तिरंगा, जिसका असली नाम अभय देशपांडे है, सिर्फ एक सुपरहीरो नहीं बल्कि भारत की शान और गर्व का जिंदा प्रतीक है। उसकी ड्रेस में हमारे तिरंगे के तीन रंग झलकते हैं और उसके हाथ में जो ‘सुरक्षा-चक्र’ वाली ढाल है, वो दुश्मनों के लिए किसी काल से कम नहीं।
‘अरेस्ट हिम’ नकलची कॉमिक्स का दूसरा और आखिरी पार्ट है, और इसी कॉमिक्स की हम यहाँ चर्चा करने वाले हैं। इसे हनीफ अजहर ने लिखा था और इसका दूसरा पार्ट भी दिलीप चौबे ने ही तैयार किया है। कॉमिक्स का नाम ही पढ़ते ही दिमाग में एक बड़ा सवाल उठता है—जो नायक खुद कानून और न्याय की रक्षा करता है, वही गिरफ्तार क्यों हो रहा है?
यही से शुरू होती है ये कहानी, जो देशभक्ति, धोखे, भ्रष्टाचार और न्याय बनाम बदले की टकराहट से भरी हुई है।
कथानक का विस्तृत विश्लेषण
कहानी की शुरुआत ऐसे सीन से होती है जो किसी भी तिरंगा फैन को हिला कर रख दे। दिल्ली के आसमान में जब तिरंगा का सुरक्षा-चक्र चमकता है तो वो इंसाफ की पहचान लगता है। लेकिन यहाँ तो इंसाफ का रखवाला खुद ही पुलिस की हथकड़ियों में जकड़ा नज़र आता है। पुलिस उसे पकड़ लेती है और तिरंगा के चेहरे पर हैरानी और दर्द साफ दिखता है। इतनी जबरदस्त शुरुआत पढ़ने वाले को तुरंत कहानी से जोड़ लेती है।

जल्दी ही पता चलता है कि इस पूरे खेल के पीछे एक चालाक अपराधी ‘नकलची’ का हाथ है। नाम जैसा ही उसका काम—वो किसी की भी आवाज़ हूबहू कॉपी कर सकता है। उसने तिरंगा का रूप बनाकर और उसकी आवाज़ निकालकर पुलिस कमिश्नर पर हमला कर दिया। अब पुलिस की नज़र में तिरंगा अपराधी बन चुका है। लेकिन नकलची का असली मकसद सिर्फ तिरंगा को फंसाना नहीं, बल्कि उससे कहीं बड़ा है। उसका असली दुश्मन है भ्रष्ट मुख्यमंत्री (सी.एम.), जिसने उसके पिता राकेश डांगी को मरवा दिया था। राकेश डांगी सी.एम. के पी.ए. थे और उनके पास एक डायरी थी, जिसमें सी.एम. की सारी काली करतूतें लिखी थीं। अब नकलची का टारगेट है दो—पिता की मौत का बदला और डायरी ढूंढकर सी.एम. की पोल खोलना।
कहानी का दूसरा पहलू पुलिस और कानून में भरोसे को दिखाता है। जिस कमिश्नर पर हमला हुआ था, वो तिरंगा पर अटूट भरोसा रखते हैं। उन्हें पूरा यकीन है कि तिरंगा उन पर हाथ नहीं उठा सकता। इसी भरोसे के चलते वो तिरंगा को छोड़ देते हैं ताकि वो असली अपराधी को पकड़कर अपनी बेगुनाही साबित कर सके। यही पल कहानी का टर्निंग पॉइंट है, जहाँ तिरंगा भगोड़ा नहीं बल्कि सच्चे न्याय का खोजी बन जाता है।
इसके बाद तिरंगा नकलची की तलाश में निकलता है। उधर नकलची को पता चलता है कि सी.एम. ने उसकी हत्या के लिए गवली नाम के माफिया डॉन को सुपारी दी है। नकलची अपने घर में डायरी ढूंढ ही रहा होता है कि गवली के गुंडे उस पर टूट पड़ते हैं। तभी अचानक तिरंगा फरिश्ते की तरह पहुंचकर नकलची की जान बचा लेता है। लेकिन नकलची उसे पहचान नहीं पाता और वहाँ से भाग निकलता है।

फिर नकलची एक और चाल चलता है। वो सी.एम. के बेटे सुदेश के अपहरण का ड्रामा करता है। अपनी आवाज़ बदलने की कला से वो सी.एम., सुदेश और गवली को एक पुराने खंडहर में बुला लेता है। उसका इरादा था एक ही वार से तीन शिकार करना। यहाँ धमाकेदार भिड़ंत होती है। गोलियों की बौछार के बीच तिरंगा फिर अपना फर्ज निभाता है। वो जानता है कि सी.एम. गद्दार है, लेकिन फिर भी उसे गवली के गुंडों से बचाता है। क्योंकि तिरंगा का सिद्धांत साफ है—कानून को अपने हाथ में नहीं लेना, बल्कि उसकी रक्षा करना।
कहानी का असली रोमांच तब शुरू होता है जब नकलची अपनी आखिरी चाल चलता है। वो सी.एम. को उसके मरे हुए पिता राकेश डांगी की आवाज़ में फोन करके यकीन दिलाता है कि डायरी उनकी कब्र में छुपी है। लालच में सी.एम. वहाँ पहुँच जाता है। तिरंगा भी नकलची का पीछा करते हुए कब्रगाह तक पहुँच जाता है। वहाँ दोनों आमने-सामने आ जाते हैं। भिड़ंत के दौरान तिरंगा को एक गुंडे की लाश से एक चाबी मिलती है, जिस पर खास निशान बना होता है।
वो चाबी तिरंगा को एक पुराने मंदिर तक ले जाती है। तिरंगा को यकीन हो जाता है कि डायरी वहीं छुपी है। वो मंदिर के लॉकर और दानपात्र खंगालता है और आखिरकार एक दानपात्र से डायरी मिल जाती है। लेकिन तभी नकलची वहाँ आ धमकता है। वो साफ बता देता है कि ये सब उसकी प्लानिंग थी। उसे पता था कि तिरंगा उससे बेहतर जासूस है और डायरी वही ढूंढ सकता है। उसने तिरंगा को बस मोहरे की तरह इस्तेमाल किया। वो मंदिर की घंटियों की आवाज़ का फायदा उठाकर पुलिस और तिरंगा दोनों को बेवकूफ बनाता है और डायरी लेकर फरार हो जाता है।
कॉमिक्स का अंत ज़बरदस्त क्लिफहेंगर पर होता है। नकलची डायरी के साथ भाग चुका है और उसका इरादा है सिर्फ सी.एम. नहीं बल्कि हर भ्रष्ट नेता को बेनकाब करना। तिरंगा एक बार फिर ठगा सा रह जाता है और पाठक सोच में पड़ जाते हैं—अब आगे क्या होगा?
चरित्र-चित्रण
‘अरेस्ट हिम’ कॉमिक्स की सबसे बड़ी ताकत इसके किरदार हैं। तिरंगा यहाँ सिर्फ एक ताकतवर योद्धा नहीं है, बल्कि कानून और न्याय पर अटूट भरोसा रखने वाला आदर्श नायक दिखाया गया है। उसकी खासियत सिर्फ उसकी ताकत नहीं, बल्कि उसकी जासूसी समझ और अपने सिद्धांतों के प्रति ईमानदारी है, जो उसे और भी बड़ा बनाती है।

वहीं खलनायक नकलची भी कोई आम अपराधी नहीं है। अपने पिता की मौत का बदला लेने की वजह से उसके किरदार में भावनाएँ जुड़ जाती हैं, जिससे कहीं-न-कहीं पाठक भी उसके प्रति थोड़ी सहानुभूति महसूस करता है। उसकी आवाज़ बदलने की अनोखी ताकत का इस्तेमाल कहानी में मज़ेदार और अलग तरीके से किया गया है। शरीर से भले ही वो कमजोर हो, लेकिन दिमागी खेल में तिरंगा को कड़ी चुनौती देता है।
इसके अलावा, मुख्यमंत्री और गवली जैसे किरदार राजनीति और अपराध के गठजोड़ को दिखाते हैं।
कला और चित्रांकन
दिलीप चौबे की ड्रॉइंग उस दौर की याद दिलाती है जब राज कॉमिक्स अपने क्लासिक समय में थी। उनकी आर्टवर्क में दम और ऊर्जा झलकती है। चाहे तिरंगा की गुंडों से भिड़ंत हो या खंडहर में गोलियों की बारिश—हर एक्शन सीन ज़बरदस्त तरीके से बनाया गया है।
चेहरों के भाव भी बहुत असरदार हैं—नकलची की चालाक मुस्कान और तिरंगा की दृढ़ता कहानी को और असली बना देते हैं। रंगों का इस्तेमाल भी सीन के हिसाब से किया गया है—तनाव वाले पलों में गहरे रंग और तिरंगा के दृश्यों में चमकीले रंग।
निष्कर्ष
‘तिरंगा – अरेस्ट हिम’ सिर्फ एक कॉमिक्स नहीं बल्कि एक शानदार थ्रिलर है। इसकी कहानी टाइट है और हर पन्ने पर नया ट्विस्ट और सस्पेंस है। यह कॉमिक्स एक अहम सवाल उठाती है—क्या गलत रास्ते से सही मकसद हासिल करना सही है?
ये तिरंगा की सबसे यादगार कहानियों में से एक है, क्योंकि इसमें उसे ऐसी चुनौती मिलती है जहाँ उसे बाहर के दुश्मनों के साथ-साथ सिस्टम के भीतर के अविश्वास से भी लड़ना पड़ता है। नकलची जैसे चालाक दुश्मन से उसका मुकाबला इस कहानी को और खास बना देता है।
कहानी का क्लिफहेंजर एंडिंग पाठक को आगे के लिए और उत्सुक कर देता है।
कुल मिलाकर, ‘अरेस्ट हिम’ राज कॉमिक्स के सुनहरे दौर की एक बेहतरीन मिसाल है, जो आज भी उतनी ही रोमांचक और मज़ेदार लगती है। ये हर कॉमिक्स प्रेमी के लिए पढ़ने लायक है।

2 Comments
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