नब्बे का दशक भारतीय कॉमिक्स का सुनहरा दौर था — एक ऐसा समय जब हर पन्ने पर हीरो, खलनायक और जज़्बात ज़िंदा होते थे। और उसी युग में एक ऐसा किरदार सामने आया जो बाकी सब से बिल्कुल अलग था — डोगा।
डोगा कोई चमकदार सुपरहीरो नहीं था, न ही किसी महाशक्ति का मालिक। वो समाज के सड़े हुए चेहरे पर एक करारा तमाचा था — उस “सभ्य समाज” पर जो कानून और व्यवस्था का नकाब पहनकर अपने भीतर की गंदगी छिपाने की कोशिश करता है।
राज कॉमिक्स की प्रस्तुत “मरेंगे डोगा के दुश्मन”, उसकी मशहूर कॉमिक “मारा गया डोगा” की सीधी अगली कड़ी है। यह कहानी सिर्फ एक एक्शन थ्रिलर नहीं, बल्कि एक खून से लिखी घोषणा है — कि जब तक अपराध ज़िंदा रहेगा, तब तक डोगा का बदला भी अमर रहेगा।
यह कॉमिक दिखाती है कि जब कानून इंसाफ़ देने में नाकाम हो जाता है, तब न्याय की राख से प्रतिशोध जन्म लेता है। और वही प्रतिशोध बन जाता है — डोगा।
उसकी दुनिया अंधेरी है, उसकी सोच सख्त है, और उसका तरीका दर्दनाक। लेकिन यही उसकी सच्चाई है। क्योंकि कभी-कभी बुराई को खत्म करने के लिए, खुद बुराई बनना पड़ता है।
“मरेंगे डोगा के दुश्मन” में वो सब कुछ है जो डोगा को ‘डोगा’ बनाता है — गुस्सा, दर्द, न्याय की तड़प और खून में लथपथ बदले की कहानी।
यह कॉमिक हमें याद दिलाती है कि हर नकाब के पीछे सिर्फ एक चेहरा नहीं, एक ज्वाला छिपी होती है — और जब वह जलती है, तो उसके सामने कोई अपराधी नहीं टिकता।
कहानी: मौत के जश्न से शुरू हुई तबाही
कहानी वहीं से शुरू होती है जहाँ इसका पहला भाग “मारा गया डोगा” खत्म हुआ था। डोगा, जिसे परीक्षा के पेपर लीक करने वाले शोला गैंग ने एक बड़ी साज़िश में फंसा दिया था, पुलिस की गोलियों से घायल होकर गिर चुका है। पूरा मुंबई, खासकर वो छात्र जो डोगा के खिलाफ भड़काए गए थे, अब मान चुके हैं कि डर और आतंक का एक अध्याय खत्म हो गया है। पुलिस कमिश्नर सिन्हा अपनी टीम की तारीफों के पुल बाँध रहे हैं, और इंस्पेक्टर असलम — जिसने डोगा पर आखिरी गोलियाँ चलाई थीं — खुद को हीरो समझ रहा है।

लेकिन इस जीत के शोर के बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके दिल में सिर्फ सन्नाटा और ग़म है। इंस्पेक्टर चीता, जो डोगा के तरीकों से हमेशा असहमत था, लेकिन उसके मकसद को समझता था, अब महसूस करता है कि डोगा की मौत के साथ इंसानियत और इंसाफ़ की भी मौत हो गई है।
वहीं दूसरी तरफ, लायन जिम में डोगा का परिवार — अदरक चाचा और उनके भाई हल्दी, धनिया और काली मिर्च — इस खबर से टूट चुके हैं। उनके लिए डोगा सिर्फ एक नकाबपोश हीरो नहीं, बल्कि उनका अपना बेटा, उनका सूरज था। वो मानने को तैयार ही नहीं कि डोगा सच में मर सकता है।
कहानी में सबसे बड़ा ट्विस्ट तब आता है जब डोगा की लाश रहस्यमयी तरीके से गायब हो जाती है। एक नकली एम्बुलेंस असली पुलिस वैन से पहले पहुँचती है और लाश को लेकर गायब हो जाती है। अब कहानी में रहस्य और गहराता है — क्या डोगा सच में मर गया था? अगर हाँ, तो उसकी लाश किसने और क्यों चुराई? और अगर नहीं… तो फिर यह सब क्या था?
इस सस्पेंस का जवाब तब मिलता है जब शोला गैंग अपने जश्न में डूबा होता है। शराब और घमंड में चूर ये लोग अपनी अगली गंदी चालें सोच रहे होते हैं कि तभी अंधेरे से एक साया उभरता है — और वो कोई और नहीं, डोगा है। ज़िंदा, पहले से भी ज़्यादा खतरनाक, और बदले की आग में जलता हुआ। यहीं से कॉमिक का नाम “मरेंगे डोगा के दुश्मन” असली मायनों में जीवंत हो उठता है।
डोगा अपने दुश्मनों को एक-एक कर ढूंढता है, लेकिन उन्हें सिर्फ मारता नहीं — वो उन्हें उसी दर्द से गुज़ारता है जो उन्होंने दूसरों को दिया था। वो उनके अंदर ऐसा डर भर देता है कि वे खुद अपनी करतूतों का सच उगलने लगते हैं।
इसके बाद कहानी की रफ़्तार बिजली की तरह तेज़ हो जाती है। एक तरफ डोगा अपने तरीक़े से सच्चाई तक पहुँचने में जुटा है, वहीं अदरक चाचा और इंस्पेक्टर चीता भी अपने-अपने तरीके से इस साज़िश की परतें खोल रहे हैं।
अंत में कहानी पहुँचती है एक धमाकेदार क्लाइमेक्स पर — जहाँ डोगा न सिर्फ शोला गैंग का सफाया करता है, बल्कि उस सफेदपोश मास्टरमाइंड को भी बेनकाब करता है जो इस पूरे गंदे खेल के पीछे था।
यह अंत डोगा के असली रूप को सामने लाता है — वो सिर्फ अपराधियों को नहीं मारता, बल्कि अपराध की जड़ पर वार करता है। यही बात उसे एक साधारण नकाबपोश से एक जीवित दंतकथा बना देती है।
चरित्र–चित्रण: भावनाओं का गहरा समंदर
इस कॉमिक की असली ताकत सिर्फ इसके धमाकेदार एक्शन में नहीं, बल्कि इसके गहरे और जीवंत किरदारों में छिपी है। हर चरित्र कहानी में एक नई परत जोड़ता है, जो कॉमिक को भावनाओं और अर्थों से भर देता है।
डोगा / सूरज: यह कहानी डोगा के दो अलग-अलग रूपों को बखूबी दिखाती है। एक तरफ वो निर्दयी, हिंसक और डर पैदा करने वाला डोगा है — जिसके लिए अपराधियों को खत्म करना ही सच्चा न्याय है। उसे कानून पर भरोसा नहीं, क्योंकि उसका मानना है कि ये कानून ज़्यादातर अपराधियों की रक्षा करता है।
दूसरी तरफ वो सूरज है — एक इंसान जो अपने चाचाओं के दुख को महसूस करता है, अपनी प्रेमिका मोनिका की नफरत से टूटता है और समाज की गंदगी देखकर अंदर से जलता है।
उसका “मरकर” वापस आना दरअसल एक प्रतीक है — ये बताता है कि डोगा सिर्फ एक इंसान नहीं, बल्कि एक विचार है, एक ऐसी आग है जिसे कोई बुझा नहीं सकता।

अदरक चाचा और उनके भाई: ये लोग कहानी में भावनाओं का सहारा हैं। वे डोगा की इंसानियत का चेहरा हैं। उनका दुख, उनकी बेचैनी और डोगा पर उनका अटूट भरोसा — ये सब हमें दिखाता है कि उस खौफनाक नकाब के पीछे भी एक इंसान है, जिसे अपने परिवार, अपने अपनेपन की जरूरत है।
उनके जरिये कहानी में वो गर्माहट आती है जो डोगा की हिंसक दुनिया को थोड़ा मानवीय बनाती है।
इंस्पेक्टर चीता:
चीता एक ईमानदार पुलिस अफसर है, जो कानून और अपने जमीर के बीच फँसा हुआ है। वो जानता है कि डोगा के तरीके गलत हैं, लेकिन ये भी समझता है कि डोगा के बिना मुंबई के अपराधियों को कोई नहीं रोक सकता। उसका किरदार कहानी में एक नैतिक खींचतान लाता है — वो डोगा की दुनिया को और असली और relatable बनाता है।

शोला गैंग: ये खलनायक सिर्फ हिंसा करने वाले गुंडे नहीं हैं। ये चालाक, संगठित और समाज की नब्ज को पहचानने वाले अपराधी हैं। इन्हें पता है कि मीडिया और जनता की सोच को कैसे अपने हिसाब से मोड़ा जाए। लेकिन यही घमंड और डोगा को कम आंकने की गलती आखिरकार इनकी बर्बादी का कारण बनती है।
कला और चित्रांकन: अंधेरे को कागज़ पर उतारना
मनु का आर्टवर्क इस कॉमिक की रूह है। उनकी ड्रॉइंग में वही पुराना राज कॉमिक्स वाला जादू है — मोटी रेखाएँ, गहरी स्याही, और छाया का शानदार इस्तेमाल। उन्होंने मुंबई के अंधेरे और गंदे माहौल को पन्नों पर ज़िंदा कर दिया है।
एक्शन सीन इतने जोश से बने हैं कि हर फ्रेम में जान है। डोगा की फटी नसें, गोलियों की बारिश, और झगड़े का क्रूर तनाव — सब कुछ इतना असली लगता है कि आप खुद उस लड़ाई का हिस्सा महसूस करते हैं।
डोगा के गुस्से से भरे मास्क वाले चेहरे की छवि तो आज भी फैंस के दिमाग में ताज़ा है। पैनलों का लेआउट इतना सटीक है कि कहानी की रफ्तार कभी धीमी नहीं पड़ती।
सामाजिक संदेश और कहानी की गहराई
“मरेंगे डोगा के दुश्मन” सिर्फ एक्शन और बदले की कहानी नहीं है, बल्कि अपने समय के समाज पर एक सटीक और दर्दनाक टिप्पणी भी है।
न्याय व्यवस्था की नाकामी: यह डोगा कॉमिक्स का मुख्य विषय है। पुलिस या तो बेईमान है या बेबस। कानून इतना कमजोर और धीमा है कि अपराधी बच निकलते हैं। डोगा उसी खालीपन को भरने के लिए पैदा हुआ — ताकि वो वहाँ न्याय दे सके जहाँ सिस्टम चुप है।
मीडिया और जनता का खेल: कहानी दिखाती है कि कैसे अपराधी जनता और मीडिया को अपने हिसाब से भड़काते हैं। छात्र, जो पहले पीड़ित थे, अब डोगा के खिलाफ मोर्चा खोल देते हैं। ये बात आज के फेक न्यूज के दौर में और भी सटीक लगती है।
शिक्षा में भ्रष्टाचार: पेपर लीक का मुद्दा आज भी उतना ही गंभीर है जितना तब था। यह दिखाता है कि कैसे कुछ लोगों की लालच छात्रों का भविष्य बरबाद कर देती है। कॉमिक इस सामाजिक सच्चाई को बेहद असरदार तरीके से पेश करती है।
निष्कर्ष: एक ऐसा क्लासिक जो आज भी असरदार है
“मरेंगे डोगा के दुश्मन” वो कॉमिक है जो पाठक को पहले पन्ने से आखिरी तक बाँधे रखती है। इसमें एक्शन है, सस्पेंस है, भावना है और समाज के लिए एक मजबूत संदेश भी।
यह कॉमिक डोगा को उसकी पूरी शिद्दत, उसकी क्रूरता और उसकी इंसानियत के साथ पेश करती है। यह बताती है कि कभी-कभी बुराई को खत्म करने के लिए, खुद थोड़ा “बुरा” बनना पड़ता है।
तरुण कुमार वाही की सधी हुई कहानी और मनु के दमदार चित्र मिलकर एक ऐसा अनुभव बनाते हैं जो आज भी वैसा ही ताज़ा है जैसा इसके छपने के वक्त था।
यह उन सभी के लिए ज़रूरी पढ़ाई है जो भारतीय कॉमिक्स के स्वर्ण युग को समझना चाहते हैं — और जानना चाहते हैं कि डोगा आज भी क्यों एक कल्ट हीरो माना जाता है।
यह सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि एक चेतावनी है — जब तक समाज में बुराई ज़िंदा है, डोगा हर बार लौटेगा, अपने दुश्मनों को मिटाने के लिए।
