यह कॉमिक्स पिछली कड़ी “धरणीधर” (संख्या 902) का सीधा अगला भाग है। जहाँ पिछली कॉमिक्स एक जबरदस्त ‘क्लिफहैंगर’ पर खत्म हुई थी, वहीं “विश्वरक्षक” उस रोमांच को और ज्यादा ऊँचाई पर ले जाती है। यह कहानी सिर्फ दो योद्धाओं—भोकाल और धरणीधर—की लड़ाई नहीं है, बल्कि ब्रह्मा, परशुराम और सृष्टि के निर्माण से जुड़े रहस्यों को सामने लाने वाली एक पौराणिक कहानी भी है।
इस कॉमिक्स में पाठकों को सिर्फ दमदार एक्शन ही नहीं मिलता, बल्कि भारतीय पौराणिक कथाओं के कई रोचक संदर्भ भी देखने को मिलते हैं, जो इसे एक असली “एपिक” का एहसास देते हैं।
कहानी की शुरुआत वहीं से होती है जहाँ “धरणीधर” खत्म हुई थी। विकास नगर पर विनाशकारी चट्टानों की बारिश हो रही है। भोकाल पूरी ताकत और समझ लगाकर उन्हें रोकने की कोशिश कर रहा है, लेकिन धरणीधर का गुस्सा बहुत भड़क चुका है। 1998 में प्रकाशित ‘विश्व रक्षक’ सिर्फ एक आम मारधाड़ वाली कॉमिक्स नहीं है; इसमें सत्ता, अहंकार और असली “रक्षा” की परिभाषा के बीच चल रहा संघर्ष दिखाया गया है। संजय गुप्ता की लेखनी और कदम स्टूडियो की शानदार आर्ट इसे भोकाल श्रृंखला की सबसे यादगार कहानियों में से एक बना देती है।
कथानक (Plot Summary)
कहानी की शुरुआत विकासनगर पर आए एक भयंकर संकट से होती है। ऋषिलूम पर्वत से विशाल चट्टानें टूटकर नगर की ओर ऐसे बढ़ रही हैं जैसे कोई बड़ा विनाश आ गया हो। भोकाल अपनी ‘ज्वाला शक्ति’ तलवार से धरती को पाताल तक चीरकर एक गहरा गड्ढा बनाता है, ताकि नगर इस तात्कालिक खतरे से बच जाए।

यह विनाश प्राकृतिक नहीं था, बल्कि इसके पीछे धरणीधर का हाथ था। धरणीधर कोई साधारण खलनायक नहीं है, बल्कि परमपिता ब्रह्मा का पहला पुत्र है। फ्लैशबैक में दिखाया जाता है कि हजारों साल पहले ब्रह्मा ने उसे सृष्टि को चलाने की जिम्मेदारी और एक अद्भुत महल दिया था। धरणीधर ने समाज को चार वर्णों—ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र—में बांटा और विज्ञान की ताकत पर ‘अमृत’ की खोज की।
कहानी का सबसे बड़ा मोड़ तब आता है जब धरणीधर, अपनी भलाई और उत्साह में, पृथ्वी के हर जीव को अमृत पिला देता है ताकि किसी की मृत्यु न हो। लेकिन यह प्रकृति के नियमों के खिलाफ था। नतीजे में पृथ्वी पर संतुलन बिगड़ गया और प्रलय आ गई। ब्रह्मा ने महल को सुरक्षित तो कर दिया, लेकिन उसे पर्वत (ऋषिलूम) के नीचे दबा दिया।

वर्तमान समय में धरणीधर वही पर्वत तोड़कर अपने महल के साथ दोबारा बाहर आता है। इस बार उसका मकसद बदल चुका है। अब वह मानता है कि पिछली गलती (अमृत बाँटना) उसकी नादानी थी। अब वह कठोर शासन और जबरदस्त ताकत के दम पर पूरी पृथ्वी को ‘एक सूत्र’ में बाँधकर सुरक्षित करेगा। वह खुद को ‘विश्व रक्षक’ बताता है और दुनिया के सभी राजाओं को उसकी अधीनता स्वीकार करने या उससे लड़ने की चुनौती देता है।
कहानी आगे तब बढ़ती है जब धरणीधर अपने अभियान पर निकलता है और रास्ते में आने वाले ताकतवर राजाओं—जैसे लोहासिंह (लौह पुरुष) और शैतानसिंह (काली शक्तियों का स्वामी)—को आसानी से हरा देता है। आखिर में उसका सामना विकासनगर के रक्षक, महान योद्धा भोकाल से होता है।
पात्र विश्लेषण (Character Analysis)
महाबली भोकाल: सच्चा रक्षक
इस कॉमिक्स में भोकाल सिर्फ एक योद्धा के रूप में नहीं, बल्कि एक समझदार नेता और विचारक के रूप में नज़र आता है। जब धरणीधर दावा करता है कि वह पूरी दुनिया को एक ही शासन और नियमों के तहत लाकर ‘विश्व की रक्षा’ करेगा, तो भोकाल उससे टकराता है। भोकाल का तर्क है कि दुनिया की खूबसूरती उसकी विविधता में है। वह कहता है कि, “आज की दुनिया में अलग-अलग जगहों के लोग अलग परिवेश, भाषा और संस्कृति के साथ रहते हैं। सभी की जरूरतें और इच्छाएं एक इंसान समझ ही नहीं सकता।”
यहाँ भोकाल लोकतंत्र और विकेंद्रीकरण (decentralization) की सोच का समर्थन करता है। वह धरणीधर को समझाता है कि रक्षक बनने का मतलब यह नहीं कि आप दूसरों की आज़ादी छीन लें।

धरणीधर: एक त्रासद प्रतिनायक (Tragic Antagonist)
धरणीधर इस कहानी का सबसे दिलचस्प किरदार है। वह आम खलनायकों जैसा नहीं है। वह ब्रह्मा का पुत्र है और उसके इरादे शुरू में सही थे। वह चाहता था कि कोई मरे नहीं, इसलिए उसने अमृत दिया। बाद में जब वह वापस लौटा, तो उसका मकसद ‘विश्व शांति’ था, लेकिन उसका तरीका तानाशाही वाला था।
उसके पास परशुराम का फरसा है, जो उसे लगभग अजेय बना देता है। लेकिन शक्ति और अहंकार उसे अंधा कर देते हैं। वह यह समझ ही नहीं पाता कि ‘रक्षा’ और ‘गुलामी’ में जमीन-आसमान का अंतर है। जब वह लोहासिंह को हराता है, तो वह क्रूरता दिखाने के लिए नहीं बल्कि अपनी ताकत साबित करने के लिए करता है।
अंत में जब ब्रह्मा उसे उसकी गलती समझाते हैं, तो वह बिना गुस्से और अहंकार के अपनी हार मान लेता है और भोकाल को “सच्चा विश्व रक्षक” कहकर सम्मान देता है। यही बात उसे एक ऐसा खलनायक बनाती है जिसका हृदय बदल सकता था—एक त्रासद, लेकिन गहराई वाला प्रतिनायक।
अन्य राजा (लोहासिंह और शैतानसिंह)
लेखक संजय गुप्ता ने धरणीधर की ताकत दिखाने के लिए इन दो किरदारों का बहुत अच्छा इस्तेमाल किया है।
राजा लोहासिंह: जिसके पास अपने शरीर को लोहे में बदलने की शक्ति थी और जिसने 161 राज्यों पर जीत हासिल की थी। लेकिन धरणीधर उसे एक ही वार में हरा देता है। यह सीन साफ बताता है कि धरणीधर सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें करने वाला नहीं है—वह असल में बेहद ताकतवर है और शारीरिक शक्ति में उसका कोई मुकाबला नहीं।
राजा शैतानसिंह: यह तंत्र-मंत्र और काली शक्तियों का मालिक है। वह शेरों और साँपों की मदद से हमला करता है, लेकिन धरणीधर (जिसने अमृत पिया है) उस जहरीले साँप को ही निगल जाता है। यह दृश्य एक साथ डरावना और असरदार है, जो दिखाता है कि धरणीधर जादू और मायावी शक्तियों से भी ऊपर है।
कला और चित्रांकन (Art and Visuals)

कदम स्टूडियो की आर्ट 90 के दशक की राज कॉमिक्स की पहचान रही है। ‘विश्व रक्षक’ में भी आर्टवर्क का स्तर बेहद शानदार है।
एक्शन दृश्य: जब भोकाल और धरणीधर आमने-सामने आते हैं, तो पैनलों में ऐसी ऊर्जा दिखती है मानो पूरा पृष्ठ जीवंत हो उठा हो। भोकाल की तलवार से निकलती ‘ज्वाला शक्ति’ और धरणीधर के फरसे की टकराहट से उठते विस्फोट को बहुत बारीकी से दिखाया गया है।
पात्रों की बनावट: धरणीधर को एक विशाल, गुलाबी त्वचा वाले देवतुल्य पुरुष के रूप में दिखाया गया है, जो आम इंसानों से बहुत बड़ा है। यह उसका रुतबा और शक्ति बिना बोले ही दिखा देता है। लोहासिंह का लोहे में बदलता शरीर और शैतानसिंह की काली शक्तियों को दिखाने में रंगों का बेहतरीन इस्तेमाल किया गया है।
रंग संयोजन: कॉमिक्स में लाल, पीला, हरा जैसे चमकीले रंगों का इस्तेमाल किया गया है, जो उस समय की प्रिंटिंग टेक्निक के हिसाब से बहुत आकर्षक थे। प्रलय वाले दृश्यों में ज्वालामुखी और उफनते समुद्र को इस तरह दिखाया गया है कि एक असली खतरे जैसा एहसास होता है।
लेखन और संवाद (Writing and Dialogue)
संजय गुप्ता का लेखन हमेशा व्यापक और भव्य रहा है। ‘विश्व रक्षक’ में भी संवाद गंभीर और भारी असर छोड़ने वाले हैं।
दार्शनिक संवाद: भोकाल और धरणीधर की पेज नंबर 21 पर हुई बहस इस कॉमिक्स की जान है। जहाँ धरणीधर कहता है, “हम पूरे विश्व को फिर से एक करना चाहते हैं… ना कोई राजा था, ना कोई प्रजा”, वहीं भोकाल का जवाब उसे आधुनिक राजनीति की सीख देता है।
पौराणिक संदर्भ: कहानी को ब्रह्मा और परशुराम से जोड़कर लेखक ने इसे पौराणिक भव्यता दी है। यह सिर्फ एक काल्पनिक दुनिया की लड़ाई नहीं लगती, बल्कि भारतीय माइथोलॉजी का एक आगे बढ़ा हुआ हिस्सा महसूस होती है।
शीर्षक का महत्व: शीर्षक ‘विश्व रक्षक’ अपने आप में एक विडंबना है। धरणीधर खुद को विश्व रक्षक मानता है, लेकिन उसके काम विनाश ला सकते हैं। आखिर में ब्रह्मा बताते हैं कि सच्चा विश्व रक्षक वही है जो बुद्धि और समझ से काम ले, सिर्फ ताकत से नहीं।
विचारधारा और संदेश (Themes and Message)

यह कॉमिक्स कई बड़े और महत्वपूर्ण मुद्दों को छूती है:
शक्ति बनाम विवेक: धरणीधर के पास अमृत, परशुराम का फरसा और ब्रह्मा का आशीर्वाद—सब कुछ है। लेकिन विवेक की कमी उसे गलत रास्ते पर ले जाती है। ब्रह्मा कहते हैं, “आज जो प्रलय आने वाली थी, वह तुम्हारे घमंड और अविवेक के कारण आती।” यह बताता है कि बिना समझदारी के शक्ति नुकसान ही करती है।
एकीकरण बनाम बहुलवाद (Unification vs. Pluralism): धरणीधर चाहता है कि पूरी दुनिया एक जैसी हो जाए, जो तानाशाही सोच को दिखाता है। भोकाल अलग-अलग संस्कृतियों, राजाओं और आज़ादी का समर्थन करता है—जो विविधता और स्वतंत्रता की असली पहचान है।
अति–सुरक्षा (Over-protection): धरणीधर की नीयत गलत नहीं थी—वह सुरक्षा चाहता था। लेकिन उसकी सुरक्षा ऐसी थी जो लोगों को घुटन दे दे। यह बताता है कि कभी-कभी ज़्यादा कंट्रोल भी विनाश का कारण बन जाता है।
निष्कर्ष और फैसला (Conclusion and Verdict)

‘विश्व रक्षक’ राज कॉमिक्स के इतिहास में एक खास जगह रखने वाली कॉमिक्स है। यह उन कम कॉमिक्स में से है जहाँ विलेन के लिए भी आपके मन में कुछ हद तक सहानुभूति पैदा होती है। कहानी की रफ्तार शुरुआत से ही बहुत तेज है—कभी चट्टानें गिरती हैं, फिर फ्लैशबैक आते हैं, फिर राजाओं के साथ लड़ाइयाँ, और अंत में बड़ा युद्ध—कहीं भी कहानी धीमी या बोरिंग नहीं लगती।
भोकाल के फैन्स के लिए यह एक Must Read कॉमिक्स है, क्योंकि इसमें भोकाल सिर्फ एक तलवार चलाने वाला योद्धा नहीं दिखता, बल्कि एक समझदार और जिम्मेदार संरक्षक के रूप में पूरी तरह उभरकर सामने आता है।
सकारात्मक पक्ष:
कहानी धरणीधर के रूप में एक बेहद शक्तिशाली और भावनात्मक रूप से जुड़ने वाला प्रतिनायक दिखाती है, जिसकी जटिलता पाठक को पूरी तरह बांधे रखती है। संवाद शानदार हैं, और कहानी में गहराई भी है। इसके अलावा कदम स्टूडियो की एक्शन कला और विजुअल्स कहानी की भव्यता को और बढ़ाते हैं। साथ ही, पौराणिक तत्वों का सुंदर मिलाप इसे एक मजबूत और आकर्षक कहानी का आधार देता है।
नकारात्मक पक्ष:
अंत कुछ जल्दी-जल्दी सा लगता है। ब्रह्मा जी का अचानक आकर युद्ध को रोक देना थोड़ा आसान हल (Deus Ex Machina) जैसा महसूस होता है। अगर भोकाल अपनी रणनीति से धरणीधर को हराता, तो यह अंत और भी ज्यादा संतोषजनक होता।
कुल मिलाकर:
अगर आप 90 के दशक की भारतीय कॉमिक्स को समझना चाहते हैं या भोकाल के चरित्र की गहराई देखना चाहते हैं, तो ‘विश्व रक्षक’ एक बेहतरीन उदाहरण है। यह सिर्फ मनोरंजन नहीं देती, बल्कि सोचने पर भी मजबूर करती है।
रेटिंग: 4.5 / 5
यह कॉमिक्स साफ बताती है कि सच्चा ‘विश्व रक्षक’ वह होता है जो अपनी शक्ति का इस्तेमाल दूसरों को दबाने में नहीं, बल्कि उनकी स्वतंत्रता की रक्षा करने में करता है।
