“निकल पड़ा डोगा” सिर्फ एक आम क्राइम स्टोरी नहीं है, बल्कि यह डोगा के उस असली रूप को सामने लाती है जो उसके दर्द भरे अतीत और आज के ‘एंटी-हीरो’ वाले रूप को जोड़ती है। यह कॉमिक्स साफ दिखाती है कि डोगा सिर्फ बंदूक चलाने वाला मास्क पहनने वाला इंसान नहीं है, बल्कि एक ऐसा सोच है जो अन्याय के खिलाफ—खासतौर पर बच्चों पर होने वाले अपराधों के खिलाफ—दीवार की तरह खड़ा हो जाता है।
कहानी का नाम “निकल पड़ा डोगा” ही बता देता है कि जब सिस्टम सो रहा होता है, पुलिस बेबस होती है, और अपराधी बिना डर के घूम रहे होते हैं, तब डोगा अपने ठिकाने से बाहर आकर काम संभालता है। यह कहानी एक ‘सोशल थ्रिलर’ की तरह है, जो अमीर–गरीब के बीच के फर्क और प्रशासन की दोहरी सोच पर जोरदार चोट करती है।
कथानक (Storyline): रहस्य, रोमांच और सामाजिक गुस्सा
कहानी की शुरुआत एक फ्लैशबैक से होती है, जो दिखाता है कि डोगा (सूरज) ने बचपन में कितना दर्द झेला। एक छोटा बच्चा सूरज अपनी जान बचाते हुए भाग रहा है, उसके अंदर डर बना हुआ है। वह गटर में छिप जाता है, जहाँ चूहे उसे काटते हैं। यह सीन पढ़ने वाले को हिला कर रख देता है, और साथ ही ये भी बताता है कि डोगा की शुरुआत कितनी तकलीफ़ों से हुई। कुत्तों का उसे बचाना, उसके और कुत्तों के बीच उस गहरे रिश्ते की शुरुआत दिखाता है, जो डोगा की पहचान बन चुका है।
वर्तमान कहानी मुंबई के गटर से शुरू होती है। डोगा को गटर में एक बच्चे की लाश मिलती है। यह दृश्य परेशान करने वाला है। वह अपने फॉरेंसिक लैब (डोगालिसियस विंग) में जांच करता है और पता चलता है कि बच्चा डूबा नहीं था, बल्कि उसे मारकर गटर में फेंका गया था। इसी दौरान उसे एक और बच्चा, रोशन देसाई, बेहोश हालत में मिलता है।

यहीं से कहानी दो रास्तों में बंट जाती है:
अमीर बच्चे की चिंता: रोशन देसाई, जो एक मशहूर ‘एंटरटेनमेंट किंग’ केतन देसाई का बेटा है। उसके गायब होते ही पुलिस, मीडिया और मंत्री सब एक्टिव हो जाते हैं।
गरीब बच्चों की अनदेखी: दूसरी तरफ, ‘गोरई गांव’ से कई दिनों से करीब 30 गरीब बच्चे गायब हैं, लेकिन उनकी फिक्र करने वाला कोई नहीं है। इस दोहरे रवैये से डोगा के अंदर गुस्सा भर जाता है।
डोगा अपनी जांच शुरू करता है। उसे कुछ सुराग मिलते हैं—एक जैकेट, ड्राई-क्लीनिंग की पर्ची और एक नक्शा। ये उसे ‘अबरार भाई’ नाम के अपराधी तक ले जाते हैं। डोगा का तरीका सीधा है—अपराधी को साफ-साफ दर्द दिखाना। वह अबरार के पैरों में गोली मारता है और उसे आखिरी चेतावनी देता है।
कहानी में मोड़ तब आता है जब डोगा को शक होता है कि बच्चों के गायब होने के पीछे अंगों की तस्करी (Organ Trafficking) हो सकती है। वह किडनी विशेषज्ञ डॉ. इदरीस पर शक करता है। यहां लेखक पाठकों को चकमा देने (Red Herring) का अच्छा इस्तेमाल करते हैं।

डोगा डॉ. इदरीस को मारने जाता है, लेकिन बाद में पता चलता है कि डॉ. इदरीस बेगुनाह हैं और उन्होंने गलत काम करने से मना किया था। यह दिखाता है कि डोगा भी इंसान है और उससे भी गलत अनुमान हो सकते हैं।
क्लाइमेक्स की तरफ बढ़ते हुए, एक बच्चा डोगा की तरफ भागता हुआ आता है, जिसके पीछे एक कातिल लगा होता है। डोगा बच्चे को बचाता है और उसका पीछा करते हुए ‘कोठी नंबर 13’ तक पहुंचता है। यह आर.के. ठक्कर की कोठी होती है। वहां डोगा को एक नौकर की लाश मिलती है। ठक्कर तुरंत डोगा पर ही इल्ज़ाम लगा देता है और पुलिस बुला लेता है। डोगा वहां से बच तो निकलता है, लेकिन उसके हाथ कुछ खास नहीं लगता।
कहानी के अंत में, गाँव वाले और डोगा दोनों ही परेशान और निराश हैं। तभी एंट्री होती है ‘साइको’ नाम के एक रहस्यमयी किरदार की, जो अपनी दिमागी ताकत (टेलीपैथी) से गायब बच्चों की हालत का पता लगाने की कोशिश करता है। साइको को जो दिखता है, वह बेहद डरावना है—एक लंगड़ा आदमी और कैद किए हुए मासूम बच्चे। कहानी यहीं पर एक बड़े सस्पेंस के साथ रुकती है, और इसका अगला हिस्सा ‘भूखा डोगा’ में आगे बढ़ता है।
पात्र विश्लेषण (Character Analysis)

डोगा (सूरज):
इस कॉमिक्स में डोगा का व्यक्तित्व कई परतों से भरा हुआ दिखता है।
डोगा एक ऐसा किरदार है जिसमें एक तरफ निर्दयी न्याय देने वाला सख्त रूप है, तो दूसरी तरफ एक बेहद भावुक और देखभाल करने वाला पक्ष भी है। अपराधियों (जैसे अबरार) के साथ वह बिल्कुल नरमी नहीं दिखाता। उसका संवाद—”कुत्ते की मौत मारा गया था वो”—उसके अंदर के पुराने गुस्से और दुख को साफ दिखाता है। लेकिन वहीं बच्चों के लिए उसका दिल बहुत नरम है; गटर में मृत बच्चे को देखकर उसका टूट जाना और रोशन देसाई को बचाने के लिए भागना उसके मानवीय रूप को सामने लाता है। सबसे बढ़कर, डोगा यहाँ एक बागी के रूप में दिखाया गया है। जब वह टीवी पर अमीर बच्चे की खबर देखता है, तो उसका गुस्सा फूट पड़ता है और वह अमीर लोगों को “लोग” नहीं, बल्कि “कुंठाएँ” कहता है। यह सिर्फ गुस्सा नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि डोगा एक ऐसा Vigilante है जो समाज की गलतियों और अन्याय के खिलाफ खड़ा होता है।
अदरक चाचा और चीता:
ये दोनों डोगा की रीढ़ की हड्डी की तरह हैं। अदरक चाचा सूरज के लिए पिता जैसे हैं, जो उसे मानसिक रूप से संभालते रहते हैं। चीता उसका टेक्निकल ब्रेन और जासूस है। जिम के नीचे बनी हाई-टेक लैब यह बताती है कि डोगा सिर्फ अपनी ताकत पर नहीं, बल्कि समझ, दिमाग और तकनीक पर भी भरोसा करता है।
खलनायक (सिस्टम और व्यक्ति):
इस कहानी का सबसे बड़ा खलनायक असल में ‘सिस्टम’ है। पुलिस का रवैया ही असली विलेन है—गरीब बच्चों के गायब होने को कोई तवज्जो नहीं दी जाती, लेकिन अमीर बच्चे के लिए पूरा शहर हिल जाता है। इसके साथ-साथ अबरार और आर.के. ठक्कर जैसे संदिग्ध किरदार कहानी को रहस्य और तनाव से भरे रखते हैं।

साइको:
कहानी के अंत में आया यह किरदार दिलचस्प और रहस्यमयी है। उसकी ‘ओरा’ (Aura) पढ़ने की ताकत कहानी को अचानक एक अलग ही दिशा—थोड़ी अलौकिक और रोमांचक—की तरफ मोड़ देती है।
मुख्य विषय और सामाजिक संदेश (Themes & Social Commentary)
वर्ग भेद (Class Divide):
कॉमिक्स का सबसे जोरदार पहलू अमीर और गरीब के बीच की दूरी को दिखाना है। डोगा का संवाद—”हम गरीबों के बच्चों को कोई नहीं ढूँढता! मैं तो मोहित को ही ढूँढ रहा था! रोशन तो अचानक मेरे हाथ लग गया!”—दिल को चीर देता है। यह लाइन हमारे समाज की सच्चाई को सीधे-सीधे सामने रख देती है।
बाल अपराध और तस्करी:
कहानी बच्चों के अपहरण और शायद अंगों की तस्करी जैसे गंभीर मुद्दों पर रोशनी डालती है। यह पाठकों को झकझोरता है कि हमारे समाज में किस हद तक डरावने अपराध हो रहे हैं।

डर बनाम साहस:
कहानी बार-बार ‘डर’ पर बात करती है। बचपन में सूरज बेहद डरा हुआ बच्चा था, पर डोगा बनकर वह डर को ही हथियार बना लेता है। वह राम प्रकाश (जो अपने बच्चे को ढूंढ रहा है) को समझाता है कि आँसू बहाना कमजोरी नहीं है, सिर्फ रोना काफी नहीं—हक के लिए आवाज उठाना ज़रूरी है। यही डोगा की सोच (Philosophy) है।
मानवता का कर्तव्य:
जब डोगा रोशन को बचाता है, तो बच्चा “शुक्रिया” कहना चाहता है। लेकिन डोगा उसे रोक देता है और कहता है—”एक दूसरे की मदद से बने इस समाज में रहने वाले हर इंसान का फर्ज़ है कि वो दूसरों को खुशी दे! और जब कोई अपना फर्ज़ निभाता है, तो उसका शुक्रिया करने की जरूरत नहीं होती!” यह एक बेहद सकारात्मक और दिल छू लेने वाला संदेश है।
चित्रांकन और कला (Artwork)
स्टूडियो इमेज का काम यहाँ वाकई तारीफ के लायक है। सुनील पाण्डेय के रंग और मनीष गुप्ता का एडिटिंग कॉमिक्स के विजुअल्स को और भी दमदार बना देते हैं।
कॉमिक्स में माहौल (Atmosphere) को बनाने के लिए कलाकृति का बेहतरीन इस्तेमाल किया गया है। गटर वाले सीन में काले, नीले और बैंगनी जैसे गहरे रंगों का इस्तेमाल घुटन, डर और खतरे की फीलिंग बहुत अच्छी तरह दिखाता है। वहीं डोगा का एक्शन काफी डायनेमिक है; पेज 17 पर अबरार के गुर्गों की जमकर पिटाई वाला दृश्य पूरी तरह सिनेमाई लगता है।
चेहरों के भावों (Expressions) पर भी खूब ध्यान दिया गया है—सूरज के चेहरे पर गुस्सा, बेबसी और हताशा साफ दिखती है। जिम वाले दृश्यों में उसकी बॉडी की डिटेलिंग (Anatomy) बहुत शानदार लगी है। फ्लैशबैक वाले दृश्यों में ‘सेपिया’ या अलग टोन का इस्तेमाल अतीत और वर्तमान में फर्क साफ कर देता है, और चूहों वाले अटैक के दृश्य तो सच में डर पैदा करते हैं।
संवाद (Dialogues)
संजय गुप्ता और तरुण कुमार वाही की जोड़ी ने संवादों में जान भर दी है। ये संवाद सिर्फ कहानी को आगे नहीं बढ़ाते, बल्कि किरदारों की सोच और भावना भी साफ करते हैं।
“कुत्ते का मास्क क्यों धारण किया है मैंने? इसलिए क्योंकि कुत्ता वफादारी का प्रतीक है! दोस्त है मानव का!” – यह संवाद डोगा के मास्क का पूरा मतलब समझा देता है।
“अगर तुमने मेरी आँखें खोली हैं, डोगा! अब मैं आँसू नहीं बहाऊँगा! मेरा बच्चा खोया है! पुलिस और कानून की जिम्मेदारी बनती है उसको ढूँढना…” – यह लाइन एक आम इंसान के जागरण और हिम्मत को दिखाती है।
“डोगा को अमीरी-गरीबी के तराजू में तौला जा रहा है!” – यह संवाद डोगा की अंदरूनी पीड़ा और उसके गुस्से को उजागर करता है।
समीक्षात्मक विश्लेषण (Critical Analysis)
सकारात्मक पक्ष:
यह कॉमिक्स एक दमदार और कसकर लिखी गई पटकथा पर टिकी है, जिसमें कहानी की रफ्तार कहीं भी धीमी नहीं होती। हर पेज पर नया सुराग, नया ट्विस्ट या नया एक्शन मिलता है, जो पाठक को शुरू से अंत तक जोड़े रखता है। यह सिर्फ एक सुपरहीरो फैंटेसी नहीं है, बल्कि इसमें एक मजबूत सामाजिक पहलू भी है—पुलिस की नाकामी, समाज की बेरुखी और गरीब बच्चों के साथ होने वाला अन्याय बहुत वास्तविक रूप में दिखाया गया है।

कहानी के एक्शन में जासूसी वाला एंगल भी शामिल है; डोगा यहां सिर्फ मारता-पीटता ही नहीं, बल्कि डिटेक्टिव की तरह सुराग ढूँढता है—जैसे जैकेट, पर्ची, नक्शा। इससे पता चलता है कि डोगा सिर्फ बल का नहीं, बल्कि दिमाग और रणनीति का भी खिलाड़ी है।
नकारात्मक पक्ष (सुझाव):
कहानी की संरचना में एक छोटा-सा कमी वाला हिस्सा डॉ. इदरीस का ट्रैक है। डोगा का उन पर शक करना और बाद में उनका निर्दोष निकलना कहानी को थोड़ी देर के लिए भटका देता है। हालांकि यह दिखाता है कि डोगा भी हर बार सही नहीं होता और वह भी इंसान की तरह गलतियाँ कर सकता है, लेकिन यह हिस्सा थोड़ा और छोटा होता तो कहानी की रफ्तार और बेहतर रहती।
इसके अलावा, कहानी का अंत एक क्लिफहैंगर पर होता है—जहाँ ‘साइको’ के विज़न पर अचानक कहानी रुक जाती है। इससे पाठक को थोड़ा अधूरापन महसूस होता है। यह अगला भाग बेचने की एक स्ट्रैटेजी तो है, लेकिन एक पाठक के तौर पर यह अचानक ब्रेक थोड़ी बेचैनी जरूर पैदा करता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
“निकल पड़ा डोगा” राज कॉमिक्स के सबसे अच्छे विशेषांकों में से एक है। यह कहानी डोगा को मुंबई के असली ‘रक्षक’ के रूप में पूरी तरह सामने लाती है। जो लोग एक्शन के साथ एक भावुक, रहस्यमय और समाज से जुड़ी कहानी पसंद करते हैं, उनके लिए यह कॉमिक्स एक शानदार अनुभव है।
इस कहानी की सबसे बड़ी ताकत यह है कि यह आपको सोचने पर मजबूर कर देती है। जब आप सूरज को जिम में डम्बल उठाते हुए और सिस्टम पर गुस्सा निकालते हुए देखते हैं, तो आपको उसका गुस्सा अपना सा लगने लगता है। यहाँ डोगा एक सुपरहीरो से ज्यादा एक ‘क्रांतिकारी’ महसूस होता है—एक ऐसा इंसान जो गलतियों के खिलाफ खड़ा होता है, चाहे दुनिया उसके साथ हो या न हो।
रेटिंग: 4.5/5
