राज कॉमिक्स ने भारतीय पाठकों को एक से बढ़कर एक नायक और कहानियाँ दीं। नागराज, सुपर कमांडो ध्रुव, परमाणु, भेड़िया, कोबी और शक्ति जैसे किरदार घर-घर में मशहूर हो गए थे। लेकिन ‘विध्वंस’ सिर्फ एक कॉमिक नहीं थी; यह एक ईवेंट थी — ऐसी घटना जिसने राज कॉमिक्स की दुनिया को हमेशा के लिए बदल दिया। यह वही कहानी थी जिसने सच में भारतीय कॉमिक्स में ‘क्रॉसओवर’ की शुरुआत की। जैसे मार्वल का ‘इन्फिनिटी वॉर’ या डीसी का ‘क्राइसिस’, उसी तरह यह कहानी अपने बड़े नायकों को एक साथ लाकर एक महाविनाश के खिलाफ खड़ा कर देती है।
‘विध्वंस’ की सबसे बड़ी ताकत इसके रचयिता हैं — अनुपम सिन्हा। जब कहानी लिखना और चित्र बनाना दोनों एक ही इंसान के हाथ में हों, तो एक खास तालमेल दिखता है। अनुपम सिन्हा, जो ध्रुव के सर्जक और नागराज को नए रूप में वापस लाने वाले हैं, ने ‘विध्वंस’ के साथ अपने करियर का शायद सबसे बड़ा प्रोजेक्ट लिया था। यह कॉमिक सिर्फ कोई लड़ाई नहीं है — यह अच्छाई और बुराई की पुरानी लड़ाई है, व्यवस्था और अराजकता पर सवाल है, और किस्मत के खेल की एक गहरी कहानी भी है। लगभग 1600 शब्दों की यह समीक्षा ‘विध्वंस’ के हर पहलू को गहराई से देखने की कोशिश है।
महाविनाश का ताना–बाना
‘विध्वंस’ की कहानी की शुरुआत ही अलग और दिलचस्प है। यह नागराज या ध्रुव जैसे किसी बड़े नायक से नहीं शुरू होती। शुरुआत होती है असम के घने, रहस्यमयी जंगलों से, जहाँ राज कॉमिक्स के दो बहुत ताकतवर और जंगली किरदार — कोबी (भेड़ियों का मालिक) और भेड़िया (जंगल का रक्षक) — अपनी पुरानी दुश्मनी निभा रहे हैं। उनकी लड़ाई एक औरत ‘जेन’ पर टिकी है। दिखावे में ताकत दिखाने के लिए, कोबी एक विशाल, पुराना पेड़ जड़ से उखाड़ देता है। यह एक बड़ी गलतियाँ साबित होती है। उस पेड़ के नीचे एक सौ सालों से छिपी हुई रहस्यमयी संरचना दबे हुई थी — और अब वह खुल जाती है।

जिस पल यह संरचना खुलती है, युगों से बंद एक शैतानी शक्ति ‘अधम’ (Adham) आज़ाद हो जाती है। अधम कोई आम दुश्मन नहीं है; वह अराजकता का नाम है, खुद विनाश का रूप है। इतना प्राचीन है कि उसकी कैद का इतिहास भी कोई अच्छे से नहीं जानता।
अधम के छूटते ही, प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाता है। यह असर हजारों किलोमीटर दूर भी महसूस होता है — एक बड़े शहर में एक सामान्य दिखने वाली बूढ़ी औरत को सड़क पार कराते हुए एक साधारण इंसान ‘सधम’ (Sadham) को भी यह बात खटकती है। सधम, अधम का उल्टा रूप है — वह ‘व्यवस्था’ का प्रतीक है। वह भी उतना ही पुराना और शक्तिशाली है, और सदियों से इंसानों के बीच अलग-अलग रूप लेकर इसलिए रहा था ताकि वह अधम पर नजर रख सके। सधम समझता है कि अधम की आज़ादी का मतलब केवल एक ही चीज़ है — विध्वंस।

अधम की योजना सीधे और खतरनाक है। वह सधम से सीधे टकराने की बजाय, धरती के रक्षकों यानी महानायकों को खत्म करने का प्लान बनाता है। उसका तरीका है — “मैं इन महानायकों की जान बचाऊँगा। अगर इनकी जानें बचाई जा सकती हैं तो मैं ऐसा नहीं होने दूँगा!” (सधम का कथन) और अधम कहता है: “तू एक बार मुझे छल से हरा चुका है, सधम; पर इस बार मैं इन्हें इनके ही दुश्मनों से मरवाऊंगा! तू मुझे रोक सकता है, पर इन्हें नहीं!”
यहीं से शुरू होता है ‘विध्वंस’ का असली खेल।
अधम अब अपनी ताकत का इस्तेमाल करके राज कॉमिक्स के सभी बड़े खलनायकों से संपर्क करता है। वह उन्हें पहले से भी ज़्यादा ताकतवर बना देता है और आदेश देता है कि वे अपने-अपने नायक दुश्मनों को एक ही समय पर खत्म कर दें।
इसके बाद कहानी हॉलीवुड के किसी बड़े ब्लॉकबस्टर जैसी रफ्तार पकड़ लेती है। एक साथ कई मोर्चों पर जंग छिड़ती है। अनुपम सिन्हा ने इतनी जटिल कहानी को बड़ी कुशलता से बुना है। वह एक युद्ध से दूसरे युद्ध में बहुत ही आसानी से ट्रांजिशन करते हैं। एक पल में पाठक नागराज की सर्प-शक्तियों का धमाकेदार तांडव देखता है, और अगले ही पल ध्रुव की तेज दिमागी चालें और शारीरिक चुस्ती। यह ‘कट-टू-कट’ स्टाइल इतनी तेज़ है कि पाठक को साँस लेने की भी फुर्सत नहीं मिलती। यही चीज़ ‘विध्वंस’ को सच में एक ग्लोबल स्केल की कॉमिक बना देती है।
चरित्र-चित्रण: देव और दानव
‘विध्वंस’ की रीढ़ हैं इसके दो नए और दमदार किरदार — अधम और सधम।
अधम (अराजकता): अधम कोई साधारण विलेन नहीं, बल्कि एक सोच है — अराजकता (Chaos) की सोच। उसका मानना है कि व्यवस्था यानी “ऑर्डर” असली बेड़ी है, और सृष्टि का आखिरी सच सिर्फ विनाश है। वह निर्दयी है, ताकतवर है, और सबसे बढ़कर, एक चतुर रणनीतिकार है। उसे लगता है कि सधम ने उसे छल से कैद किया था, इसलिए अब वह बदला लेने निकला है। वह नायकों को उन्हीं के पुराने दुश्मनों से मरवाने की योजना बनाता है। उसका डिज़ाइन — लाल रंग का विशाल, डरावना और राक्षसी शरीर — उसके स्वभाव को बखूबी दिखाता है।

सधम (व्यवस्था): सधम अधम का पूरा उल्टा रूप है। वह व्यवस्था यानी Order का प्रतीक है। उसका नीला, शांत और दैवी रूप उसके भीतर की स्थिरता और संतुलन को दर्शाता है। सधम मानवता, उनके नियमों और सभ्यता को मूल्यवान मानता है। वह मानता है कि पृथ्वी के नायक अधम के खिलाफ उसकी सबसे बड़ी ‘शील्ड’ हैं, इसलिए उनकी रक्षा करना उसका कर्तव्य है। लेकिन यही उसकी सोच उसे कभी-कभी सख्त बना देती है। वह बड़े भले के लिए छोटी कुर्बानियाँ देने में नहीं झिझकता।
महानायकों का चित्रण
इस कॉमिक में हर नायक अपनी चरम स्थिति में दिखता है। नागराज यहाँ अपने सबसे शक्तिशाली रूप में है। वह सधम के साथ एक शारीरिक और मानसिक जंग लड़ता है, जो गलतफहमी की वजह से और भी दिलचस्प बन जाती है — क्योंकि नागराज उसे अधम का साथी समझ बैठता है।
वहीं, ध्रुव हमेशा की तरह दिमाग और रणनीति का उस्ताद है। वह रोबो की नई चालों को समझने के साथ-साथ यह पता लगाने में जुटा है कि राजनगर पर अचानक हमला क्यों हुआ।

‘विध्वंस’ किसी एक नायक की कहानी नहीं है — इसमें हर सुपरहीरो को अपनी-अपनी चमकने की जगह मिलती है। डोगा, परमाणु, कोबी और भेड़िया सभी को अपने अहम पल दिए गए हैं। यह दिखाता है कि जब खतरा इतना बड़ा हो, तो हर नायक की अपनी भूमिका कितनी जरूरी हो जाती है।
अनुपम सिन्हा ने यह बहुत खूबसूरती से किया है कि कोई भी नायक दूसरे से कम नहीं लगता — यह एक मल्टी-हीरो कॉमिक्स के लिए बड़ी सफलता है।
कला और चित्रांकन: विनाश का सौंदर्य
‘विध्वंस’ में अनुपम सिन्हा की कहानी इसकी आत्मा है, और उनके चित्र इसका शरीर। यह भारतीय कॉमिक्स में लेखन और चित्रांकन का शायद सबसे बेहतरीन मेल है।
अधम और सधम का कैरेक्टर डिज़ाइन लाजवाब है — सधम का शांत, दैवी आभामंडल और अधम का क्रोधी, राक्षसी रूप उनके स्वभाव को बिना कुछ कहे बयान कर देता है।
नायकों का चित्रण भी शानदार है — उनके क्लासिक लुक्स को बरकरार रखते हुए, उनके एक्शन सीन्स में जो ऊर्जा और मूवमेंट दिखाई देती है, वह सिन्हा की खासियत है। ‘विध्वंस’ के फाइट सीन सिर्फ मुक्के-लातों तक सीमित नहीं हैं; वे कॉस्मिक लेवल पर पहुँच जाते हैं। सधम और अधम की ताकतों की भिड़ंत, नागराज के सर्पों का जाल, परमाणु के विस्फोट और ध्रुव के स्टंट — हर पैनल में धमाका है।

सिन्हा का मोशन को पकड़ने का तरीका गज़ब का है — नागराज के घूंसे का ‘इम्पैक्ट’ मानो आप महसूस कर सकें। इतनी भारी कहानी को संभालने के लिए पैनलिंग का सही होना बहुत जरूरी था, और इसमें सिन्हा माहिर हैं। वे एक ही पेज पर कई लड़ाइयाँ दिखाते हैं, फिर भी कहानी समझ में आती रहती है। खास मौकों पर वे बड़े ‘स्प्लैश पेज’ का इस्तेमाल करते हैं — जैसे अधम का आज़ाद होना या सधम का असली रूप दिखाना — जो पूरी कॉमिक को सिनेमैटिक फील देते हैं।
अंत में, विनोद कुमार की इंकिंग ने सिन्हा के पेंसिल वर्क को और निखारा है, जिससे चित्र और भी शार्प और क्रिस्प लगते हैं। वहीं, सुनील पांडेय के रंग उस दौर के हिसाब से बेहद जीवंत हैं। खासकर अधम और सधम के लिए लाल और नीले रंग का इस्तेमाल उनके आपसी द्वंद्व को प्रतीकात्मक रूप से और गहराई देता है।
थीम और विश्लेषण: ‘विध्वंस’ का दर्शन
‘विध्वंस’ सिर्फ एक एक्शन से भरी कॉमिक्स नहीं है, बल्कि इसके अंदर कई गहरे और सोचने पर मजबूर करने वाले सवाल छिपे हैं। इसका मुख्य विचार है — व्यवस्था बनाम अराजकता (Order vs. Chaos)। यहाँ सवाल उठता है कि क्या इंसानों की दुनिया को चलाने के लिए सधम जैसी सख्त ‘व्यवस्था’ जरूरी है, या फिर अधम की ‘अराजकता’ ही असली सच है, जहाँ ताकत ही सब कुछ तय करती है — यानी “जिसकी लाठी, उसकी भैंस।”

कहानी का एक अहम हिस्सा गलतफहमी पर आधारित है — खासकर नागराज और सधम के बीच की टकराहट पर। संवाद की कमी से दोनों एक-दूसरे को दुश्मन समझ लेते हैं, जबकि दोनों सही हैं। यह थीम इस बात को दिखाती है कि कभी-कभी दो अच्छे लोग भी एक-दूसरे से लड़ सकते हैं, अगर बीच में समझ की कमी हो।
‘विध्वंस’ असल में यह भी बताती है कि क्रॉसओवर का मतलब सिर्फ नायकों को एक फ्रेम में लाना नहीं है। एक सही क्रॉसओवर तभी बनता है जब हर नायक की मौजूदगी की वजह हो, खतरा इतना बड़ा हो कि कोई अकेला नायक उसे नहीं रोक सके, और हर किरदार को अपनी चमक दिखाने का बराबर मौका मिले। इसी मायने में ‘विध्वंस’ एक परफेक्ट क्रॉसओवर कॉमिक्स साबित होती है।
विध्वंस के व्यापक विषय (The Broader Themes of Vidhwansh)
यह कॉमिक कई गहरी बातों को छूती है, जो इसे सिर्फ एक लड़ाई वाली कहानी से ऊपर उठा देती हैं। जब पृथ्वी पर अस्तित्व का संकट आता है, तो कहानी का केंद्र ‘कर्तव्य’ और ‘बलिदान’ बन जाता है।
हर किरदार को अपने निजी डर और आराम से ऊपर उठकर एक बड़े मकसद के लिए लड़ना पड़ता है। नागराज के लिए तो कर्तव्य ही सब कुछ है — वह दिखाता है कि एक सच्चा नायक अपनी ताकत से नहीं, बल्कि अपने बलिदान देने के हौसले से पहचाना जाता है।
कहानी में प्राचीन और लगभग पौराणिक शक्तियों का होना इसे आम साइ-फाई या सुपरहीरो कहानी से अलग बना देता है। यहाँ यह बात साफ की गई है कि कुछ खतरे ऐसे होते हैं जिन्हें सिर्फ विज्ञान या टेक्नोलॉजी से नहीं हराया जा सकता — उसके लिए पुराना ज्ञान, नैतिकता और आध्यात्मिक शक्ति चाहिए। यही भारतीयता इस कॉमिक को एक खास पहचान देती है।
‘विध्वंस’ का नाम भले ही विनाश की ओर इशारा करता हो, लेकिन इसके भीतर का असली संदेश है आशा (Hope)। चाहे खतरा कितना भी बड़ा क्यों न हो, जब तक रक्षक मौजूद हैं, उम्मीद जिंदा है। यह कहानी अंधेरे के सामने रोशनी की, और अराजकता के सामने व्यवस्था की जंग है। यह हमें याद दिलाती है कि असली नायक वे हैं जो अंत तक डटे रहते हैं, चाहे चारों ओर विनाश ही क्यों न हो।
निष्कर्ष: एक अविस्मरणीय महागाथा
‘विध्वंस’ राज कॉमिक्स के इतिहास में एक ऐसा मील का पत्थर है, जिसे भुलाना मुश्किल है। यह सिर्फ एक कॉमिक्स नहीं, बल्कि एक अनुभव है — अनुपम सिन्हा की रचनात्मकता का शिखर। इसमें उनकी कहानी और कला दोनों एक-दूसरे को पूरा करते हैं। यह वो कॉमिक्स है जिसने भारतीय पाठकों को पहली बार एक मल्टीवर्स-लेवल के संघर्ष से रूबरू कराया।
यह कहानी सिर्फ नायकों की जीत की नहीं, बल्कि उस ‘विध्वंस’ की है जो उनके जीवन, उनके शहर और उनके विश्वासों को हिला देता है। यह दिखाती है कि जब दो ब्रह्मांडीय शक्तियाँ टकराती हैं, तो इंसान और सुपरहीरो दोनों ही उनके खेल के मोहरे बन जाते हैं।
कहानी की गहराई, हर नायक का संतुलित चित्रण, अधम और सधम जैसे दमदार किरदार, और अनुपम सिन्हा की बेमिसाल कला — ये सब मिलकर ‘विध्वंस’ को एक मस्ट-रीड कॉमिक्स बनाते हैं।
यह भारतीय कॉमिक्स के स्वर्ण युग का वो हीरा है जिसकी चमक आज भी बरकरार है। यह सिर्फ एक कॉमिक नहीं, बल्कि भारतीय कॉमिक्स इतिहास का गौरवशाली अध्याय है, जिसने आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया और राज कॉमिक्स के ब्रह्मांड को एक नई ऊँचाई दी।
