राधा कॉमिक्स ने भारतीय पाठकों को कई यादगार सुपरहीरो दिए हैं, जैसे ‘जूडो क्वीन राधा’, ‘शक्तिपुत्र’ और ‘जांबाज ज्वाला’। आज हम जिस कॉमिक्स की समीक्षा करने जा रहे हैं, वह इसी प्रकाशन की एक बेहतरीन पेशकश है—”जांबाज ज्वाला”। यह कॉमिक्स सिर्फ एक सुपरहीरो की उत्पत्ति (Origin Story) की कहानी नहीं है, बल्कि उस समय की विज्ञान कथा (Sci-Fi) और फंतासी (Fantasy) का एक शानदार मिश्रण भी है। लेखक रजत राजवंशी और चित्रकार परविन्द्र मिश्रा की जोड़ी ने इसे एक यादगार और दिलचस्प अनुभव बना दिया है।
इस समीक्षा में हम कहानी के अलग-अलग पहलुओं, पात्रों की खासियत, चित्रांकन शैली और कहानी के प्रवाह का गहराई से विश्लेषण करेंगे।
अतीत के गर्भ से वर्तमान का उदय
कहानी की शुरुआत एक फ्लैशबैक (Flashback) से होती है, जो हमें 100 साल पीछे ले जाती है। जगह है—मैग्नम टापू (Magnum Island)। यह टापू कभी विज्ञान और शोध का केंद्र रहा था, जहाँ महान जीव वैज्ञानिक डॉ. मिखाईल वासुकोव अपने प्रयोगशाला में प्रकृति के नियमों को चुनौती देने वाले प्रयोग कर रहे थे। उन्होंने कई प्राणियों के डिम्ब और शुक्राणु जमा किए थे, जो भविष्य की किसी बड़ी योजना का हिस्सा थे।

लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। एक भयंकर भूकंप और ज्वालामुखी विस्फोट ने पूरे टापू को तहस-नहस कर दिया। डॉ. वासुकोव की प्रयोगशाला और उनके सपने मलबे और लावे के नीचे दब गए। यह शुरुआत पाठक के मन में जिज्ञासा पैदा करती है कि आखिर उस तबाही के बाद क्या बचा होगा?
वर्तमान में वापसी और नए किरदारों का आगमन
कहानी 100 साल आगे बढ़ती है। हम मिलते हैं डॉ. वासुकोव के वंशजों से—उनके पोते और पड़पोते आन्द्रे से। वे मैग्नम टापू पर वापस लौटते हैं। यहाँ लेखक ने पीढ़ियों के अंतर को बहुत सुंदर तरीके से दिखाया है। जहां दादाजी अपने पिता के उस टापू पर रहने के फैसले पर संदेह रखते हैं, वहीं 21वीं सदी का नौजवान आन्द्रे उस टापू की खूबसूरती और शांति से प्रभावित है।
यहाँ उनकी मुलाकात खुर्रम से होती है, जो पीढ़ियों से वासुकोव परिवार की जमीन की देखभाल कर रहा है। खुर्रम वफादारी का प्रतीक है, जो हर मुश्किल के बावजूद अपने मालिक की संपत्ति की रक्षा करता है। लेकिन हर कहानी में एक खलनायक भी जरूरी होता है, और यहाँ वह भूमिका निभाता है—सलमान।
संघर्ष और रहस्य
सलमान एक स्थानीय बाहुबली और लालची आदमी है। उसे एक बार खुदाई में चांदी के जेवर मिले थे, और तभी से उसे विश्वास हो गया कि इस जमीन के नीचे खजाना दबा है। वह लगातार जमीन खोदता रहता है, जिसका विरोध खुर्रम करता है।

कहानी में मोड़ तब आता है जब सलमान, आन्द्रे और दादाजी को एक बड़े पत्थर के पास ले जाता है। सलमान अपनी ताकत दिखाते हुए उस भारी पत्थर को हटा देता है, जिससे नीचे एक गुप्त रास्ता (सीढ़ियाँ) खुल जाता है। सलमान का दावा है कि यही खजाने का रास्ता है। उसकी आँखों में लालच है, जबकि आन्द्रे और दादाजी के मन में जिज्ञासा।
भूमिगत प्रयोगशाला और ‘ज्वाला’ की खोज
सीढ़ियों से नीचे उतरते ही वे एक ऐसी दुनिया में पहुँचते हैं जो बाहर की दुनिया से कट चुकी है। यह डॉ. मिखाईल वासुकोव की नष्ट हो चुकी प्रयोगशाला का सुरक्षित हिस्सा है। यहाँ का माहौल रहस्यमयी है। उन्हें एक कंकाल मिलता है, जो डॉ. वासुकोव का है। उनके पास एक डायरी और एक चमकता हीरा (प्राकृतिक टॉर्च) मिलता है। यह हीरा कहानी में छोटा लेकिन महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अंधेरे में रोशनी दिखाता है—असल में और प्रतीकात्मक रूप से भी।
जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते हैं, गर्मी का अहसास होता है। और फिर, वे एक अद्भुत दृश्य देखते हैं। एक आग का गड्ढा (Fire Pit), जिसमें लपटें उठ रही हैं, और उन लपटों के बीच एक इंसान सो रहा है। उसका शरीर कुंदन की तरह चमक रहा है। यह दृश्य भारतीय कॉमिक्स के सबसे प्रतिष्ठित दृश्यों में से एक हो सकता है।
वह इंसान जागता है और अपना परिचय “युग पुरुष ज्वाला” के रूप में देता है। वह आग में स्नान करता है। उसके लिए आग तपिश नहीं, बल्कि जीवन है। वह बताता है कि वह डॉ. वासुकोव का पुत्र है—एक ऐसा प्राणी जिसे विज्ञान ने बनाया और प्रकृति (ज्वालामुखी) ने पाला। यह विज्ञान और प्रकृति का एक अनोखा संगम है।
धोखा और प्रतिशोध
इस बीच, सलमान अपना असली रंग दिखाता है। वह बाहर जाकर गुप्त रास्ते को पत्थर से बंद कर देता है, जिससे आन्द्रे, दादाजी, खुर्रम और ज्वाला अंदर फंस जाते हैं। सलमान का मकसद साफ है—जमीन और खजाने पर कब्जा।
ज्वाला, जिसे दुनियादारी की समझ नहीं है, अपनी शक्ति दिखाता है। वह और बाकी लोग मिलकर पत्थर हटाने की कोशिश करते हैं, लेकिन अंत में ज्वाला अपनी ताकत से रास्ता खोल देता है। जब वे बाहर आते हैं, तो पता चलता है कि सलमान ने कोहराम मचा रखा है। उसने खुर्रम के गाँव के एक बुजुर्ग माजिद की हत्या कर दी है और उसकी बेटी सोना को जबरदस्ती उठा लिया है।
अंतिम लड़ाई (The Climax)
क्लाइमेक्स में ज्वाला का सामना सलमान से होता है। यह लड़ाई सिर्फ शारीरिक नहीं है, बल्कि अच्छाई और बुराई की लड़ाई है। सलमान के पास कुल्हाड़ी है और वह क्रूर है, लेकिन ज्वाला के पास वह शक्ति है जो आग में तपकर बनी है।

ज्वाला, सलमान के हर वार को विफल कर देता है। जब सलमान कुल्हाड़ी से वार करता है, तो ज्वाला का शरीर फौलाद सा साबित होता है। अंत में, ज्वाला एक ही घूंसे में सलमान को हवा में उछाल देता है। सलमान उसी ज्वालामुखी में गिरकर मर जाता है, जिसकी आग से ज्वाला का जन्म हुआ था। यह काव्यात्मक न्याय (Poetic Justice) का शानदार उदाहरण है।
कहानी का अंत ज्वाला के निर्णय के साथ होता है। वह आन्द्रे और दादाजी के साथ शहर जाने के बजाय वहीं रहकर अपनी “माँ” (धरती/प्रकृति) और सोना की देखभाल करने का फैसला करता है। उसे लगता है कि वह अभी बाहरी दुनिया के लिए तैयार नहीं है।
चरित्र विश्लेषण (Character Analysis)
जांबाज ज्वाला (The Hero)
कॉमिक्स का नायक ज्वाला कोई आम सुपरहीरो नहीं है। वह जेनेटिक इंजीनियरिंग और ज्वालामुखी की प्राकृतिक शक्तियों से बना एक ‘टेस्ट ट्यूब बेबी’ जैसा पात्र है। उसका भोला व्यक्तित्व उसे दुनिया के छल-कपट से दूर रखता है (जैसे सलमान का धोखा), जबकि उसकी शक्तियों में आग में बचने की क्षमता, सुपरह्यूमन ताकत, और संभवतः लंबी उम्र शामिल है। ज्वाला प्रकृति के दोनों रूप—रौद्र और रक्षक—का प्रतीक है।
इसके विपरीत, सलमान 90 के दशक की हिंदी फिल्मों और कॉमिक्स के क्लासिक खलनायक का प्रतिनिधित्व करता है। उसका पूरा चरित्र धन और कामुकता (सोना के प्रति उसकी आसक्ति) के लालच और क्रूरता के इर्द-गिर्द घूमता है। माजिद जैसे बुजुर्ग की हत्या करना उसकी निर्दयता को दिखाता है। सलमान ज्वाला की मासूमियत और प्राकृतिक शक्ति के बिल्कुल उलट है, जो मानव लालच और प्रकृति के टकराव को दिखाता है।
आन्द्रे और दादाजी
ये दोनों पात्र कहानी के सूत्रधार हैं। दादाजी अतीत की कड़ी हैं, जो वासुकोव की विरासत को जानते हैं, जबकि आन्द्रे पाठक का प्रतिनिधित्व करता है—नया, जिज्ञासु और रोमांच पसंद करने वाला।
लेखन और संवाद (Writing and Dialogues)
रजत राजवंशी की लेखन शैली बहुत सजीव और पकड़ बनाने वाली है। कहानी हर पन्ने पर रोचक बनी रहती है। संवादों में एक नाटकीयता है जो उस समय की खासियत थी। उदाहरण के लिए:
“मैं युग पुरुष हूँ… युग पुरुष ज्वाला… आग मुझे जला नहीं सकती… आग तो मेरा जीवन है।”
“यह धरती है… मैं धरती पर हूँ… वो आकाश है।”

ये संवाद ज्वाला के चरित्र को अच्छे से दिखाते हैं। वह दुनिया को बच्चे की तरह देखता है, लेकिन बोलता है जैसे देवता हो। कहानी में विज्ञान और अंधविश्वास का मिश्रण भी है। खुर्रम और आदिवासी लोग ज्वाला को ‘देवता’ मानते हैं, जबकि दादाजी जानते हैं कि वह विज्ञान का चमत्कार है। लेखक ने इसे बहुत सूक्ष्मता से पेश किया है।
कला और चित्रांकन (Art and Illustration)
परविन्द्र मिश्रा का चित्रांकन इस कॉमिक्स की जान है। यह 90 के दशक की भारतीय कॉमिक्स की खास शैली—गहरे रंग, कोणीय चेहरे, और जोरदार एक्शन लाइन्स—को दिखाता है। रंगों का इस्तेमाल खास है, खासकर लाल, पीले और नारंगी रंग, जो ज्वालामुखी और ज्वाला के दृश्यों में कहानी में ‘गर्मी’ और ‘ऊर्जा’ का अहसास कराते हैं। एक्शन दृश्यों को बहुत गतिशील तरीके से दिखाया गया है; जैसे जब ज्वाला सलमान को हवा में उछालता है, पैनल का लेआउट उस गति और प्रभाव को और बढ़ा देता है। पृष्ठभूमि पर भी ध्यान दिया गया है—मैग्नम टापू के जंगल, नष्ट हुई प्रयोगशाला और ज्वालामुखी—जो कहानी को और जीवंत बनाते हैं।
विषयगत विश्लेषण (Thematic Analysis)
‘ज्वाला’ कॉमिक्स का मुख्य विषय प्रकृति बनाम मनुष्य का लालच है। डॉ. वासुकोव द्वारा विज्ञान के नाम पर प्रकृति से छेड़छाड़ के विनाशकारी परिणाम सामने आते हैं, जबकि सलमान का धन के लिए धरती खोदना उसकी मौत का कारण बनता है। इसके विपरीत, ज्वाला पूरी तरह प्रकृति (आग) के साथ है, यही कारण है कि वह जीवित और शक्तिशाली है।
कहानी में उत्पत्ति और पहचान (Origin and Identity) की खोज भी महत्वपूर्ण है। ज्वाला की पूरी यात्रा इस सवाल के इर्द-गिर्द घूमती है कि वह कौन है, उसके पिता कौन हैं, और वह 100 साल बाद क्यों जागा—यह ‘सेल्फ-डिस्कवरी’ का थीम उसे दूसरे एक्शन हीरोज से अलग बनाता है। अंत में, ज्वाला का टापू पर ही रहना उसके संरक्षण के कर्तव्य को दिखाता है। वह सिर्फ सुपरहीरो नहीं है, बल्कि अपनी जड़ों और उस जगह का रक्षक है, जिसने उसे जन्म दिया और प्रकृति के प्रति उसकी निष्ठा को दर्शाता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
‘जांबाज ज्वाला’ सिर्फ 7 रुपये की एक कॉमिक्स नहीं है, बल्कि यह उस दौर का दस्तावेज़ भी है। यह दिखाती है कि भारतीय कॉमिक्स लेखक किस तरह पश्चिमी सुपरहीरो कॉन्सेप्ट्स (जैसे टार्ज़न, ही-मैन, हल्क) को भारतीय परिवेश और भावनाओं में ढाल रहे थे।
सकारात्मक पक्ष:
‘ज्वाला’ कॉमिक्स अपनी तेज गति वाली कहानी के कारण पाठकों को तुरंत बांध लेती है। नायक का अनूठा ओरिजिन—जेनेटिक इंजीनियरिंग और प्राकृतिक शक्तियों का मिश्रण—इसे खास बनाता है। परविन्द्र मिश्रा का शानदार और रंगीन चित्रांकन कॉमिक्स को जीवंत ऊर्जा देता है, खासकर ज्वालामुखी के दृश्यों में। इसके साथ ही, कहानी एक स्पष्ट नैतिक संदेश देती है—मानवीय लालच के सामने प्रकृति की शक्ति और अंत में बुराई पर अच्छाई की जीत।
नकारात्मक पक्ष:
कहानी थोड़ी पूर्वानुमानित लग सकती है, खासकर सलमान का विश्वासघात।
विज्ञान के तर्क थोड़े कमजोर हैं (जैसे आग में 100 साल तक सोना), लेकिन कॉमिक्स की दुनिया में इसे ‘Suspension of Disbelief’ के तहत स्वीकार किया जा सकता है।
कुल मिलाकर, ‘जांबाज ज्वाला’ एक मनोरंजक और पढ़ने लायक कॉमिक्स है। अगर आप भारतीय कॉमिक्स के पुराने दिनों को याद करना चाहते हैं या जानना चाहते हैं कि 90 के दशक में बच्चे क्या पढ़ते थे, तो यह कॉमिक्स एक बेहतरीन विकल्प है। यह न केवल मनोरंजन करती है, बल्कि यह भी याद दिलाती है कि असली शक्ति ‘आग’ में नहीं, बल्कि उसे नियंत्रित करने वाले ‘हृदय’ में होती है।
