भारतीय कॉमिक्स के स्वर्ण युग में, मनोज कॉमिक्स सिर्फ अपने जासूसी और सुपरहीरो किरदारों (जैसे राम-रहीम, हवलदार बहादुर) के लिए ही मशहूर नहीं थी, बल्कि ‘मनोज चित्र कथा’ के अंतर्गत आने वाली सामाजिक, पौराणिक और लोककथाओं वाली कहानियों के लिए भी उतनी ही पसंद की जाती थी। “रूप-बसंत” इसी शृंखला की एक शानदार और यादगार कहानी है।
यह कहानी दो भाइयों रूप और बसंत के अटूट प्यार, सौतेली माँ के जुल्म, किस्मत के खेल और आखिर में अच्छाई की जीत पर आधारित है। भारत के कई राज्यों में यह कहानी लोककथा के रूप में सुनी-सुनाई जाती रही है, और बिमल चटर्जी ने इसे बहुत ही सुंदर और आसान शब्दों में कॉमिक के रूप में पेश किया है।
नियति और संघर्ष की गाथा
कहानी को अच्छे से समझने के लिए इसे हम अलग-अलग हिस्सों में देख सकते हैं:
सुखी परिवार और त्रासदी
कहानी की शुरुआत ‘विराट द्वीप’ से होती है, जहाँ राजा उग्रसेन राज करते थे। उनका जीवन अपनी रानी और दो बेटों — रूप और बसंत — के साथ बहुत खुशियों में बीत रहा था। लेकिन किस्मत ने कुछ और ही तय कर रखा था। रानी अचानक बीमार पड़ती है और उसकी मौत हो जाती है। इस घटना से राजा और दोनों राजकुमार बेहद दुखी हो जाते हैं। पत्नी के जाने के बाद राजा उग्रसेन टूट जाते हैं और राजकाज की जिम्मेदारी भी छोड़ देते हैं। प्रजा और मंत्रियों के लगातार आग्रह करने पर राजा दोबारा शादी करने के लिए तैयार होते हैं। वह पड़ोसी राज्य की राजकुमारी ‘पद्मा’ से विवाह करते हैं, लेकिन एक शर्त के साथ — कि वह उनके बेटों को सगी माँ जैसा प्यार देगी।

सौतेली माँ का कुचक्र
शुरुआत में सब ठीक चलता है, लेकिन जैसे-जैसे साल बीतते हैं, रूप और बसंत बड़े हो जाते हैं। रानी पद्मा, जो उम्र में राजा से काफी छोटी लगती है, धीरे-धीरे रूप की सुंदरता और युवा आकर्षण पर मोहित होने लगती है। कहानी यहीं से एक बहुत गहरे और चौंकाने वाले मोड़ पर पहुँचती है। पद्मा रूप के सामने प्रेम का प्रस्ताव रखती है। लेकिन संस्कारों वाला रूप इसे पाप बताते हुए साफ-साफ मना कर देता है और उसे ‘माँ’ कहकर संबोधित करता है।
इस बात से पद्मा बुरी तरह जल जाती है और गुस्से से बदले की आग में भर जाती है। वह राजा उग्रसेन से झूठ बोलती है कि रूप ने उसके साथ गलत व्यवहार किया। राजा, जो नई पत्नी के प्यार में अंधे हो चुके थे, बिना किसी जाँच-पड़ताल के अपने ही बेटे रूप को मौत की सजा सुनाने का आदेश दे देते हैं।
निर्वासन और अलगाव
जल्लाद (सैनिक) रूप को मारने के लिए जंगल ले जाते हैं, लेकिन बसंत भी अपने बड़े भाई के साथ जाने की जिद करता है। जंगल पहुँचकर सैनिकों का दिल पसीज जाता है और वे रूप को मारने के बजाय उसे भाग जाने का मौका दे देते हैं, और राजा को धोखा देने के लिए एक जानवर की आँखें और खून लेकर लौट जाते हैं।
जंगल में दोनों भाई लंबे समय तक भटकते रहते हैं। एक रात जब दोनों पेड़ के नीचे सो रहे होते हैं, तभी एक जहरीला सांप रूप को काट लेता है। बसंत जब उठता है तो रूप को मृत समझकर फूट-फूटकर रोने लगता है। इसी दौरान पास के राज्य ‘चक्रमगढ़’ के लोग वहाँ आते हैं। उनके राजा की मौत हो चुकी थी और वे नए राजा की तलाश में राजकीय हथिनी (हाथी) को लेकर घूम रहे थे। हथिनी बसंत के गले में माला डाल देती है — और किस्मत के खेल से जंगल में भटकता हुआ बसंत ‘चक्रमगढ़’ का राजा बन जाता है।
रूप का संघर्ष और नया जीवन
दूसरी तरफ, एक सपेरा वहाँ आता है और देखता है कि रूप मरा नहीं है, बल्कि ज़हर के असर से बेहोशी की हालत में है। वह जड़ी-बूटियों से उसका इलाज करता है। होश में आने पर रूप अपने छोटे भाई को न पाकर बहुत दुखी होता है।
यहीं से रूप की ज़िंदगी एक नई और रोमांच से भरी राह पकड़ लेती है:
शेर से सामना: रूप एक ऐसे नगर में पहुँचता है जहाँ एक आदमखोर शेर लोगों को आतंकित कर रहा था। रूप हिम्मत दिखाते हुए अकेले ही उस शेर को मार गिराता है और लोगों को बचा लेता है।

धोखा: वहीं एक कुम्हार यह सब देख रहा होता है। वह घायल रूप को बेहोश कर देता है और शेर को मारने का पूरा श्रेय खुद ले लेता है। राजा कुम्हार को इनाम देता है और बेचारा रूप फिर से दर-दर भटकने को मजबूर हो जाता है।
सौदागर शिवलाल: रूप बेहोशी की हालत में समुद्र किनारे पड़ा होता है, तभी शिवलाल नाम का एक सौदागर उसे मिलता है। शिवलाल उसे अपने पास रख लेता है और रूप को अपना धर्मपुत्र मानकर पालता है।
प्रेम, विश्वासघात और पुनर्मिलन
सौदागर के साथ सफर करते हुए रूप ‘सिंह द्वीप’ पहुँचता है। वहीं उसकी मुलाकात राजकुमारी ‘मेनका’ से होती है। दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगते हैं और कुछ समय बाद शादी हो जाती है। लेकिन यहाँ भी रूप की किस्मत उसका पीछा नहीं छोड़ती। वापसी के समय सौदागर शिवलाल की नीयत मेनका पर खराब हो जाती है। वह मौके का फायदा उठाकर धोखे से रूप को समुद्र में धक्का दे देता है।
मेनका अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए चालाकी से सौदागर को खुद से दूर रखती है। किस्मत से, रूप डूबता नहीं है, बल्कि बच जाता है और एक धोबी उसे किनारे पर बचा लेता है।
आखिरकार, कहानी का असली जज़्बाती और धमाकेदार मोड़ आता है। मेनका, शिवलाल और रूप (जो अब धोबी के भेष में होता है) संयोग से राजा बसंत के दरबार में पहुँचते हैं। वहाँ सबके सामने इंसाफ की गुहार लगाई जाती है। बसंत अपने बड़े भाई रूप को पहचान लेता है। दोनों भाई गले मिलते हैं, दुष्ट सौदागर को सजा दी जाती है और दोनों अपने पिता राजा उग्रसेन के पास लौटते हैं। अंत में पूरा परिवार फिर से एक हो जाता है और कहानी खुशी के साथ खत्म होती है।
पात्र विश्लेषण (Character Analysis)
रूप: कहानी का मुख्य नायक। उसका चरित्र बहुत मजबूत और सिद्धांतों वाला है — बिलकुल मर्यादा पुरुषोत्तम राम की तरह। सौतेली माँ के गलत प्रस्ताव को ठुकराकर उसने अपने संस्कार और मर्यादा को निभाया। वह बहादुर है (शेर को मारना) और वह दुख और धोखे के बाद भी कभी हार नहीं मानता। वह भारतीय संस्कृति के आदर्श ‘आज्ञाकारी पुत्र’ का प्रतीक है।
बसंत: छोटा भाई, जिसका समर्पण और भाई के लिए प्यार बिल्कुल लक्ष्मण की तरह है। उसका राजा बनना यह दिखाता है कि किस्मत मेहनती और नेक लोगों का साथ देती है। वह ईमानदार और न्यायप्रिय शासक बनता है।
रानी पद्मा: कहानी की मुख्य खलनायिका। वह कैकेयी और पौराणिक दुष्ट सौतेली माँ जैसी है। उसका किरदार दिखाता है कि वासना, ईर्ष्या और अहंकार से भरा स्वभाव एक पूरे परिवार को तबाह कर सकता है।
राजा उग्रसेन: एक कमजोर पिता और शासक, जो पत्नी के मोह में अंधे होकर अपना विवेक खो देता है। वह उन लोगों का प्रतीक है जो भावनाओं में बहकर गलत फैसले ले लेते हैं।
सौदागर शिवलाल और कुम्हार: ये दोनों कहानी में समाज के उन स्वार्थी लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो दूसरों की मेहनत और मुसीबत का फायदा उठाने में बिल्कुल नहीं हिचकते।

चित्रांकन और कला (Artwork and Illustrations)
‘विनोद आर्ट’ द्वारा किया गया चित्रांकन उस दौर की खास कॉमिक स्टाइल को बहुत अच्छे तरीके से दिखाता है।
कवर पेज: कवर पेज बेहद आकर्षक और ध्यान खींचने वाला है। जिसमें जहाज से गिरते हुए रूप और ऊपर खड़ी डरी हुई मेनका का दृश्य शानदार और नाटकीय लगता है। तेज रंगों का प्रयोग इसे और भी ज़्यादा प्रभावशाली बनाता है।
महलों, जंगलों और समुद्र के दृश्यों को बहुत ही बारीकी और सुंदर तरीके से दिखाया गया है। खासकर कपड़ों और आभूषणों — राजाओं की पगड़ियाँ, रानियों के आभूषण और सैनिकों की वर्दियाँ — कहानी के पौराणिक माहौल को पूरी तरह जिंदा कर देती हैं। पात्रों के चेहरों पर भाव बहुत स्पष्ट दिखाई देते हैं। रानी पद्मा के चेहरे पर चालाकी, रूप के चेहरे पर तेज और राजा के चेहरे पर पछतावा आसानी से महसूस होता है। हाँ, 80–90 के दशक की कॉमिक्स की तरह कहीं-कहीं छपाई हल्की या बिखरी दिख सकती है, लेकिन यह उस समय की तकनीकी सीमाओं के कारण स्वाभाविक है।
लेखन और संवाद (Writing and Dialogues)
बिमल चटर्जी की लिखने की शैली सरल होने के बावजूद बहुत असरदार है।
संवाद: यहाँ के संवाद काफी नाटकीय और फिल्मी अंदाज़ वाले हैं, जो उस समय के पाठकों को खूब पसंद आते थे। जैसे जब रानी पद्मा रूप को फँसाती है या जब रूप अपनी निर्दोषता साबित करता है, तब संवादों में बड़े और भावनात्मक हिंदी शब्दों का इस्तेमाल पूरी कहानी का असर और गहरा कर देता है।
कथा प्रवाह (Pacing): कहानी बहुत तेज गति से आगे बढ़ती है। पढ़ते समय कभी बोरियत महसूस नहीं होती। एक घटना के बाद दूसरी घटना तुरंत सामने आ जाती है—जंगल, सांप का काटना, राजा बनना, शेर से लड़ाई, समुद्र में गिरना—यह सब दिखाता है कि कहानी कितनी दमदार और कसकर लिखी गई है।
समीक्षात्मक विश्लेषण (Critical Analysis)
सकारात्मक पक्ष:
नैतिक मूल्य: यह कॉमिक भारतीय संस्कारों और मूल्यों जैसे—बड़ों का सम्मान, चरित्र की पवित्रता, और भाईचारे—को बहुत खूबसूरती से सामने लाती है।
मनोरंजन: ड्रामा, एक्शन, रोमांस, धोखा, सस्पेंस—सब कुछ है इसमें। यह पूरी तरह मनोरंजन से भरी मसाला कहानी है।
नॉस्टेल्जिया: 90 के दशक के पाठकों के लिए यह कॉमिक बचपन और पुरानी यादों से भरा खजाना है। इसे पढ़ते ही ऐसा लगता है जैसे दादी-नानी की लोककथाओं वाला दौर फिर लौट आया हो।

नकारात्मक पक्ष:
रूढ़िवादिता (Stereotypes): कहानी में सौतेली माँ को पूरी तरह खलनायिका के रूप में दिखाया गया है, जो एक बहुत पुरानी और बार-बार इस्तेमाल की गई थीम है। महिलाओं का चित्रण भी पारंपरिक है—वे या तो बहुत अच्छी होती हैं या बहुत बुरी।
तर्क की कमी: कई जगह कहानी तर्क से हटकर चलती है। जैसे हथिनी द्वारा किसी अजनबी को माला डालकर राजा चुन लेना, या रूप का इतनी ऊँचाई से समुद्र में गिरकर भी बच जाना। लेकिन चूंकि लोककथाओं में चमत्कार आम बात होती है, इसलिए इसे बड़ी कमी नहीं माना जा सकता।
राजा का अंधापन: राजा उग्रसेन का बिना किसी जांच के अपने बेटे को मौत की सजा दे देना आज के पाठकों को अति कठोर और अव्यवहारिक लग सकता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
मनोज कॉमिक्स की “रूप-बसंत” सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि भारतीय लोक-साहित्य को चित्रों के माध्यम से जीवंत करके पेश करने वाली एक शानदार रचना है। यह कॉमिक हमें सिखाती है कि सच कभी हार नहीं मानता—रूप परेशान जरूर होता है, लेकिन झुकता नहीं। रूप और बसंत के किरदार यह संदेश देते हैं कि जिंदगी में कठिनाइयाँ कितनी भी बड़ी हों, हिम्मत और धैर्य हमें मंज़िल तक पहुँचा ही देते हैं।
आज की आधुनिक ग्राफिक नोवेल्स से तुलना की जाए तो इसका आर्टवर्क और प्रिंटिंग भले ही साधारण लगे, लेकिन कहानी की जान और भावना आज भी पहले जितनी ही मज़बूत है। भारतीय लोककथाओं को पसंद करने वाले हर पाठक के लिए यह जरूर पढ़ने लायक (Must Read) कॉमिक है — खासकर उनके लिए जो कॉमिक्स के जरिए पुराने ज़माने का एहसास फिर से जीना चाहते हैं।
अंतिम निर्णय:
यह कॉमिक सच में एक ‘क्लासिक’ है। इसमें वो हर चीज़ है जो किसी बढ़िया कहानी में होनी चाहिए — ड्रामा, भावना, संघर्ष, परिवार, प्रेम और जीत। उस समय 8 रुपये की कीमत में यह एक खज़ाना जैसा मनोरंजन था। आज भी अगर आप इसे पढ़ेंगे तो खुद को रूप और बसंत की दुनिया में डूबा हुआ महसूस करेंगे।
रेटिंग: 4/5 (कहानी और पुरानी यादों के लिए)
