटर्स का एक सदस्य है। उलूक के पास उड़ने की ताकत है और वो घातक हथियार भी इस्तेमाल करता है। दोनों के बीच काफी ज़बरदस्त फाइट होती है, लेकिन हंटर्स की संख्या और उनकी तैयारी इतनी ज्यादा होती है कि चंडिका अकेले पड़ जाती है। उलूक और उसके साथी उसे बुरी तरह घायल कर देते हैं।
ध्रुव वहाँ पहुंचता है, लेकिन तब तक हालात बिगड़ चुके होते हैं। उसे श्वेता खून में लथपथ, बेहोश मिलती है। यह ध्रुव के लिए बहुत बड़ा सदमा है। वह उसे तुरंत अस्पताल ले जाता है—जहाँ डॉक्टर बताते हैं कि श्वेता कोमा में चली गई है।
पारिवारिक कलह और भावनात्मक द्वंद:
यहीं से कहानी का सबसे मजबूत और दिल को छू लेने वाला हिस्सा शुरू होता है। अस्पताल में श्वेता की हालत देखकर कमिश्नर राजन मेहरा (जो ध्रुव के दत्तक पिता हैं) खुद पर काबू नहीं रख पाते। दुख और गुस्से में वह ध्रुव को बहुत कुछ सुनाते हैं। वह ध्रुव पर यह इल्ज़ाम लगाते हैं कि उसी की वजह से श्वेता (चंडिका) इस खतरनाक रास्ते पर चली। मेहरा का यह कहना कि “खून आखिर खून होता है” और ध्रुव को पराया महसूस कराना, पाठकों के लिए भी बहुत तकलीफ देने वाला पल है। ध्रुव, जो हमेशा शांत रहता है, इस बार अंदर ही अंदर टूट जाता है, लेकिन फिर भी वह अपने पिता की बातों का सम्मान करते हुए चुप रहता है।

जांच और नताशा की एंट्री:
ध्रुव अपने दुख को गुस्से और हिम्मत में बदल देता है। वह हंटर्स को पकड़ने की तलाश शुरू करता है। उसे पता चलता है कि हंटर्स जुपिटर सर्कस के पुराने सामान में कुछ ढूंढने आए थे। इसी दौरान उसकी मदद करने के लिए नताशा आती है। ध्रुव और नताशा का रिश्ता हमेशा थोड़ा जटिल रहा है, लेकिन यहां नताशा एक सच्चे दोस्त की तरह उसके साथ खड़ी दिखती है। हालांकि, नताशा की मौजूदगी मीडिया और पुलिस के लिए एक और चर्चा का मुद्दा बन जाती है, जिससे ध्रुव की मुश्किलें और बढ़ जाती हैं।
एक्शन और क्लाइमेक्स:
सुरागों का पीछा करते हुए ध्रुव एक कंटेनर डिपो (डॉकयार्ड) तक पहुंचता है। उसे पता चलता है कि जैकब अंकल (जो जुपिटर सर्कस के पुराने सदस्य हैं) को हंटर्स ने किडनैप कर लिया है। यहां ध्रुव की भिड़ंत हंटर्स के एक और खतरनाक सदस्य ‘गिली-गिली’ से होती है। गिली-गिली एक जादूगर और सम्मोहन (hypnotism) का माहिर है। वह ध्रुव को hallucinations में फंसाकर उसे कमजोर करने की कोशिश करता है।
डॉकयार्ड में होने वाली लड़ाई बहुत रोमांचक है। ध्रुव अपनी बुद्धि और मार्शल आर्ट्स दोनों का जमकर इस्तेमाल करता है। एक समय ऐसा आता है जब ध्रुव को निहत्था कर दिया जाता है, लेकिन वह अपने भेष में पहनी पगड़ी और वहां पड़ी रस्सियों का इस्तेमाल करते हुए एक ‘कुंग-फू फाइटर’ की तरह हालात पलट देता है। आखिर में वह जैकब अंकल को बचा लेता है, लेकिन साथ ही यह भी सामने आता है कि यह सब एक बहुत बड़ी साज़िश का हिस्सा है, जो ध्रुव के अतीत से जुड़ी है। कॉमिक का अंत एक सस्पेंस पर होता है, जो अगली कड़ी ‘फ्लैशबैक’ के लिए मंच तैयार करता है।
पात्र विश्लेषण (Character Analysis)

सुपर कमांडो ध्रुव:
इस कॉमिक में ध्रुव का एक अलग रूप देखने को मिलता है। वह हमेशा की तरह पूरी तरह संतुलित नहीं है। श्वेता की हालत ने उसे गहरा झटका दिया है। जब कमिश्नर मेहरा उसे डांटते हैं, तो उसकी आंखों में एक अनाथ बच्चे का दर्द साफ झलकता है—एक ऐसा बच्चा जो अपने परिवार में पूरी तरह स्वीकार किए जाने के लिए हमेशा संघर्ष करता रहा है। फिर भी, ध्रुव का कर्तव्यबोध सबसे ऊपर रहता है। पुलिस द्वारा रोके जाने के बावजूद वह अपनी जांच जारी रखता है। उसकी डिटेक्टिव स्किल्स—जैसे ‘उलूक’ के टूटे पंखों से सुराग ढूंढना या लैपटॉप के डेटा को ट्रैक करना—उसे सच में ‘सुपर’ कमांडो साबित करती हैं।
कमिश्नर राजन मेहरा:
इस कहानी में राजन मेहरा एक तरह से ‘इमोशनल विलेन’ की तरह दिखते हैं। एक पिता होने के नाते उनका गुस्सा समझ में आता है, लेकिन ध्रुव के लिए उनके शब्द बहुत चोट पहुंचाने वाले थे। अनुपम सिन्हा ने बहुत ही real तरीके से दिखाया है कि कैसे ज्यादा तनाव में इंसान अपने सबसे करीब के लोगों को भी दुख पहुंचा सकता है। यह भी बताता है कि ध्रुव का परिवार भी परफेक्ट नहीं है—उसमें भी दरारें और गलतफहमियां हो सकती हैं।

चंडिका (श्वेता):
हालाँकि श्वेता का रोल ज़्यादातर कॉमिक में कोमा में रहने का है, लेकिन शुरुआत में उसकी लड़ाई उसकी बहादुरी पूरी तरह दिखा देती है। वह जानती थी कि सामने वाले ज्यादा और मजबूत हैं, फिर भी वह पीछे नहीं हटी। उसकी यही हिम्मत उसे ध्रुव की असली बहन साबित करती है।
विलेन (द हंटर्स):
‘हंटर्स’ कोई आम गुंडों का गिरोह नहीं है। अनुपम सिन्हा ने हर विलेन को अलग पहचान और अलग स्टाइल दिया है:
उलूक (The Owl): यह उड़ सकता है और हवा से हमला करने में माहिर है। इसका डिजाइन और इसके गैजेट्स एकदम मॉडर्न फील देते हैं।

गिली–गिली: यह किरदार बहुत दिलचस्प है। इसका लुक एक मैजिशियन जैसा है, और यह दिमाग से खेलना जानता है। अपनी बातों और सम्मोहन (hypnotism) से यह ध्रुव को मानसिक रूप से कमजोर करने की कोशिश करता है।
इनका लीडर कौन है और उनका असली मकसद क्या है—यह कॉमिक में पूरा नहीं बताया जाता, जिससे रहस्य और भी बढ़ जाता है।
नताशा:
नताशा इस कहानी में एक तरह का संतुलन बनाती है। जब परिवार की तरफ से ध्रुव अकेला पड़ जाता है, तब नताशा उसका साथ देती है। उसका सीधा-सादा, “नो-नॉनसेंस” रवैया और ध्रुव के प्रति उसका भरोसा कहानी में एक पॉजिटिव ऊर्जा लाता है।
कला और चित्रांकन (Art and Artwork)
अनुपम सिन्हा का आर्टवर्क हमेशा की तरह डिटेल्ड और बहुत ही ज़िंदा महसूस होता है।
शुरुआती पन्नों में अस्पताल के सीन, आईसीयू की मशीनें, और किरदारों के चेहरे पर पसीना और आँसू—सब कुछ बेहद बारीकी से बनाया गया है।
पेज 80–84 के बीच डॉकयार्ड की फाइट का चित्रांकन तो कमाल का है। खासकर वह सीन जहाँ ध्रुव रस्सी और कपड़ों का इस्तेमाल करके ‘जैकी चैन’ स्टाइल में फाइट करता है—बहुत डायनामिक लगता है। मूवमेंट दिखाने के लिए स्पीड लाइन्स का शानदार उपयोग किया गया है।
पेज 41 पर राजन मेहरा का गुस्सा और पेज 42 पर ध्रुव का टूटा हुआ, दर्द से भरा चेहरा—दोनों बिना डायलॉग के भी बहुत कुछ कह देते हैं।
रंगों का इस्तेमाल भी कहानी के हिसाब से बदलता है—एक्शन वाले सीन में चमकदार रंग और अस्पताल वाले हिस्सों में हल्के, उदासी भरे टोन।
दत्तक पुत्र का संघर्ष (The Struggle of an Adopted Son):
यह कॉमिक ध्रुव की ज़िंदगी के सबसे दर्दनाक सच को सामने रखती है। भले ही मेहरा परिवार उसे प्यार करता है, लेकिन मुश्किल घड़ी में “खून का रिश्ता” और “गोद लिया हुआ रिश्ता” का फर्क उनके व्यवहार में साफ दिख जाता है। यह समाज की एक कड़वी हकीकत भी दिखाता है।

अतीत की परछाई:
जुपिटर सर्कस जल चुका है, ध्रुव के असली माता-पिता अब नहीं रहे, लेकिन हंटर्स का वहीँ कुछ ढूंढना बताता है कि अतीत कभी पूरी तरह खत्म नहीं होता। यह ध्रुव के “बालचरित” वाले अतीत को फिर से ज़रूरी बना देता है।
टीम वर्क बनाम अकेलापन:
ध्रुव आमतौर पर अकेले काम करना पसंद करता है, लेकिन यहाँ उसे नताशा, करीम और यहाँ तक कि मीडिया की भी अपनी जगह पर भूमिका दिखती है। दूसरी तरफ हंटर्स एक संगठित टीम हैं, और यही बात ध्रुव को अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर करती है।
समीक्षात्मक विश्लेषण (Critical Analysis)
सकारात्मक पक्ष (Pros):
भावनात्मक गहराई: यह सिर्फ एक मार-धाड़ वाली कॉमिक नहीं है। यह ध्रुव को इंसानी रूप में दिखाती है। उसे टूटते हुए, दुख झेलते हुए और अपमान सहते हुए देखना पाठकों को उससे और जोड़ देता है।
तेज रफ्तार (Pacing): कहानी कहीं भी रुकती या बोरिंग नहीं लगती। अस्पताल के इमोशनल ड्रामा से लेकर गोदाम वाली फाइट तक, सब कुछ तेज़ी से और मज़ेदार तरीके से आगे बढ़ता है।
संवाद (Dialogue): अनुपम सिन्हा के डायलॉग हमेशा की तरह दमदार हैं। खासकर मेहरा और ध्रुव की टकराव वाली बातचीत—सीधी, कड़वी और याद रह जाने वाली है।

नकारात्मक पक्ष (Cons):
अधूरापन: क्योंकि यह एक बड़ी कहानी का हिस्सा है, इसलिए “हंटर्स” में कोई पूरी खत्म होने वाली फील नहीं आती। विलेन का असली मकसद और ‘जैकेब’ का पूरा रहस्य अगली कॉमिक के लिए छोड़ दिया गया है। जो लोग एक ही कॉमिक में सब कुछ क्लियर होने की उम्मीद करते हैं, उन्हें थोड़ा अधूरापन महसूस हो सकता है।
पुलिस की भूमिका: पुलिस को थोड़ा कमजोर दिखाया गया है। इतनी बड़ी घटना के बाद भी वे हंटर्स को पकड़ने में पूरी तरह ध्रुव पर निर्भर लगते हैं। कमिश्नर का व्यवहार भी कई बार कुछ ज्यादा ही भावुक और अनसोचा-समझा लगता है—भले ही वह गुस्से और तनाव में हों।
निष्कर्ष (Conclusion)
“हंटर्स” राज कॉमिक्स की उन महत्वपूर्ण कॉमिक्स में से एक है, जिसे खास तौर पर वे लोग पसंद करेंगे जो ध्रुव के किरदार की गहराई और उसके बदलाव को समझना चाहते हैं। यह कॉमिक साफ दिखाती है कि ध्रुव की सबसे बड़ी ताकत उसकी बॉडी नहीं, बल्कि उसकी इच्छा-शक्ति, मानसिक मजबूती और अपने लोगों के लिए खड़े रहने की हिम्मत है।
अनुपम सिन्हा ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह भारतीय कॉमिक्स इंडस्ट्री के टॉप कहानीकार क्यों माने जाते हैं। उन्होंने सुपरहीरो स्टाइल में जो पारिवारिक ड्रामा और इमोशन का तड़का लगाया है, वह सच में तारीफ के काबिल है।
अगर आप सुपर कमांडो ध्रुव के फैन हैं, तो यह कॉमिक मिस नहीं कर सकते। यह आपको हंसाएगी नहीं, लेकिन ध्रुव के दर्द को महसूस करवाएगी और आपको उसकी अगली जीत के लिए चियर करने पर मजबूर कर देगी। 1500 शब्दों में इस कॉमिक के हर पहलू को समेटना मुश्किल है, लेकिन एक लाइन में कहें तो—यह एक “मस्ट रीड” है।
रेटिंग: 4.5/5
सिफारिश: इसे पढ़ते समय अगली कॉमिक “फ्लैशबैक” भी पास रखें, क्योंकि इसका सस्पेंस आपको रुकने नहीं देगा।
