90 का दशक भारतीय कॉमिक्स की दुनिया का सुनहरा दौर था, और उस दौर में तुलसी कॉमिक्स के ‘अंगारा’ की जगह सच में खास थी। अंगारा, जिसे “समस्त वन्य प्राणियों का रक्षक” कहा जाता है, एक ऐसा सुपरहीरो है जिसे गोरिल्ले के शरीर, हाथी की ताकत, शेर के दिल, लोमड़ी की समझ और गिद्ध की तेज नजर से बनाया गया है। आम तौर पर अंगारा की कहानियाँ जंगलों, शिकारियों और आतंकियों के आसपास ही घूमती हैं, लेकिन “अंगारा गायब” एक ऐसी कहानी है जो आम रास्ते से बिल्कुल अलग जाती है।
यह कॉमिक्स अंगारा को उसके अपने माहौल (अंगारा द्वीप और जंगल) से निकालकर एक ऐसी जगह ले जाती है जहाँ रहना लगभग नामुमकिन है—दक्षिण ध्रुव यानी अंटार्कटिका। लेखक परशुराम शर्मा और चित्रकार प्रदीप साठे की जोड़ी ने इस कहानी में फैंटेसी, सस्पेंस और साइंस फिक्शन को बहुत अच्छे तरीके से मिलाया है। यह कहानी सिर्फ अंगारा की ताकत की ही परीक्षा नहीं लेती, बल्कि उसके अस्तित्व पर भी सवाल खड़े कर देती है।
चुनौती, चालाकी और एक दूसरी दुनिया का दरवाजा
कहानी की शुरुआत अंगारा द्वीप की राज्यसभा से होती है। अंगारा अपने मंत्रियों यानी अलग-अलग जानवरों के साथ बैठा है और थोड़ा घमंड भरे आत्मविश्वास के साथ पूछता है कि क्या इस धरती पर कोई ऐसी जगह है जहाँ वह नहीं पहुँच सकता। तभी एक अदृश्य आवाज उसे चुनौती देती है। यह आवाज बताती है कि “दक्षिण ध्रुव” एक ऐसी जगह है जहाँ अंगारा का जोर नहीं चलता।

यह आवाज किसी और की नहीं बल्कि ‘बौना चार्ली’ की होती है। चार्ली, अंगारा का पुराना दुश्मन है और जादूगर डुम्बा का साथी रहा है, जिसे अंगारा ने मार दिया था। चार्ली एक मशीनी कंप्यूटर-मानव है जो सूरज से ऊर्जा लेता है। अपने साथी की मौत का बदला लेने के लिए वह अंगारा को एक खतरनाक जाल में फँसाना चाहता है।
चुनौती को स्वीकार करते हुए अंगारा अपने विशाल गरुड़ मित्र ‘जटायु’ को बुलाता है। जटायु और उसका जासूस पक्षी दोस्त ‘चोंचू’ अंगारा को लेकर दक्षिण ध्रुव की बर्फ से ढकी वादियों की ओर उड़ जाते हैं। यहाँ प्रदीप साठे ने अंटार्कटिका की वीरानी और सफेद दुनिया को बहुत शानदार तरीके से दिखाया है।
वहाँ पहुँचने पर अंगारा को ‘अल्बाट्रास’ पक्षियों से पता चलता है कि उस इलाके में एक डरावना ‘हिममानव’ (Yeti) रहता है, जिसका सब पर आतंक है। यह हिममानव न पूरी तरह जानवर है और न ही पूरी तरह इंसान।
कहानी का सबसे रोमांचक हिस्सा तब आता है जब अंगारा उस रहस्यमय हिममानव का पीछा करता है। हिममानव की पूंछ बहुत लंबी और बेहद ताकतवर है। वह अंगारा को अपनी पूंछ में कसकर जकड़ लेता है। यहाँ पाठकों को बड़ा झटका लगता है, क्योंकि हाथी जैसी ताकत रखने वाला अंगारा भी इस हिममानव के सामने बेबस नजर आता है। हिममानव अंगारा को खिलौने की तरह घुमाता है और उसे अपनी गुफा में घसीट ले जाता है।
गुफा के अंदर का नजारा बाहर की दुनिया से बिल्कुल अलग है। अंदर हाई-टेक धातु की दीवारें बनी हुई हैं। वहाँ एक अजीब सी कुर्सी रखी है। जैसे ही अंगारा उस कुर्सी पर बैठता है, ऊपर से एक तेज रोशनी की किरण (Beam) गिरती है और अंगारा अचानक गायब हो जाता है। इसके कुछ ही देर बाद छिपा हुआ बौना चार्ली सामने आता है और वह भी उसी कुर्सी पर बैठते ही गायब हो जाता है। यह सीन कहानी को सुपरहीरो की दुनिया से निकालकर सीधा साइंस फिक्शन में ले जाता है।

अंगारा के गायब होने के बाद कहानी का सारा बोझ जटायु के कंधों पर आ जाता है। चोंचू से पूरी सच्चाई जानने के बाद जटायु समझ जाता है कि उसका स्वामी किसी दूसरी दुनिया या किसी और आयाम में भेज दिया गया है। जटायु तय करता है कि इस रहस्य को सुलझाने के लिए उसे उस हिममानव को पकड़ना ही होगा। अपनी पूरी ताकत लगाकर जटायु हिममानव को उठाता है और हजारों मील दूर भारत में डॉक्टर कुणाल (अंगारा के निर्माता) की प्रयोगशाला में ले आता है।
अंत और रहस्य:
कहानी के आखिर में डॉक्टर कुणाल हिममानव को बेहोश करके एक पिंजरे में बंद कर देते हैं। जाँच करने पर पता चलता है कि यह हिममानव धरती का प्राणी ही नहीं है। उसकी शारीरिक बनावट एलियन जैसी है। कॉमिक्स एक बड़े क्लिफहैंगर पर खत्म होती है—अंगारा आखिर गया कहाँ? क्या वह अंतरिक्ष में है? इन सवालों का जवाब अगली कॉमिक्स “अंगारा अंतरिक्ष में” के लिए छोड़ दिया जाता है।
पात्र विश्लेषण (Character Analysis)
अंगारा:
इस कॉमिक्स में अंगारा का एक अलग ही रूप देखने को मिलता है। शुरुआत में वह थोड़ा घमंडी नजर आता है और उसे लगता है कि पूरी धरती पर उसका ही दबदबा है। लेकिन जैसे ही वह दक्षिण ध्रुव पहुँचता है, उसे अपनी सीमाओं का एहसास होने लगता है। हिममानव के साथ हुई लड़ाई में अंगारा शारीरिक तौर पर कमजोर पड़ता है, जिससे साफ हो जाता है कि वह पूरी तरह अजेय नहीं है। यही बात अंगारा को एक ‘रिलेटेबल’ हीरो बनाती है, जो सिर्फ जीतता ही नहीं, बल्कि हार भी सकता है।

जटायु:
अगर इस कॉमिक्स का असली हीरो कोई है, तो वह जटायु ही है। अंगारा के गायब होने के बाद जटायु जिस समझदारी और ताकत का परिचय देता है, वह सच में तारीफ के काबिल है। एक विशाल हिममानव को दक्षिण ध्रुव से भारत तक उड़ाकर लाना उसकी जबरदस्त शक्ति को दिखाता है। अंगारा के प्रति उसकी वफादारी ही पूरी अंगारा सीरीज की असली ताकत और रीढ़ है।
बौना चार्ली:
चार्ली एक क्लासिक विलेन है—कद में छोटा, दिमाग से चालाक और तकनीक का माहिर। वह अंगारा से आमने-सामने की लड़ाई नहीं करता, बल्कि उसे अपनी चालों में फँसाता है। उसका किरदार यह साफ दिखाता है कि सिर्फ ताकत ही नहीं, बल्कि दिमागी साजिश भी उतनी ही खतरनाक हो सकती है।
हिममानव (The Yeti):
चित्रकार ने हिममानव को बेहद डरावना और अजीब रूप दिया है। उसकी एक ही आँख (Cyclops जैसी), सफेद फर और लंबी पूंछ उसे और भी भयावह बनाती है। पूरी कॉमिक्स में वह रहस्यमय बना रहता है। वह न बोलता है और न ही कोई भावना दिखाता है, बल्कि एक मशीन की तरह काम करता है, जो आखिर में सच साबित होता है कि वह किसी दूसरे ग्रह का प्राणी है।
डॉक्टर कुणाल:
डॉ. कुणाल की एंट्री कहानी के आखिर में होती है, लेकिन उनकी भूमिका काफी अहम है। वह विज्ञान का प्रतीक हैं। जहाँ जानवर अपनी ताकत पर निर्भर करते हैं, वहीं डॉ. कुणाल तर्क और वैज्ञानिक सोच से समस्या की जड़ तक पहुँचते हैं।
चित्रांकन और कला पक्ष (Artwork & Visuals)
प्रदीप साठे जी का आर्टवर्क इस कॉमिक्स की असली जान है। वातावरण का चित्रण बहुत ही जीवंत है। दक्षिण ध्रुव के बर्फ से ढके पहाड़, सुनसान मैदान और ठंडे पानी के दृश्य बेहद प्रभावशाली लगते हैं। रंगों का चुनाव—सफेद, नीला और हल्का आसमानी—पूरी कहानी में ठंड का अहसास बनाए रखता है। एक्शन सीन काफी डायनैमिक हैं; खासकर अंगारा और हिममानव की लड़ाई वाले पैनल्स बहुत दमदार हैं, जैसे वह सीन जहाँ हिममानव अपनी पूंछ से अंगारा को लपेटकर हवा में घुमाता है।
पात्रों की बनावट में साठे जी की पकड़ साफ नजर आती है। जानवरों के चेहरे के भाव बहुत अच्छे से उभरकर आते हैं—चाहे जटायु का गुस्सा हो, चोंचू की घबराहट या फिर अंगारा का हैरान चेहरा। इसके अलावा, तकनीकी दृश्य भी काफी असरदार हैं। गुफा के अंदर बनी हाई-टेक लैब और टेलीपोर्टेशन वाली कुर्सी उस समय के हिसाब से काफी आधुनिक और रहस्यमयी लगती है।
कथानक की समीक्षा और विश्लेषण (Critical Analysis)

सकारात्मक पक्ष (Pros):
लेखक ने कहानी को बहुत सधे हुए तरीके से आगे बढ़ाया है। विषय में बदलाव इसे ताज़गी देता है, जहाँ अंगारा को जंगलों से निकालकर बर्फीले दक्षिण ध्रुव में ले जाया जाता है। इससे कहानी में नयापन आता है। अंत तक सस्पेंस बना रहता है—“अंगारा कहाँ गया?”, “हिममानव असल में कौन है?” और “उस कुर्सी का रहस्य क्या है?” जैसे सवाल पाठक को लगातार पढ़ते रहने पर मजबूर करते हैं। यह कहानी सिर्फ अंगारा तक सीमित नहीं है, बल्कि टीम वर्क पर आधारित है, जहाँ चोंचू की जासूसी, जटायु की ताकत और डॉ. कुणाल का विज्ञान बराबर अहम भूमिका निभाते हैं। यह कॉमिक्स फैंटेसी से शुरू होकर साइंस फिक्शन पर खत्म होती है, जो उस दौर के बच्चों के लिए बेहद रोमांचक अनुभव रहा होगा।
नकारात्मक पक्ष/तार्किक खामियां (Cons/Logic Gaps):
हालाँकि कॉमिक्स काफी मनोरंजक है, फिर भी इसमें कुछ तार्किक कमियाँ नजर आती हैं। भौगोलिक नजरिए से देखें तो दक्षिण ध्रुव (Antarctica) से भारत (पुणे) तक हजारों किलोमीटर की दूरी तय करते हुए जटायु का एक भारी हिममानव को बिना रुके उठा लाना कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया लगता है और वैज्ञानिक रूप से संभव नहीं लगता। इसके अलावा, कहानी को आगे बढ़ाने के लिए एक तरह की ‘प्लॉट कन्वीनिएंस’ का सहारा लिया गया है, जहाँ अंगारा जैसा समझदार और सतर्क हीरो एक अनजान गुफा में रखी अनजान कुर्सी पर बिना सोचे-समझे बैठ जाता है, जो उसके स्वभाव से मेल नहीं खाता। अंत में, बौना चार्ली की योजना भी पूरी तरह साफ नहीं लगती; अगर उसका मकसद सिर्फ अंगारा को फँसाना था, तो उसका खुद भी गायब हो जाना थोड़ा अजीब लगता है, हालाँकि इसे उसके एलियन आकाओं पर जरूरत से ज्यादा भरोसे के रूप में भी देखा जा सकता है
लेखन शैली और संवाद (Writing Style)
परशुराम शर्मा की लेखन शैली बेहद सीधी, साफ और असरदार है। उनके संवाद छोटे होते हैं, लेकिन बात सीधी दिल तक पहुँचती है।
उदाहरण: “मैं अंगारा देश की राज्यसभा से पूछता हूँ—पृथ्वी पर ऐसी कौन सी जगह है, जो मेरी दृष्टि से ओझल है?” यह संवाद अंगारा के आत्मविश्वास और उसके थोड़े से घमंड को साफ तौर पर दिखा देता है।

चार्ली के संवादों में एक खास तरह की खलनायकी चालाकी और दिमागी खेल नजर आता है।
नैरेशन बहुत टाइट रखा गया है, जिसकी वजह से कहानी की रफ्तार कहीं भी धीमी नहीं पड़ती।
निष्कर्ष (Conclusion)
“अंगारा गायब” एक बेहद मजेदार और रोमांचक कॉमिक्स है। यह उन सभी पाठकों के लिए किसी ट्रीट से कम नहीं है, जो अंगारा सीरीज के फैन रहे हैं। यह कॉमिक्स एक बड़े स्टोरी आर्क की शुरुआत करती है, जो आगे चलकर अंगारा को सीधे ‘एलियन प्लैनेट’ तक ले जाती है।
इस कॉमिक्स की सबसे बड़ी ताकत यह है कि यह पाठक के मन में जबरदस्त जिज्ञासा पैदा करती है। आखिरी पन्ना पढ़ते ही मन करता है कि तुरंत अगली कॉमिक्स “अंगारा अंतरिक्ष में” उठा ली जाए। 90 के दशक के बच्चों के लिए यह किसी ‘ब्लॉकबस्टर मूवी’ जैसा अनुभव रहा होगा।
रेटिंग:
कहानी: 4/5
चित्र: 4.5/5
मनोरंजन: 5/5
अंतिम शब्द:
अगर आप भारतीय कॉमिक्स के इतिहास को समझना चाहते हैं या अपने बचपन की यादों को ताज़ा करना चाहते हैं, तो “अंगारा गायब” ज़रूर पढ़ें। यह कॉमिक्स साबित करती है कि बिना ढेर सारे गैजेट्स या चमक-दमक वाले सुपरपावर के भी, सिर्फ जानवरों की ताकत से बना एक हीरो ‘स्पेस एडवेंचर’ का हिस्सा बन सकता है। यह तुलसी कॉमिक्स की रचनात्मक सोच का एक शानदार उदाहरण है।

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