90 का दशक भारतीय कॉमिक्स का ऐसा दौर था, जब कल्पना की उड़ान को सच में कोई नहीं रोक सकता था। तुलसी कॉमिक्स का सुपरहीरो ‘अंगारा’ अपनी अलग और अनोखी बनावट की वजह से खास पहचान रखता था—गोरिल्ले जैसा शरीर, शेर जैसा दिल, हाथी जैसी ताकत और लोमड़ी जैसी चालाकी। आम तौर पर जंगलों में या अपराधियों से लड़ने वाला यह हीरो इस बार एक बहुत बड़े अंतरग्रहीय युद्ध (Interplanetary War) में फँस जाता है।
“अंगारा की वापसी” उस त्रयी (Trilogy) का आख़िरी हिस्सा है, जिसकी शुरुआत “अंगारा गायब” से हुई थी और जो “अंगारा अंतरिक्ष में” तक पहुँची। इस कहानी में अंगारा एक एलियन ग्रह ‘लूरा’ पर फँसा हुआ है और उसे धरती पर लौटने के लिए एक आख़िरी और निर्णायक लड़ाई लड़नी पड़ती है। परशुराम शर्मा की मज़बूत कहानी और प्रदीप साठे की शानदार ड्रॉइंग इस कॉमिक को यादगार बना देती है।
मुक्ति और जीत की कहानी
कहानी ठीक वहीं से शुरू होती है, जहाँ पिछला अंक खत्म हुआ था। अंगारा को चालाकी और धोखे से लूरा ग्रह पर लाया गया था, ताकि वह वहाँ के लोगों को मूरा ग्रह के ज़ालिम शासक ‘किंग बगोला’ की सेना से बचा सके। लूरा का राजा ‘किंग लूरा’ अंगारा की मदद तो चाहता है, लेकिन उसने यह सब उसकी मर्ज़ी के बिना किया होता है।

कॉमिक के शुरुआती पन्नों में दिखाया जाता है कि अंगारा लूरा की एक बस्ती ‘पगान’ को मूरा के सैनिकों, यानी बगोलों (पक्षी-मानवों), से आज़ाद करा चुका है। लेकिन जीत के बाद भी अंगारा खुश नहीं होता। वह किंग लूरा से साफ शब्दों में कह देता है कि वह किसी का गुलाम नहीं है। वह इंसाफ के लिए लड़ता है, किसी के हुक्म पर नहीं। किंग लूरा अपनी मजबूरी बताता है कि जब तक मूरा की पूरी सेना खत्म नहीं हो जाती और लूरा ग्रह फिर से रहने लायक नहीं बन जाता, तब तक वह अंगारा को पृथ्वी पर वापस नहीं भेज सकता। यह बात अंगारा को एक बड़ी उलझन में डाल देती है—अपनी आज़ादी पाने के लिए उसे एक ऐसा युद्ध खत्म करना होगा, जो असल में उसका नहीं है।
लूरा ग्रह पर मूरा के चार बड़े अड्डे होते हैं—पगान, छगान, लगान और कमान। पगान जीतने के बाद अंगारा का अगला लक्ष्य बाकी तीन अड्डों को खत्म करना होता है।
अंगारा को पता चलता है कि मूरा के सैनिक, यानी बगोला, आग से बहुत डरते हैं क्योंकि उनकी चमड़ी जल्दी जल जाती है। यहाँ अंगारा अपनी लोमड़ी जैसी अक्ल का इस्तेमाल करता है और आग को अपना सबसे बड़ा हथियार बना लेता है। वह पगान की जेल में बंद बगोला सैनिकों को आग का डर दिखाकर अपने काबू में कर लेता है। यह सीन अंगारा की चालाकी और समझदारी को अच्छे से दिखाता है।
इसके बाद अंगारा दुश्मनों से छीने गए ‘शकूरा’ विमान में बैठकर दूसरे अड्डे ‘छगान’ की तरफ बढ़ता है। यहीं कहानी में विलेन बौना चार्ली की अहम एंट्री होती है। चार्ली, जो शुरू से ही अंगारा की मुश्किलों की वजह रहा है, यहाँ भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आता। वह विमान में तो अंगारा के साथ जाता है, लेकिन मौका मिलते ही छगान के कंट्रोल रूम में घुसकर दुश्मनों से मिल जाता है।
चार्ली की गद्दारी की वजह से विमान हवा में ही खराब हो जाता है और अंगारा को छगान के सैनिकों के ज़ोरदार हमले झेलने पड़ते हैं। फिर भी, गैंडे जैसी मजबूत चमड़ी वाले अंगारा पर आग और लेज़र का ज़्यादा असर नहीं होता और वह छगान के अड्डे को भी तबाह कर देता है।

विमान गिरने के बाद अंगारा एक झील में जा गिरता है। यहीं कहानी एक मज़ेदार मोड़ लेती है। अंगारा एक खास पौधे का रस अपने शरीर पर लगाता है, जिससे वह अदृश्य हो जाता है। वह चार्ली को डराने के लिए खुद को “अंगारा का भूत” बताता है। चार्ली दिमाग से भले ही चालाक हो, लेकिन दिल से बहुत डरपोक होता है। वह बुरी तरह घबरा जाता है। अंगारा इस डर का फायदा उठाकर उसे अपने साथ अगले मिशन पर चलने को मजबूर कर देता है। यह हिस्सा पढ़ते समय पाठकों को खूब मज़ा आता है और अंगारा की चालाकी साफ दिखती है।
तीसरे अड्डे ‘लगान’ पर अंगारा का सामना वहाँ के पहरेदार कुत्तों से होता है। अंगारा के पास एक ऐसा यंत्र होता है, जिससे वह जानवरों की भाषा समझ और बोल सकता है। शुरुआत में कुत्ते उस पर हमला करते हैं, लेकिन अंगारा अपनी ताकत से उनके सरदार को हरा देता है। इसके बाद वह उन्हें समझाता है कि वे गलत लोगों, यानी मूरा वासियों, का साथ दे रहे हैं। अंगारा जानवरों को दुश्मन नहीं, बल्कि भटके हुए दोस्त मानता है। उसकी यही सोच कुत्तों का दिल जीत लेती है और लगान का अड्डा भी जीत लिया जाता है।
आख़िरी और सबसे मज़बूत अड्डा ‘कमान’ होता है। यहाँ अंगारा, चार्ली और कुत्तों की सेना मिलकर ज़ोरदार हमला करती है। चार्ली, जो अब अंगारा के भूत के डर से उसकी हर बात मान रहा होता है, अड्डे में आग लगा देता है। अंगारा अपनी ज़बरदस्त ताकत से मूरा के सैनिकों को उखाड़ फेंकता है। आखिरकार मूरा की सेना हार मान लेती है और लूरा ग्रह पूरी तरह आज़ाद हो जाता है।

युद्ध जीतने के बाद किंग लूरा अपना वादा निभाता है और अंगारा को पृथ्वी पर भेजने की तैयारी करता है। अंगारा एक सच्चे हीरो की तरह विदा लेता है। लेकिन जाने से पहले वह इंसाफ का एक और फैसला करता है। वह किंग लूरा से कहता है कि बौना चार्ली को हमेशा के लिए लूरा ग्रह पर ही कैद रखा जाए और उसे कभी पृथ्वी पर न भेजा जाए। चार्ली के लिए यह सबसे बड़ी सज़ा होती है—एक एलियन ग्रह पर अकेले रहना।
अंत में, अंगारा ‘मैटर ट्रांसमिशन’ के ज़रिए सीधे पृथ्वी के दक्षिण ध्रुव पर पहुँच जाता है। वहाँ उसकी पुरानी मित्र व्हेल रानी और जटायु पहले से उसका इंतज़ार कर रहे होते हैं। तीनों की मुलाकात भावुक भी है और सुकून देने वाली भी। इसके बाद सब मिलकर खुशी-खुशी वापस अंगारा द्वीप लौट जाते हैं।
पात्र समीक्षा (Character Analysis)
अंगारा:
इस कॉमिक्स में अंगारा सिर्फ एक ताकतवर योद्धा नहीं रह जाता, बल्कि एक समझदार नेता और चालाक रणनीतिकार के रूप में सामने आता है। उसकी लीडरशिप तब साफ दिखती है, जब वह अकेले ही पूरी दुश्मन सेना का सामना करता है और उनके ही साधनों—जैसे विमान और हथियार—को अपने काम में ले लेता है। उसकी समझदारी का सबसे मजेदार उदाहरण तब देखने को मिलता है, जब वह चार्ली को डराने के लिए भूत बनने का नाटक करता है। यह उसकी लोमड़ी जैसी तेज बुद्धि को दिखाता है। वहीं उसकी दयालुता भी उसके असली स्वभाव के मुताबिक है। वह जानवरों, खासकर कुत्तों को मारने के बजाय उन्हें दोस्त बना लेता है, जिससे वह सिर्फ हीरो नहीं बल्कि एक सच्चा वन्य रक्षक भी साबित होता है।

बौना चार्ली:
चार्ली इस कहानी का सबसे दिलचस्प और उलझा हुआ कैरेक्टर है। वह पूरी तरह अच्छा नहीं है, लेकिन हालात ऐसे बन जाते हैं कि उसे अंगारा का साथ देना पड़ता है। उसका डरपोक स्वभाव और हर वक्त अपने फायदे के बारे में सोचना कहानी में हल्का हास्य भी लाता है और साथ ही सस्पेंस भी बनाए रखता है। आखिर में उसे जो सज़ा मिलती है, वह पाठकों को यह एहसास दिलाती है कि देर से ही सही, लेकिन इंसाफ जरूर हुआ है।
किंग लूरा:
किंग लूरा एक मजबूर राजा है। उसने अंगारा का अपहरण ज़रूर करवाया, लेकिन उसका इरादा गलत नहीं था। वह सिर्फ अपनी प्रजा को बचाना चाहता था। कहानी के अंत में वह एक सम्मानजनक शासक के रूप में सामने आता है, जो अपना वादा निभाता है और अंगारा को पूरे मान-सम्मान के साथ विदा करता है।
मूरा सैनिक (बगोला):
प्रदीप साठे ने मूरा के इन एलियन सैनिकों को बेहद अलग और यादगार रूप दिया है—पक्षी जैसा सिर और इंसान जैसा शरीर। उनकी सबसे बड़ी कमजोरी, यानी आग से डरना, को कहानी का अहम हिस्सा बनाना एक अच्छा और सोच-समझकर लिया गया रचनात्मक फैसला लगता है।
चित्रांकन और कला (Artwork & Visualization)

प्रदीप साठे का आर्टवर्क इस कॉमिक्स की सबसे बड़ी ताकत है। उनकी कल्पना एलियन दुनिया को दिखाने में पूरी तरह झलकती है। लूरा ग्रह के सूखे पहाड़, अजीब तरह की इमारतें और उन्नत तकनीक जैसे स्पेसशिप और लेज़र गन मिलकर एक अलग ही दुनिया का एहसास कराते हैं। एक्शन सीन काफी तेज और दमदार हैं—चाहे अंगारा का कुत्तों से मुकाबला हो, जलते हुए अड्डों से निकलना हो या हवा में उड़ते विमान से छलांग लगाना हो। रंगों का इस्तेमाल भी काफी असरदार है। उस दौर की प्रिंटिंग स्टाइल के हिसाब से चटख रंग चुने गए हैं, खासकर आग वाले दृश्यों में लाल और पीले रंग बहुत शानदार लगते हैं। चेहरे के भाव भी बारीकी से बनाए गए हैं—अंगारा के चेहरे पर आत्मविश्वास, चार्ली के चेहरे पर डर और किंग लूरा के चेहरे पर चिंता साफ दिखाई देती है।
लेखन और संवाद (Writing & Dialogue)
परशुराम शर्मा की लिखावट सीधी, साफ और सहज है, जिसकी वजह से कहानी कहीं भी भारी या उबाऊ नहीं लगती। उनके संवाद छोटे होते हुए भी असरदार हैं। जैसे अंगारा का कहना—
“मैं किसी के लिए नहीं लड़ रहा हूँ, मैं सिर्फ इंसाफ के लिए लड़ता हूँ।”
यह संवाद उसके पूरे चरित्र को एक लाइन में समझा देता है। वहीं चार्ली की घबराई हुई बातें—“हाय! मैं मरा! अंगारा का भूत!”—कहानी में हल्का-फुल्का मज़ाक भर देती हैं। कहानी की रफ्तार भी बहुत अच्छी है। एक अड्डे से दूसरे अड्डे तक का सफर और बीच-बीच में चार्ली के साथ होने वाली नोकझोंक सब कुछ सही तालमेल में चलता है, जिससे पाठक कहीं भी कहानी से अलग नहीं होता।
समीक्षात्मक विश्लेषण (Critical Analysis)

सकारात्मक पक्ष (Pros):
यह कॉमिक्स अंगारा की लंबी कहानी को एक पूरा और संतोष देने वाला अंत देती है। “अंगारा गायब” से शुरू हुई और “अंगारा अंतरिक्ष में” से आगे बढ़ी कहानी के सारे अधूरे सवाल यहाँ आकर जुड़ जाते हैं। इसकी सबसे बड़ी खासियत विज्ञान और प्रकृति का मेल है। एक तरफ स्पेसशिप और लेज़र जैसी हाई-टेक चीजें हैं, तो दूसरी तरफ अंगारा की प्राकृतिक ताकत और जानवरों से बात करने की क्षमता। चार्ली का अंत भी काफी असरदार है। उसे सीधे मारने के बजाय ऐसी सज़ा दी जाती है, जिसमें वह ज़िंदा रहकर अपने कर्मों का फल भुगतता है। यही बात कहानी को और यादगार बना देती है।
नकारात्मक पक्ष (Cons):
कॉमिक्स में कुछ तकनीकी कमियाँ भी नजर आती हैं। एलियन ग्रह पर अंगारा को सांस लेने में कोई दिक्कत नहीं होती, वहाँ का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी जैसा ही दिखाया गया है और एलियंस आसानी से इंसानी भाषा समझ लेते हैं। वैज्ञानिक नजर से देखें तो ये बातें सही नहीं लगतीं। हालांकि 90 के दशक की भारतीय कॉमिक्स में ऐसी चीज़ों को अक्सर रचनात्मक आज़ादी मानकर स्वीकार कर लिया जाता था। इसके अलावा, जीत कुछ ज्यादा ही आसान लगती है। मूरा की सेना के पास उन्नत तकनीक होने के बावजूद उनका आग और साधारण हथियारों से हार जाना यह दिखाता है कि कहानी में तकनीक से ज्यादा हिम्मत और प्राकृतिक शक्ति को अहमियत दी गई है।
निष्कर्ष (Conclusion)
“अंगारा की वापसी” एक क्लासिक मास्टरपीस है। यह सिर्फ अंगारा के फैंस के लिए ही नहीं, बल्कि हर उस पाठक के लिए है जिसे एडवेंचर और साइंस फिक्शन पसंद है। यह कॉमिक्स सिखाती है कि अगर आपके पास हिम्मत, समझदारी और सच्चाई का साथ हो, तो आप किसी भी जगह—चाहे वह धरती हो या पूरा ब्रह्मांड—नामुमकिन को भी मुमकिन बना सकते हैं।
अंगारा का यह सफर, धरती से अंतरिक्ष और फिर वापस धरती तक, एक सच्चे नायक की यात्रा का पूरा चक्र दिखाता है। चार्ली को लूरा ग्रह पर छोड़ने का फैसला भविष्य की कहानियों के लिए भी रास्ता खोल देता है—हो सकता है वह कभी लौटे।
अंतिम निर्णय:
अगर आप पुराने ज़माने की कॉमिक्स का मज़ा लेना चाहते हैं, जहाँ तर्क से ज़्यादा जादू, रोमांच और कल्पना अहम होती थी, तो यह कॉमिक्स आपके लिए एकदम ‘मस्ट रीड’ है। प्रदीप साठे की कला और परशुराम शर्मा की कहानी आपको निराश नहीं करेगी।
रेटिंग: 4.5 / 5
(बेहतरीन फ्लो और दमदार अंत के लिए)
