भोकाल, यानी परीलोक का राजकुमार आलोक, अपनी अलग किस्म की कहानी और ताक़तों के लिए जाना जाता है। उसके पास महागुरु भोकाल की दी हुई शक्तियाँ थीं – जैसे उड़ने की क्षमता, असीम ताक़त और वो जादुई ढाल और तलवार। लेकिन भोकाल की कहानियों की सबसे बड़ी खूबी सिर्फ उसकी शक्तियाँ नहीं थीं, बल्कि उनमें झलकते भारतीय पौराणिक किस्से और नैतिक सीखें थीं।
आज हम जिस कॉमिक्स पर बात करने वाले हैं, उसका नाम है “दिव्यास्त्र“। ये भोकाल की सबसे बेहतरीन कहानियों में गिनी जाती है। 1997 में प्रकाशित और संजय गुप्ता द्वारा लिखी गई ये कॉमिक्स सिर्फ एक्शन और एडवेंचर से भरी कहानी नहीं है, बल्कि इसमें शौर्य, भक्ति, त्याग, समझदारी और धैर्य की ऐसी परीक्षा दिखाई गई है जो भोकाल को एक आम नायक से सच्चा महानायक बना देती है।
कहानी का सार: एक वचन और एक बड़ा मक़सद
“दिव्यास्त्र” की नींव बहुत ही भावुक पल पर रखी गई है। कहानी की शुरुआत में हमें भोकाल के अतीत की झलक मिलती है – कैसे उसने अपनी जन्म देने वाली माँ और परी माँ, दोनों को खो दिया। लेकिन किस्मत ने उसे एक तीसरी माँ का प्यार दिया। शुरुआत में भोकाल उसे एक चुड़ैल समझता था, लेकिन वही ममतामयी माँ उसे मौत के मुँह से खींचकर फिर से ज़िंदगी देती है। जाते-जाते वो माँ उसे देवताओं द्वारा पृथ्वी पर छोड़े गए दिव्यास्त्रों का रहस्य बताती है। ये दिव्यास्त्र किसी बड़े और भयानक पाप के अवतार को मिटाने के लिए बनाए गए थे।

भोकाल ने उस माँ से वादा किया था कि चाहे जान चली जाए, लेकिन वो उन दिव्यास्त्रों को ज़रूर हासिल करेगा। यही वादा इस पूरी कहानी को आगे बढ़ाता है। भोकाल का मक़सद निजी नहीं है, बल्कि पूरी इंसानियत की रक्षा करना है। इसी महान काम के लिए वो निकल पड़ता है रहस्यमयी और डरावनी मनीस्म घाटी की ओर, जहाँ दिव्यास्त्र छिपे हुए हैं। यहीं से शुरू होती है उसकी असली परीक्षा।
दिव्यास्त्रों की खोज: ताक़त, समझ और चरित्र की असली परीक्षा
ये कॉमिक्स किसी सीधी-सादी साहसिक यात्रा की तरह नहीं है। हर दिव्यास्त्र तक पहुँचने के लिए भोकाल को अलग तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, और हर बार उसकी शख़्सियत का एक नया पहलू परखा जाता है। लेखक संजय गुप्ता ने इन परीक्षाओं को इस तरह लिखा है कि हर चुनौती अलग और यादगार बन जाती है।
पहली परीक्षा (गरुड़ और सुदर्शन चक्र):
भोकाल की पहली टक्कर एक विशालकाय गरुड़ से होती है, जो इंसान की तरह बोल सकता है। थोड़ी देर तक दोनों के बीच ज़बरदस्त लड़ाई होती है, लेकिन तभी भोकाल को अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनाई देती है और उसे अहसास होता है कि ये कोई साधारण पक्षी नहीं है। वो तुरंत लड़ाई रोक देता है और झुककर गरुड़ को प्रणाम करता है। यही उसकी असली परीक्षा थी – बुद्धिमानी और विनम्रता की।
तब गरुड़ देव अपने असली रूप में आते हैं और बताते हैं कि वे भगवान विष्णु के वाहन हैं, और खुद भगवान ने उन्हें भोकाल की परीक्षा लेने भेजा था। भोकाल की विनम्रता देखकर वे खुश होते हैं और उसे एक खास पुस्तक देते हैं, जो दिव्यास्त्रों को खोजने में उसकी मदद करेगी।

इस पुस्तक की मदद से भोकाल पहुँचता है भगवान श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र तक। लेकिन चक्र की रक्षा कर रहा होता है एक भयानक सिंह। भोकाल अपनी ताक़त का इस्तेमाल करता है और उस सिंह को चक्र की परिधि में धकेल देता है। अगली ही पल, चक्र सिंह को टुकड़ों में काट देता है।
अब असली मुश्किल सामने थी – चक्र को हासिल करना। वो इतनी तेज़ी से घूम रहा था कि पास जाते ही किसी को भी खींचकर चीर देता। लेकिन भोकाल ने यहाँ अपनी समझदारी दिखाई। उसने सोचा – जब भगवान विष्णु इसे अपनी तर्जनी उंगली पर धारण करते हैं, तो वही तरीका अपनाना चाहिए। उसने हिम्मत करके अपनी उंगली आगे बढ़ाई और चक्र को साध लिया। तुरंत चक्र शांत हो गया और उसकी उंगली पर आ गया।
ये परीक्षा सिर्फ ताक़त की नहीं थी, बल्कि इसमें भोकाल की बुद्धि और श्रद्धा दोनों का इम्तिहान हुआ।
दूसरी परीक्षा (त्रिशूल):
अगला दिव्यास्त्र था भगवान शिव का त्रिशूल। लेकिन वो छिपा हुआ था एक अदृश्य दीवार के पीछे। भोकाल पूरी ताक़त झोंक देता है, लेकिन दीवार टूटती ही नहीं। बार-बार कोशिश करने के बाद उसे समझ आता है कि जहाँ ज़बरदस्ती ताक़त बेकार हो जाती है, वहाँ भक्ति का रास्ता अपनाना पड़ता है।
यहीं कहानी एक नया मोड़ लेती है। भोकाल पहली बार शारीरिक बल से ऊपर उठकर आध्यात्मिक शक्ति का सहारा लेता है। वो वहीं शिवलिंग बनाकर पूरी श्रद्धा से भगवान शिव की पूजा शुरू कर देता है।
लेकिन भक्ति का इम्तिहान इतना आसान कहाँ! भगवान शिव के बजाय उनके वाहन नंदी प्रकट होते हैं, वो भी रौद्र रूप में। नंदी भोकाल पर हमला कर देते हैं। यहाँ भोकाल की हिम्मत और सहनशीलता की असली परीक्षा होती है। वो हर वार सहता है, लहूलुहान हो जाता है, लेकिन पूजा करना और अपना विश्वास छोड़ता नहीं।
अंत में, उसकी अटूट श्रद्धा देखकर नंदी शांत हो जाते हैं और उसे भगवान शिव का त्रिशूल सौंपते हैं। ये परीक्षा दिखाती है कि सच्ची भक्ति सिर्फ पूजा-पाठ में नहीं, बल्कि कठिन से कठिन हालात में भी अपने विश्वास पर डटे रहने में है।
तीसरी परीक्षा (पिनाक धनुष):
पुस्तक में लिखा था कि भगवान शिव का पिनाक धनुष पाने के लिए “बलिदान” ज़रूरी है। शर्त ये थी कि किसी वीर पुरुष के खून से उस स्थान का अभिषेक होना चाहिए। लेकिन वहाँ वीर पुरुष तो भोकाल के अलावा और कोई था ही नहीं।
बिना ज़रा सा भी हिचकिचाए, भोकाल मानवता की भलाई के लिए खुद को बलिदान करने का निश्चय कर लेता है। वो कटार उठाकर गला काटने ही वाला होता है कि तभी पिनाक धनुष खुद सामने प्रकट हो जाता है।
असल में ये उसकी परीक्षा थी—क्या वो सच में इतने बड़े काम के लिए अपनी जान की आहुति दे सकता है? और भोकाल इस परीक्षा में सफल हो जाता है। ये त्याग और निस्वार्थता का सबसे बड़ा उदाहरण था।
चौथी और पाँचवीं परीक्षा (गदा और पाशुपतास्त्र):
इसके बाद भोकाल को चाहिए होती है हनुमान जी की गदा। इसके लिए उसे देवी काली की उपासना करनी पड़ती है। यहाँ उसकी परीक्षा राक्षसों से ज़बरदस्त लड़ाई के ज़रिए होती है। भोकाल पूरी बहादुरी से उनका सामना करता है और गदा हासिल कर लेता है।
फिर आता है नंबर भगवान गणेश के पाशुपतास्त्र का। इसके लिए भोकाल का सामना होता है एक विशालकाय ऋक्ष यानी भालू से। लेकिन यहाँ भोकाल सिर्फ अपनी ताक़त पर भरोसा नहीं करता। वो गणपति के प्रति सम्मान और श्रद्धा दिखाता है, और यही देखकर वो भालू शांत हो जाता है। इस घटना से साफ़ समझ आता है कि हर समस्या का हल तलवार या लड़ाई से नहीं होता। कभी-कभी श्रद्धा, सम्मान और सही रवैया भी सबसे मुश्किल बाधाओं को मिटा सकते हैं।
अंतिम परीक्षा (वज्र):
आख़िर में बारी आती है इंद्र देव के वज्र की। इसके लिए भोकाल का सामना होता है नाग-मानवों से। वे एक तपस्वी ऋषि की रक्षा कर रहे होते हैं। भोकाल उनसे लड़ता है, लेकिन इस बात का पूरा ध्यान रखता है कि किसी की जान न जाए और ऋषि की तपस्या भी भंग न हो।
ये उसकी संयम और युद्ध-कौशल दोनों की असली परीक्षा थी। भोकाल का ये व्यवहार देखकर इंद्र देव बेहद प्रसन्न होते हैं और उसे वज्र प्रदान करते हैं।
कला और चित्रांकन
इस कॉमिक्स की सबसे बड़ी ताक़त है इसका आर्टवर्क, जिसे बनाया है कदम स्टूडियो ने। नब्बे के दशक की राज कॉमिक्स की जो खास पहचान थी, वो यहाँ अपने पूरे शिखर पर दिखती है। भोकाल का ताक़तवर शरीर, उसके सुनहरे पंख और चेहरे की भाव-भंगिमाएँ इतनी सजीव लगती हैं कि पढ़ते-पढ़ते लगता है जैसे सब आँखों के सामने घट रहा हो।
एक्शन सीन तो गज़ब के बने हैं—चाहे गरुड़ के साथ हवा में हुआ युद्ध हो, नंदी के साथ क्रूर भिड़ंत हो या फिर राक्षसों से खून-खराबे वाली लड़ाई। हर सीन ज़बरदस्त और रोमांच से भरा है। दिव्यास्त्रों का चित्रण भी लाजवाब है, खासकर सुदर्शन चक्र की तेज़ रफ़्तार और त्रिशूल का दिव्य तेज़ देखते ही बनता है।

रंगों का इस्तेमाल चमकीला और बेहद आकर्षक है, जो कहानी के पौराणिक और फैंटेसी वाले माहौल को और भी गहराई देता है। वहीं पैनलों का लेआउट इतना बढ़िया है कि कहानी की रफ़्तार कभी धीमी नहीं पड़ती, और पाठक को एक पल के लिए भी बोरियत महसूस नहीं होती।
लेखन और संदेश
इस कॉमिक्स की रीढ़ है इसका लेखन, जिसे गढ़ा है संजय गुप्ता ने। उन्होंने एक साधारण-सा उद्देश्य—दिव्यास्त्रों की खोज—को इतनी गहराई और परतों से भर दिया कि कहानी सिर्फ एडवेंचर नहीं रह गई, बल्कि एक प्रेरणादायक गाथा बन गई।
संवाद छोटे हैं, सीधे असर करते हैं और हर किरदार के स्वभाव के हिसाब से बिल्कुल फिट बैठते हैं। लेकिन इस कॉमिक्स का असली खज़ाना है इसका संदेश। ये बताती है कि असली नायक बनने के लिए सिर्फ शारीरिक ताक़त काफी नहीं होती। सच्चा नायक वो है जिसके अंदर बुद्धि, विनम्रता, भक्ति, त्याग, सम्मान और संयम जैसे गुण हों।
भोकाल इन सब परीक्षाओं में पास होकर पाठकों के सामने एक आदर्श बनकर खड़ा होता है।
कुल मिलाकर, ये कॉमिक्स भारतीय संस्कृति और पौराणिक कथाओं का एक शानदार उत्सव है। इसे पढ़कर हमें एहसास होता है कि हमारी पुरानी कहानियों में कितनी गहराई है और उनमें से हम कितने बड़े-बड़े प्रेरक संदेश पा सकते हैं।
निष्कर्ष
“दिव्यास्त्र” सिर्फ एक कॉमिक्स नहीं, बल्कि एक पूरी महागाथा है। ये भोकाल के किरदार को और गहराई देती है और उसे राज कॉमिक्स के सबसे परिपक्व और दमदार नायकों में खड़ा करती है। इसमें जबरदस्त एक्शन है, रोमांचक एडवेंचर है, फैंटेसी का मज़ा है और साथ ही आध्यात्मिकता का भी सुंदर मेल है। कहानी तेज़ी से आगे बढ़ती है, आर्टवर्क बेहतरीन है और इसका संदेश दिल छू लेने वाला है।
ये कॉमिक्स आज भी उतनी ही ताज़गी और असर के साथ पढ़ी जाती है, जितनी अपने दौर में थी। पुराने पाठकों के लिए ये नॉस्टैल्जिया का सफ़र है, जबकि नई पीढ़ी के लिए भारतीय सुपरहीरो की दुनिया से जुड़ने का शानदार मौका।
अगर आप ऐसी कहानी पढ़ना चाहते हैं जो आपको रोमांचक सफ़र पर ले जाए और साथ ही नैतिक मूल्यों की सीख भी दे, तो “दिव्यास्त्र” ज़रूर पढ़ें। ये राज कॉमिक्स के सुनहरे दौर का चमकता हुआ सितारा है, जो हमेशा याद दिलाता है कि क्यों भोकाल आज भी कॉमिक्स प्रेमियों के दिलों में एक खास जगह बनाए हुए है।