राज कॉमिक्स के इतिहास में कुछ कॉमिक्स ऐसी हैं जो न सिर्फ अपनी कहानी बल्कि उसकी प्रस्तुति, ढेर सारे दमदार किरदारों और गहरी प्लॉट-लाइन की वजह से मील का पत्थर बन जाती हैं। ‘मृत्युदंड’ (संख्या-0202) भी ऐसी ही खास कॉमिक्स में से एक है। जॉली सिन्हा द्वारा लिखी और अनुपम सिन्हा द्वारा अपनी पहचान वाला शानदार आर्टवर्क देकर बनाई गई यह कॉमिक्स, नागराज की दुनिया को एक नए और बेहद खतरनाक मोड़ पर ले आती है। यह सिर्फ एक सुपरहीरो की कहानी नहीं है, बल्कि अमरता के श्राप, सत्ता की भूख और प्राचीन तंत्र-विद्या के टकराव की एक बड़ी और रोमांचक गाथा है।
‘मृत्युदंड’ के पन्ने पलटते ही साफ महसूस होता है कि यह एक आम कॉमिक नहीं, बल्कि एक गहरी और कई लेयरों वाली कहानी है जिसे कॉमिक के रूप में पेश किया गया है। कहानी की स्पीड, पुराने और नए दुश्मनों का टकराव, और नागराज पर बढ़ते खतरे इस अंक को राज कॉमिक्स का ‘क्लासिक’ बना देते हैं। लेखक जॉली सिन्हा ने इसमें ‘खजाना’ श्रृंखला के धागों को बहुत सलीके से पिरोया है, वहीं अनुपम सिन्हा की कलाकारी हर एक्शन और हर भावनात्मक पल को जिंदा कर देती है, खासकर खलनायकों—नागपाशा, अस्थिसूप, नगीना और गरलगंट—के प्रभावशाली चित्रण में उनकी कला खूब चमकती है।
कई लेयरों वाला ज़बरदस्त प्लॉट
‘मृत्युदंड’ की कहानी एक नहीं, बल्कि कई समानांतर ट्रैकों पर चलती है, जो अंत में एक धमाकेदार क्लाइमेक्स के लिए सेंट्रल हॉल में आकर मिलती हैं। कहानी की शुरुआत इतनी ड्रामेटिक और चौंकाने वाली है कि पाठक तुरंत इसमें डूब जाता है।
1. नागपाशा का श्राप और गुरुदेव की चालाक योजना:
कहानी की शुरुआत नागराज के पुराने और अमर दुश्मन नागपाशा से होती है, जो आत्महत्या की कोशिश करता है। बार-बार खजाना न मिलने और अमरता के बोझ के चलते उसके लिए मौत ही राहत बन गई है। गुरुदेव उसकी जान बचाते हैं और उसे खजाने का असली राज बताते हैं, जिसमें ‘तीन नागमणियाँ’ हैं—जो भूत, वर्तमान और भविष्य पर राज करने की शक्ति रखती हैं। ये मणियाँ तभी काम करेंगी जब इन्हें ‘त्रिफना’ सर्प की स्वर्ण मूर्ति पर लगाया जाए।
गुरुदेव की असली नज़र खजाने पर नहीं, बल्कि उस पांडुलिपि पर है जिसमें नागराज और उसके वंश का पूरा इतिहास और खजाने का ज्ञान दर्ज है। अपनी ईर्ष्या, लालच और सत्ता की चाह में गुरुदेव नागपाशा को मोहरा बनाकर नागराज को अपनी चाल में फँसाने निकल पड़ता है।

2. अस्थिसूप का आगमन और नागराज की कठिन परीक्षा:
गुरुदेव की योजना के अनुसार, कुछ आतंकवादी एक विमान का अपहरण करते हैं ताकि नागराज को उस जगह की ओर खींचा जा सके जहाँ खजाना प्रदर्शनी में लगा है। नागराज ‘सर्प-सुरंग’ बनाकर विमान में घुसता है और वहीं उसका सामना होता है अस्थिसूप से—एक तंत्र-टेक्नो मानव, जिसकी हड्डियाँ नुकीली सुई जैसी थीं और जो खून चूस सकता था।
अस्थिसूप की ताकत इतनी खतरनाक थी कि वह नागराज को इच्छाधारी कणों में बदलने से भी रोक देता है। यह पूरा हिस्सा तंत्र और टेक्नोलॉजी के घातक मेल को दिखाता है। नागराज अपनी रणनीति बदलता है और अस्थिसूप के ही सींग को हथियार बनाकर उसे हरा देता है, लेकिन इससे पहले कि वह उसके निर्माता का नाम जान सके, गुरुदेव दूर से ही अस्थिसूप को खत्म कर देता है।
3. नाग-द्वीप में हलचल और विसर्पी का उभरना:
दूसरी तरफ, कहानी हमें नाग-द्वीप (नागमणि द्वीप) ले जाती है, जहाँ विसर्पी के पिता मणिराज की चौथी बरसी चल रही है। नागराज की प्रेमिका और मणिराज की बेटी विसर्पी इस समय द्वीप की कार्यकारी शासक है।
यही समय है जब विद्रोह भड़कता है। दंशाक नाम का बेहद ताकतवर विद्रोही नाग राजमहल पर हमला कर देता है। दंशाक की शक्ति गज़ब थी, लेकिन युद्धकला में विसर्पी उसे मात दे देती है। विसर्पी का यह किरदार नारी-शक्ति का मजबूत प्रतीक है और यह भी साबित करता है कि वह नाग-द्वीप की बागडोर संभालने की पूरी काबिलियत रखती है। यह उपकथा नागराज के भविष्य में विसर्पी की बड़ी भूमिका की ओर इशारा करती है।
4. सेंट्रल हॉल का महायुद्ध और नगीना का खतरनाक खेल:
कहानी का क्लाइमेक्स सेंट्रल हॉल में आता है, जहाँ खजाने की प्रदर्शनी लगी है। नागराज और उसकी साथी भारती वहाँ सुरक्षा में हैं, जबकि गुरुदेव और वेदाचार्य पांडुलिपि का अध्ययन कर रहे हैं। इसी जगह सभी किरदार और उनकी शक्तियाँ आमने-सामने आ जाती हैं।

गुरुदेव और वेदाचार्य का टकराव:
गुरुदेव वेदाचार्य पर हमला करता है ताकि पांडुलिपि छीन सके। वेदाचार्य एक जाल से गुरुदेव के प्रतिरूप ‘तरवाल’ को नष्ट कर देता है, लेकिन गुरुदेव अपने आदमी केंटुकी की मदद से भारती और वेदाचार्य को दूर भेजकर पांडुलिपि हाथ में ले लेता है।
नगीना का धमाकेदार प्रवेश:
कहानी में बड़ा ट्विस्ट तब आता है जब कोई तंत्र-शक्ति नागपाशा पर हमला करती है—और यह हमला करने वाली है नगीना। वही नगीना, जो पहले नागराज से दोस्ती कर खजाना हथियाने में नाकाम हुई थी, अब बेहद शक्तिशाली तांत्रिका बनकर लौटी है।
गरलगंट की दहाड़:
नगीना अपने अधीन यक्ष-राक्षस गरलगंट (जिसकी शक्ति देव कालजयी के बराबर बताई गई है) को नागराज के पीछे भेजती है। गरलगंट की ‘तड़ित-जाल’ शक्ति में फँसकर नागराज इच्छाधारी कणों में भी नहीं बदल पाता और लगभग राख बनने की कगार पर पहुँच जाता है।
नागपाशा और कालदूत का दुर्दशा:
नगीना नागपाशा को प्रस्तर चक्र से काटकर उसे हरा देती है और उसे अपना गुलाम बना लेती है। इसके बाद जब वह नाग-द्वीप पहुँचती है, तो वहाँ के शासक कालदूत को भी अपने ‘मंत्रित अंकुश’ से वश में करके गुलाम बना लेती है और खुद को नाग-द्वीप की ‘साम्राज्ञी’ घोषित कर देती है।
पात्रों का विश्लेषण और उनकी भूमिका

नागराज (Nagraj): इस अंक में नागराज एक सुपरहीरो से ज़्यादा एक मोहरे की तरह दिखता है। वह अपनी पारंपरिक युद्ध-कला से अस्थिसूप को तो हरा देता है, लेकिन तंत्र-शक्तियों के सामने उसकी ताकत कुछ धीमी पड़ जाती है। उसका मुकाबला विज्ञान (अस्थिसूप) से लेकर शुद्ध तंत्र-विद्या (गरलगंट, नगीना) तक फैल जाता है, जो दिखाता है कि उसकी चुनौतियाँ लगातार बढ़ रही हैं। अंत में गरलगंट के जाल में फँस जाना उसके लिए किसी ‘मृत्युदंड’ जैसा है—एक ऐसा खतरा जहाँ उसकी सारी शक्तियाँ बेअसर पड़ जाती हैं।
गुरुदेव (Gurudev): गुरुदेव इस कहानी का असली ‘मास्टरमाइंड’ है। वह सिर्फ एक बूढ़ा तांत्रिक नहीं, बल्कि तक्षकराज के वंश से जुड़ी ईर्ष्या और सत्ता की भूख का प्रतीक है। अपने ही प्रतिरूप (तरवाल) को बलि देना, पांडुलिपि के लिए उसकी दीवानगी, और नागपाशा को मोहरे की तरह इस्तेमाल करना—ये सब उसकी चालाक, निर्दयी और लालची फितरत को सामने लाते हैं।
नागपाशा (Nagpasha): नागपाशा इस कहानी का सबसे भावुक किरदार है। अमरता उसके लिए वरदान नहीं, बल्कि सबसे बड़ा श्राप बन गई है। उसकी मौत की इच्छा उसे एक दुख भरे खलनायक में बदल देती है। गुरुदेव के हाथों वह एक बेबस कठपुतली बन जाता है, जिसे बस खजाना चाहिए। अंत में नगीना के द्वारा उसका कटु अपमान और गुलामी यह साबित करता है कि अगर अमरता के साथ उद्देश्य और शक्ति न हो तो वह कितनी बेकार साबित हो सकती है।
नगीना (Nagina): नगीना इस कॉमिक्स की सबसे मजबूत और महत्वपूर्ण पात्र है। उसका आगमन नागराज की पूरी दुनिया के शक्ति-संतुलन को बदल देता है। वह ऐसी विरोधी है जो केवल बल (गरलगंट) पर नहीं, बल्कि तंत्र और दिमाग (कालदूत को मंत्रित अंकुश से वश में करना) दोनों पर भरोसा करती है। उसका मकसद साफ है—नागराज पर काबू पाना और नाग-द्वीप की शासक बनना। नगीना का कॉन्फिडेंस, उसकी निर्दयता और अंत में उसकी जीत (गरलगंट से नागराज को फँसाना और कालदूत को गुलाम बनाना) उसे राज कॉमिक्स की सबसे खतरनाक महिला खलनायकों में शामिल कर देता है।
कुमारी विसर्पी (Kumari Visarpi): विसर्पी का उप-कथानक मुख्य कहानी में एक जरूरी साँस जैसा है। दंशाक को हराना और नाग-द्वीप की सुरक्षा के लिए उसका दृढ़ संकल्प यह बताता है कि नागराज की गैरमौजूदगी में भी उसका वंश सुरक्षित हाथों में है। उसका किरदार आने वाली ‘खजाना’ श्रृंखलाओं के लिए एक मजबूत नींव रखता है।
कला, डिज़ाइन और चित्रांकन (Anupam Sinha’s Artistry)
अनुपम सिन्हा का आर्ट इस विशेषांक की जान है। 90 के दशक की राज कॉमिक्स की पहचान—बड़े, जीवंत और दमदार पैनल—‘मृत्युदंड’ में अपने सर्वोत्तम रूप में दिखते हैं।

एक्शन सीक्वेंस: विमान अपहरण से लेकर अस्थिसूप और गरलगंट के साथ नागराज की लड़ाई—हर एक्शन सीन बहुत स्मूद और तेज़ बहाव वाला है। खासकर अस्थिसूप का कंकाल जैसा शरीर और गरलगंट की विशाल दैत्य रूपी छवि देखने में बेहद जोरदार लगती है।
भावनात्मक गहराई: नागपाशा की आत्महत्या की कोशिश वाले शुरुआती पैनल्स में उसका दर्द और हताशा बिल्कुल साफ दिखती है। विसर्पी के दृढ़ चेहरे के भाव और नगीना की चालाक मुस्कान भी उनके व्यक्तित्व को पूरी तरह दर्शाते हैं।
डिज़ाइन: खलनायकों का डिज़ाइन तो गज़ब है। अस्थिसूप का हड्डियों से बना शरीर और उसकी ज़हरीली सुइयाँ, गरलगंट का बिजली वाला जाल, और नगीना का खूबसूरत लेकिन खतरनाक रूप—सब मिलकर इस कॉमिक्स को विज़ुअली बेहद शानदार बनाते हैं।
आलोचनात्मक दृष्टिकोण और निष्कर्ष
‘मृत्युदंड’ एक कॉमिक्स होकर भी पूरी एक श्रृंखला जैसा अनुभव देती है। लेखक ने एक ही अंक में अमरता का अभिशाप, सत्ता की खींचतान, पुरानी तंत्र-विद्या और एक सुपरहीरो के संघर्ष जैसे बड़े-बड़े विषयों को समेटने की कोशिश की है—और मज़ेदार बात यह है कि वह इसमें काफी हद तक सफल भी रहे हैं।

सकारात्मक पहलू:
गहरी और परतदार कहानी: इसमें कई उप-कथाएँ और कई नए पात्र आते हैं, जिससे कॉमिक्स शुरू से लेकर अंत तक मज़ेदार और रोमांच से भरी रहती है।
नगीना का शानदार विकास: नगीना का एक मामूली चरित्र से उठकर मुख्य खलनायक बनना और कालदूत जैसे ताकतवर किरदार को अपने वश में कर लेना—कहानी में दाँव बहुत ऊँचे कर देता है।
तगड़ा एक्शन: अनुपम सिन्हा के एक्शन पैनल्स हमेशा की तरह धमाकेदार हैं—खासकर पृष्ठ 49 पर अस्थिसूप का अंत और पृष्ठ 58 पर नागराज का जाल में फँसना लंबे समय तक याद रहने वाले दृश्य हैं।
कुछ आलोचनात्मक बिंदु:
बहुत ज्यादा घटनाएँ: एक ही अंक में इतने सारे किरदारों और घटनाओं (आत्महत्या, अपहरण, अस्थिसूप, पांडुलिपि, नाग-द्वीप युद्ध, दंशाक, विसर्पी, सेंट्रल हॉल युद्ध, नगीना, गरलगंट, कालदूत) को जोड़ देने से कहानी कई बार बहुत तेज़ हो जाती है। पाठक को बीच-बीच में रुककर चीज़ों को समझना पड़ता है।
क्लाइमेक्स की कमी: कॉमिक्स का अंत नागराज के लिए एक बुरी स्थिति के साथ होता है—गरलगंट के जाल में फँस जाना। यह साफ दिखाता है कि आगे की कहानी अगले अंक में ही मिलेगी। यह ‘क्लिफहैंगर’ जानबूझकर बनाया गया है, लेकिन इससे यह अंक थोड़ा ‘अधूरा’ महसूस होता है, जैसे अभी जंग बाकी रह गई हो।
निष्कर्ष:
‘मृत्युदंड’ राज कॉमिक्स के ‘स्वर्ण युग’ की बेहतरीन कहानियों में से एक है। यह सिर्फ एक सुपरहीरो की जीत-हार की कथा नहीं, बल्कि अमरता, शक्ति और धोखे जैसे गहरे मानवीय और पौराणिक विषयों को भी छूती है। अनुपम सिन्हा का जबरदस्त चित्रांकन और जॉली सिन्हा की कई परतों वाली कहानी मिलकर इस विशेषांक को हर कॉमिक प्रेमी की लाइब्रेरी का जरूरी हिस्सा बना देते हैं। नागराज के लिए यह ‘मृत्युदंड’ एक भयानक शुरुआत साबित होती है, जो आने वाले अंकों में होने वाले ‘नाग-द्वीप’ वाले बड़े युद्ध की तरफ संकेत देती है। कहानी पाठक को बेचैन और उत्सुक दोनों करती है, ताकि वह अगले भाग का इंतज़ार करे।

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