राज कॉमिक्स का महाविशेषांक – “चक्र“ सिर्फ़ एक कॉमिक्स नहीं, बल्कि एक बड़ा और साहसी प्रयोग था। इसमें राज कॉमिक्स के सबसे बड़े सुपरहीरो एक ऐसे खतरे का सामना करते हैं, जो पूरी इंसानियत के अस्तित्व पर सवाल उठा देता है।
संजय गुप्ता की पेशकश और जॉली सिन्हा की लिखी कहानी, अनुपम सिन्हा के शानदार चित्रों के साथ मिलकर एक ऐसा अनुभव देती है, जो आज भी कॉमिक्स फैंस के दिलों में ज़िंदा है।
यह समीक्षा उस सुनहरे दौर की यादें ताज़ा करने और “चक्र” की कहानी, कला और उसके असर को गहराई से समझने की कोशिश है।
विकास का उल्टा पहिया
“चक्र” की कहानी अपने समय से बहुत आगे थी और इसमें साइंस फिक्शन (विज्ञान-कल्पना) का मज़बूत तड़का था। इसकी बेसिक आइडिया ही रोंगटे खड़े कर देने वाली थी — “अगर इंसान का विकास पीछे की ओर जाने लगे तो क्या होगा?”
हम बचपन से पढ़ते आए हैं कि कैसे एक छोटे से एक-कोशिकीय जीव से इंसान ने लाखों सालों में तरक्की करते हुए आज की सभ्यता बनाई। लेकिन सोचो ज़रा, अगर यह पूरा चक्र उल्टा घूमने लगे तो? अगर इंसान वापस बंदर बनने लगे, और बंदर फिर रेंगने वाले जीवों में बदलने लगें?
अगर धरती पर वो खतरनाक डायनासोर और सैबर-टूथ टाइगर जैसे जानवर फिर से लौट आएँ? यही है “चक्र” की खौफनाक नींव।

कहानी की शुरुआत एक हल्के और मस्त अंदाज़ में होती है। चेन्नई के मरीना बीच पर सुपरहीरो परमाणु अपनी दोस्त शीना के साथ छुट्टियाँ एंजॉय कर रहा होता है। यहाँ तक सब कुछ नॉर्मल लगता है, और रीडर को लगता है कि ये शायद परमाणु की एक मज़ेदार, हल्की-फुल्की कहानी होगी।
लेकिन तभी एक मामूली-सा दिखने वाला कुत्ता अचानक पागल हो जाता है और समुद्र में एक भयंकर भूकंप आता है, जो सुनामी का रूप ले लेता है। बस यहीं से असली कहानी शुरू होती है, और रहस्य के साथ रोमांच बढ़ता जाता है।
परमाणु जब इस घटना की जांच के लिए समुद्र की गहराइयों में जाता है, तो उसका सामना एक रहस्यमयी, पारदर्शी ऊर्जा-प्राणी से होता है। वो प्राणी समुद्र के तल में कुछ चमकते हुए ऊर्जा गोले लगा रहा था। दोनों के बीच जबरदस्त टक्कर होती है, और यहीं से पता चलता है कि मामला बहुत बड़ा है और इसके पीछे कोई अनजान, बेहद ताकतवर शक्ति काम कर रही है।
लेकिन ये तो बस शुरुआत थी। थोड़े ही समय में पूरी दुनिया में अजीब घटनाएँ होने लगती हैं — कहीं लोग अचानक वानर जैसे जीवों में बदलने लगते हैं, तो कहीं बर्फ़ीले पहाड़ों पर प्रागैतिहासिक काल के विशाल सैबर-टूथ टाइगर दिखाई देने लगते हैं।
प्रकृति का संतुलन पूरी तरह बिगड़ चुका था और “विकास का चक्र” उल्टी दिशा में घूम रहा था।

अब इस वैश्विक संकट से निपटने के लिए भारत के सबसे ताकतवर नायक एक साथ आते हैं — नागराज, सुपर कमांडो ध्रुव, परमाणु, डोगा, शक्ति और कई दूसरे सुपरहीरो।
ये सभी इस रहस्यमयी आपदा की जड़ तक पहुँचने की कोशिश करते हैं, और आखिरकार उन्हें एक विशाल, अदृश्य और हाई-टेक अंतरिक्ष यान का पता चलता है, जो पृथ्वी के वायुमंडल में छिपा हुआ था। यही वो स्रोत था, जहाँ से वह रहस्यमयी ऊर्जा निकल रही थी जो विकास की दिशा उलट रही थी।
इसके बाद कहानी पहुँचती है उस हिस्से पर जहाँ हमारे नायक उस स्पेसशिप के अंदर जाते हैं। वहाँ उन्हें एक अजीब और डरावना माहौल मिलता है — जैसे मशीनें और जीव एक साथ बने हों।
वो जगह जैविक और तकनीकी दोनों तरह से खतरनाक थी। और यहीं होता है सामना उस असली खलनायक से, जो पूरी तबाही के पीछे था।
आगे की कहानी सिर्फ़ एक सुपरहीरो फ़ाइट नहीं रहती, बल्कि बन जाती है मानवता को बचाने की एक ज़बरदस्त कोशिश — आखिरी उम्मीद।
कला और चित्रांकन: अनुपम सिन्हा का जादू
अगर “चक्र” की कोई असली आत्मा है, तो वो है अनुपम सिन्हा का शानदार चित्रांकन। अनुपम सिन्हा भारतीय कॉमिक्स दुनिया के सबसे सम्मानित और प्रतिभाशाली कलाकारों में से हैं, और “चक्र” उनके करियर की सबसे बेहतरीन कलाकृतियों में गिनी जा सकती है।
डायनामिक एक्शन: कॉमिक्स के एक्शन सीन वाकई जबरदस्त हैं। चाहे परमाणु और उस रहस्यमयी ऊर्जा-प्राणी की पानी के नीचे की लड़ाई हो या हिमालय की ठंड में नागराज का सैबर-टूथ टाइगर्स से आमना-सामना — हर पैनल में मूवमेंट और एनर्जी साफ़ महसूस होती है।
अनुपम जी की यही खासियत है कि वे एक स्थिर तस्वीर में भी ऐसी गति और जोश दिखा देते हैं कि सीन जीवंत लगने लगता है। उनके बनाए कैरेक्टर्स के हावभाव, बॉडी पोज़ और फाइटिंग स्टाइल कहानी में एक अलग ही जान डाल देते हैं।
किरदारों का चित्रण: “चक्र” एक मल्टी-स्टारर कॉमिक्स थी — यानी इसमें कई बड़े सुपरहीरो एक साथ थे। हर नायक को उसकी अपनी पहचान और अंदाज़ देना आसान नहीं था, लेकिन अनुपम सिन्हा ने यह कमाल कर दिखाया।
नागराज का शांत और आत्मविश्वासी लुक, ध्रुव की समझदारी और चुस्ती, डोगा की बेपरवाह और खतरनाक बॉडी लैंग्वेज, और परमाणु का वैज्ञानिक स्टाइल — सब कुछ उनके चेहरे और बॉडी एक्सप्रेशन से साफ़ झलकता है।
हर किरदार अपने स्वभाव के हिसाब से दिखता और चलता है, जो “चक्र” को और ज़्यादा असली महसूस कराता है।

कल्पना की उड़ान: कहानी का बड़ा हिस्सा एक एलियन स्पेसशिप के अंदर घटता है, और इसका डिज़ाइन किसी भी हॉलीवुड साइंस-फिक्शन फिल्म को टक्कर दे सकता है।
इस स्पेसशिप के अंदर का माहौल — जहाँ मशीनें और जीव एक साथ मिले हुए हैं (bio-mechanical setting) — अनुपम जी ने बेहद बारीकी से दिखाया है।
दीवारों से निकलती नसें, अजीब दिखने वाले जीव, और हाई-टेक माहौल — सब कुछ इतना डिटेल में बना है कि पाठक खुद को किसी दूसरी दुनिया में महसूस करता है।
पैनलिंग और लेआउट: कॉमिक्स के पन्नों का लेआउट बेहद आकर्षक है। कहानी के मूड और स्पीड के हिसाब से पैनलों का साइज और प्लेसमेंट बदलता रहता है, जिससे पढ़ने का मज़ा बना रहता है।
खासकर बड़े “स्प्लैश पेज”, जहाँ किसी अहम पल को पूरे पेज पर दिखाया गया है — वो सीन तो इतने इम्प्रेसिव हैं कि आंखें कुछ पल वहीं टिक जाती हैं।
कुल मिलाकर, “चक्र” का चित्रांकन सिर्फ़ कहानी का हिस्सा नहीं है — बल्कि खुद कहानी कहता है। हर पेज, हर फ्रेम एक कलाकृति है, जिसमें अनुपम जी की मेहनत, सोच और क्रिएटिविटी साफ़ दिखाई देती है।
लेखन और संवाद: जॉली सिन्हा की कलम का कमाल
जॉली सिन्हा को राज कॉमिक्स के सबसे समझदार और एक्सपेरिमेंटल (प्रयोग करने वाले) लेखकों में गिना जाता है, और “चक्र” इसका सबसे बड़ा सबूत है।
एक कठिन लेकिन दिलचस्प आइडिया: विकास के चक्र को उलटने का विचार अपने आप में बहुत जटिल और अनोखा है। इसे कॉमिक्स की कहानी में ढालना और आम पाठक के लिए समझने लायक बनाना कोई आसान काम नहीं था — लेकिन जॉली सिन्हा ने यह काम शानदार तरीके से किया।
उन्होंने विज्ञान और कल्पना के बीच ऐसा संतुलन बनाया कि कहानी न सिर्फ़ समझ में आती है बल्कि बेहद रोमांचक भी लगती है।
संतुलित किरदार-लेखन: इतने सारे बड़े सुपरहीरो को एक ही कहानी में लाना और हर किसी को बराबर चमकने का मौका देना बहुत मुश्किल होता है। ज़्यादातर मल्टी-हीरो कहानियों में कुछ किरदार पीछे छूट जाते हैं, लेकिन “चक्र” में ऐसा नहीं है।
हर नायक का एक अहम रोल है —
ध्रुव अपनी समझदारी और जासूसी दिमाग से रहस्य सुलझाता है, नागराज अपनी शक्तियों से खतरनाक हालात संभालता है, डोगा अपने खौफनाक अंदाज़ से दुश्मनों की नींद उड़ाता है और परमाणु अपनी साइंटिफिक सोच से तकनीकी मुश्किलों को हल करता है।
यह बैलेंस कहानी को और मज़बूत और रोमांचक बनाता है।
संवाद: कॉमिक्स के डायलॉग्स बिल्कुल पात्रों के स्वभाव के मुताबिक हैं — असरदार और याद रह जाने वाले।
नायकों के बीच की बातचीत, उनके रिश्ते और संकट के समय की उनकी प्रतिक्रियाएँ कहानी में एक मानवीय एहसास लाती हैं।
खलनायक के डायलॉग्स में उसका अहंकार और उसकी सोच साफ़ झलकती है।
सबसे अच्छी बात यह है कि संवाद कहानी की स्पीड को कभी धीमा नहीं करते, बल्कि उसे और आगे बढ़ाते हैं।
गति और रोमांच: कहानी की रफ्तार शुरू से लेकर आख़िर तक बनी रहती है। एक के बाद एक नए रहस्य, चुनौतियाँ और ट्विस्ट सामने आते रहते हैं, जिससे रीडर की दिलचस्पी ज़रा भी कम नहीं होती।
जॉली सिन्हा ने कहानी में एक्शन, साइंस, रहस्य और इमोशन का ऐसा मिक्स बनाया है कि कॉमिक्स का मज़ा दुगुना हो जाता है।
खलनायक: एक सोचने पर मजबूर कर देने वाला दुश्मन
“चक्र” का विलेन, जो अंत में खुद को “महामानव” कहता है, कोई आम खलनायक नहीं है।
वो दुनिया पर कब्ज़ा करने या पैसे के पीछे नहीं भाग रहा। उसकी सोच गहरी और फिलॉसॉफिकल है।
वो मानता है कि इंसान विकास की प्रक्रिया की सबसे बड़ी गलती है — क्योंकि इंसान ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल रचना के बजाय विनाश, प्रदूषण और युद्ध के लिए किया है।
उसके मुताबिक, इंसान ने प्रकृति का संतुलन बिगाड़ दिया है, इसलिए वह “विकास के चक्र” को उलटकर धरती को उस दौर में वापस ले जाना चाहता है जहाँ इंसान मौजूद ही नहीं था — ताकि प्रकृति खुद को ठीक कर सके।
ये सोच इस खलनायक को एक आम विलेन से अलग बनाती है। वो सिर्फ़ बुरा नहीं है, बल्कि अपनी नज़र में खुद को सही और “हीरो” समझता है।
यही बात उसे जटिल और दिलचस्प बनाती है।
रीडर भी एक पल को सोचने पर मजबूर हो जाता है — क्या वाकई उसकी बात में कुछ सच्चाई है?
ऐसे विलेन जो खुद को नायक मानते हैं, वो हमेशा ज़्यादा यादगार और खतरनाक होते हैं। “चक्र” का महामानव भी उसी कैटेगरी में आता है।
निष्कर्ष: क्यों ‘चक्र’ आज भी उतना ही असरदार है?
राज कॉमिक्स का महाविशेषांक “चक्र” सिर्फ़ एक कॉमिक्स नहीं, बल्कि भारतीय कॉमिक्स के इतिहास का एक अहम पड़ाव है, जो उस दौर की रचनात्मकता, सोच और कहानी कहने के जुनून का प्रतीक है। यह कॉमिक्स अनुपम सिन्हा की कला और जॉली सिन्हा के लेखन का एक शानदार मेल है, जिन्होंने मिलकर एक ऐसा अनुभव बनाया जो आज भी पढ़ने वालों को रोमांचित कर देता है। “चक्र” भारतीय कॉमिक्स की दुनिया में मल्टी-हीरो स्टोरी का सबसे बढ़िया उदाहरण है, जहाँ हर किरदार को उसकी अहमियत और स्क्रीन टाइम मिला, जिसने राज कॉमिक्स यूनिवर्स के कॉन्सेप्ट को और भी मज़बूत किया।
गंभीर और सोचने वाले विषय:
यह कॉमिक्स सिर्फ़ लड़ाई-धमाकों की कहानी नहीं है, बल्कि इंसानियत, पर्यावरण और विकास के असली मायनों पर सवाल उठाती है।
यह मनोरंजन के साथ-साथ सोचने पर मजबूर भी करती है — और यही बात इसे एक क्लासिक बनाती है।
आज जब हम डिजिटल युग में खोए हुए हैं, “चक्र” जैसी कॉमिक्स हमें उस दौर की याद दिलाती हैं जब कल्पना की जादुई दुनिया कागज़ के पन्नों पर बसती थी।
यह न सिर्फ़ पुराने फैंस के लिए एक नॉस्टैल्जिक सफ़र है, बल्कि नई पीढ़ी के लिए भी यह साबित करती है कि भारतीय कॉमिक्स किसी भी इंटरनेशनल लेवल की कहानी से कम नहीं थीं।
“चक्र” सच में एक ऐसा चक्र है जिसमें रीडर बार-बार लौटकर जाना चाहेगा — भारतीय कॉमिक्स के सुनहरे युग का एक चमकदार रत्न।
